चारण शक्ति

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वीर रामसिंह सिंहढायच

वीर रामसिंह सिंहढायच

पूरा नामवीर रामसिंह (रामदान) चारण
माता पिता का नामपिता वीरदान सिंहढायच व माता श्रीमती लहरों देवी सुपुत्री हीरदान खिड़िया (बोर चारणान) की कोख से रामसिंह का जन्म हुआ।
जन्म व जन्म भूमिजैसलमेर जिलें के मेहरेरी गांव में 12 सितंबर 1941 को
शहीद दिनाक
भारत पाक युद्ध 1965 के दौरान अपने कर्तव्य पर आरूढ़ होकर शत्रु का मुकाबला किया। उन्होंने साहस, वीरता, त्याग व देशभक्ति का परिचय देते हुए 23 सितम्बर 1965 को अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
पता
गांव – मेहरेरी, ग्राम पंचायत – पावनासर, पंचायत समिति – फतेहगढ़, जिला-जैसलमेर (राज.)

 जीवन परिचय

चारण शक्तिपूजक के रूप में समादृत रहे हैं। कलम व करवाल को समान रूप से धारण करने वाली इस कौम का गौरव मध्यकालीन इतिहास में संरक्षित है। सत्यवक्ता व निर्भीक कवि के रूप में ये सर्वत्र समादृत रहे हैं। राजे-रजवाड़ों में इनका समुचित सम्मान था। ओजपूर्ण डिंगळ छंदों के साथ युद्ध में तलवार चलाना इनका वैशिष्ट्य था। चारण-राजपूतों के सनातन संबंध जगजाहिर हैं। जैसलमेर के शासक महारावल हरराज के डिंगळ गीत की यह पंक्तियां द्रष्टव्य हैं-

“राज भले ही जावै, कविराज न जा पावै।”

आवड़जी, करणीजी व बिरवड़जी जैसी शक्तियों का अवतरण इसी उज्ज्वल वर्ण में हुआ, जिन्हें संसार लोकदेवियों के रूप में पूजता आ रहा हैं। ऐसे कुल में हुए शूरवीरों के लिए यह कहना उचित रहेगा-

मांडै हरवळ मोरचो, कर कीरत रौ काम।
चारण भाखर चीरणा, खड़ग कलम कर थाम।।

जैसलमेर – बाड़मेर की सीमा पर स्थित मेहरेरी गांव जिला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर दक्षिण – पूर्व में है। यहाँ के निवासी वीरदान सुपुत्र रतनदान सिंहढायच की धर्मपत्नी श्रीमती लहरों देवी सुपुत्री हीरदान खिड़िया (बोर चारणान) की कोख से रामसिंह का जन्म हुआ। 12 सितम्बर 1941 को जन्मे रामसिंह अपने पांच भाई-बहिनें में सबसे बड़े थे- 1. रामसिंह, 2. मथरादेवी धर्मपत्नी मेहरदान थेहड़ माड़वा, 3. ढेलों देवी धर्मपत्नी गोरखदान बारहठ राजड़ाल 4. कालूदान 5. स्वर्गीय भूरदान केन्द्रीय भूजल बोर्ड में नौकर थे।

अच्छी कद काठी के कारण रामसिंह 12 सितम्बर 1963 को भारतीय सेना में भर्ती हुए हो गए। नौकरी लगने के बाद रामसिंह की सगाई हो गई। वे अंतिम बार 25 जुलाई 1965 को दो माह की छुट्टी आए परन्तु भारत – पाक युद्ध के तनाव के कारण उन्हें 19 सितम्बर की सुबह 5 बजे वापस रवाना होना पड़ा। उन्होंने अपने परिजनों से विदा लेते हुए कहा कि वे जल्द ही वापस लौट आएंगे। पिताजी के वे अनन्य प्रिय थे, सो पिताजी आंसू बहाने लगे। रामसिंह ने उन्हें आश्वस्त किया व ड्यूटी हेतु प्रस्थान किया।

भारत पाक युद्ध 1965 के दौरान अपने कर्तव्य पर आरूढ़ होकर शत्रु का मुकाबला किया। उन्होंने साहस, वीरता, त्याग व देशभक्ति का परिचय देते हुए 23 सितम्बर 1965 को अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। घर से लौटने के पांचवे दिन ही वे शहीद हो गए।

वाह! वाह ! रामा विदग, सूरां रा सरताज।
पैंसठ वाळे वार में, खपियौ भारत काज।।
शत्रु नै जमपुर किया, कर कर वार व्हीर।
वाह ! रामा वडसूरमा, हाटक जड़िया हीर।।

डेढ़ माह बाद घर पर उनकी शहादत की खबर प्राप्त हुई। उनके 46 वर्षीय पिताजी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके। मात्र 10 दिन बाद उनकी भी मृत्यु हो गई। सबसे बड़े पुत्र की शहादत के साथ साथ वैधव्य का दुःख सहन करने वाली ममतामयी माता जी की तीस साल बाद 1995 को मृत्यु हो चुकी है। वर्तमान में उनका परिवार वीरदानजी की ढाणी, धारवी कलां, तहसील-शिव, बाड़मेर में निवास करता है, जो उनके मूल गांव के करीब ही है।

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वीर रामसिंह चारण उनसे सम्बंधित रचनाओं व संस्मरणों के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं| पढने के लिए नीचे शीर्षक पर क्लिक करें-

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One Response

  1. Really we proud of our golden heritage and hertly respect vir ramsingh sinhdhhayach and salute for him scrifay ours motherland india…

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