चारण शक्ति

Welcome to चारण शक्ति

विप्लव का कवि “मनुज देपावत”

विप्लव का कवि “मनुज देपावत”

पूरा नाममनुज देपावत {मालदान}
माता पिता का नामइनके पिता कानदान डिंगल भाषा के सुविख्यात कवि थे व  माताजी का नाम दाखादेवी
जन्म व जन्म स्थानइस क्रान्तिकारी कवि का जन्म 24 अक्टूबर 1927 (कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी विक्रम संवत 1984) को बीकानेर जिले के देशनोक ग्राम में हुआ
देवलोक गमन
मनुज देपावत 18 मई 1952 में मात्र 25 बरस की उम्र में
अन्य
 

 जीवन परिचय

राजस्थान का इतिहास साक्षी है कि यहां का जन साधारण भी बड़ा क्रांतिकारी रहा है। जनसाधारण की इस भावना को बल प्रदान किया यहां की कविता ने। राजस्थान के कवि ने केवल दरबारों की चकाचौंध में रहकर ही कविता नहीं की अपितु अवसर आने पर उनके खिलाफ विप्लवकारी शब्दों से जनता को उत्साहित किया। सामंतों के अन्याय व पूंजीपतियों के अत्याचार ने जब सीमा लांघी तो वह मूक दर्शक नहीं बना रहा। ऐसे ही एक क्रांतिकारी कवि थे मनुज देपावत। मात्र 25 बरस के जीवन काल में उन्होंने न केवल क्रान्तिकारी गीतों का सृजन किया अपितु स्वयं क्रान्ति के अग्रदूत बने। उनके अन्तस्तल में सामंती व्यवस्था को भस्मीभूत करने हेतु प्रचंड प्रलंयकारी आग धधक रही थी। इसलिए उन्होंने धोरों की जनता को जगाने का आह्वान किया –

धोरां आळा देस जाग रै ऊंठा आळा देस जाग।
छाती पर पैणां पड़्या नाग रै धोरां आळा देस जाग।।

इस क्रान्तिकारी कवि का जन्म कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी विक्रम संवत 1684 (इ.सं. 1923) को बीकानेर जिले के देशनोक ग्राम में हुआ। इनका असली नाम मालदान देपावत था, परन्तु रचनाकार के रूप में ये मनुज देपावत के नाम से जाने जाते थे। आप डिंगल भाषा के ख्याति प्राप्त कवि श्री कानदान जी देपावत के सुपुत्र थे। मनुज ने श्री करणी-विद्यालय देशनोक और फोर्ट हाई स्कूल बीकानेर से क्रमशः मिडिल और मेट्रिक पास की। वे डूंगर महाविद्यालय बीकानेर के प्रतिभा सम्पन्न छात्र रहे। महाविद्यालय के सालाना जलसे में मुख्य अतिथि, भारत के ख्याति प्राप्त नाट्य कलाकार पृथ्वीराज कपूर ने इस छोटे कवि बाल मनुज की कविता पर बड़े दुलार के साथ उनकी प्रतिभा के लिए बधाई दी।

महाविद्यालय से निकलने के बाद आपने उत्तर रेलवे में टिकट कलेक्टर के पद पर रहते हुए भी रचनात्मक कार्यों को नहीं छोड़ा। उनकी प्रतिभा चहुंमुखी थी। श्री मनुज साप्ताहिक ‘लोकमत’ के सह सम्पादक, श्री करणी मण्डल देशनोक के संस्थापक सदस्य, ‘ललकार’, ‘नयी चेतना’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं के सुकवि एवं लेखक रहे। उनके निधन के बाद उनकी क्रांतिकारी कविताओं व गीतों का संग्रह ‘ विप्लव गान ’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया। कवि मनुज मनुष्य को ही अपना भाग्य विधाता मानते हुए उसके युग परिवर्तनकारी स्वरूप का उद्घाटन करते हैं-

मानव खुद अपना ईश्वर है,
साहस उसका भाग्य विधाता।
प्राणों में प्रतिशोध जगाकर,
वह परिवर्तन का युग लाता।

स्वतंत्रता की लगन उनकी अन्तरात्मा की पुरजोर आवाज़ थी। इसी आवाज को बुलन्द करते हुए वे कठपुतली शासकों को सम्बोधित करते हैं-

वां कायर कीट कपूतां री,
कवि कथा सुणावण नै जावै
अम्बर री आंख्यां लाज मरै,
धरती लचकाणी पड़ जावै
जद झुकै शीश, नीचां व्है नैण,
धरती रो कण-कण सरमावै।

इसी तरह उन्होंने आजादी से पूर्व अंग्रेजों की नीतियों की भयानकता का पर्दाफाश किया तथा शोषण और अन्याय के खिलाफ मजदूर-किसानों को संघर्ष का संदेश दिया। यह संदेश आज भी जन-आंदोलनों में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। असमानता के खिलाफ कवि का उद्घोष है-

रै देख मिनख मुरझाय रह्यो, मरणै सूं मुसकल है जीणो
ऐ खड़ी हवेल्यां हंसै आज, पण झूंपड़ल्यां रो दुःख दूणो
ऐ धनआळा थारी काया रा, भक्षक बणता जावै है
रै जाग खेत रा रखवाळा, आ बाड़ खेत नै खावै है
ऐ जका उजाड़ै झूंपड़ल्यां, उण महलां रै अब लगा आग।

यही प्रबल भावना उनके सामाजिक एवं साहित्यिक कार्यों से फूट-फूटकर निकल पड़ती दिखाई देती है। उनकी लेखनी समाज के शोषित जीवन को चित्रित करना अपना उद्देश्य घोषित करती है। मनुज का दृष्टिकोण पूरी तरह मानवतावादी था। उनकी वेदना का सबसे बड़ा कारण सामाजिक विषमता और मानव की परतंत्रता थी। इन सभी स्थितियों से दुःखी होकर मनुज ने अपने काव्य में विद्रोह का स्वर गुंजाया।
मानव को कायरता से जगा कर नए युग निर्माण की प्रेरणा देने का काम मनुज की कविताएं करती हैं। उनकी दृष्टि में वे सब परम्पराएं मृतप्राय हो गयी हैं और अब उनके मोह में फंसे रहने की आवश्यकता नहीं है। शोषकों एवं उत्पीड़कों के प्रति कवि के हृदय में जबर्दस्त आक्रोश था। जो समाज का शोषण महज अपने स्वार्थ के लिए करता है, उसे ‘नरक के कीट’, ‘वासना पंक निमज्जित’ एवं ‘दुर्दान्तदस्यु’ भी कहा जाय तो भी कम है। क्योंकि इस पूंजीवादी व्यवस्था में मनुष्य मानवता का भक्षक बन जाता है, जिसे मनुज जैसा परिवर्तनधर्मा कवि कैसे बर्दाश्त कर सकता है। कवि का भाव इन पंक्त्तियों में प्रकट हुआ है-

यह जुल्म जमींदारों का है,
यह धनिकों की मनमानी है,
बेकस किसान के जीवन की,
यह जलती हुई कहानी है।

मनुज ने पद्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया, परन्तु कम आयु में ही उनका देहान्त हो जाने की वजह से हिन्दी एवं राजस्थानी साहित्य उनकी बहुमूल्य सेवाओं से वंचित रह गया। श्री मनुज 18 मई 1952 यानि संवत 2009 में मात्र 25 बरस की उम्र में देशनोक व बीकानेर के बीच घटित हुई रेल दुर्घटना में हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चल बसे।

मनुज दैहिक रूप में आज विद्यमान नहीं हैं किन्तु अपनी लेखनी के प्रताप से प्रगतिवादी चिन्तन के क्षेत्र में उनका नाम आज भी अमर है। आज मनुज नहीं रहे पर उन द्वारा लिखी मजूर और करसे की पीड़ा, धोरों के गांवों की बेगार प्रथा की कहानी की अनुगूंज सर्वत्र सुनाई देती है। कवि का स्वर धोरों के कण-कण से इस जलती कहानी को निनादित करता है, और तब हमारा फर्ज और भी अधिक बढ़ जाता है कि शोषण को समाप्त कर कवि की इस जलती कहानी को एक शान्त एवं मधुरिम अंत प्रदान करने के लिए जुट जाएं।

.

कवि मनुज देपावत रचित अथवा उनसे सम्बंधित रचनाओं अथवा आलेख पढ़ने के लिए नीचे शीर्षक पर क्लिक करें –

  • आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ? – कवि मनुज देपावत (देशनोक)
  • भव का नव निर्माण करो हे- कवि मनुज देपावत (देशनोक)
  • आज जीवन गीत बनने जा रहा है- कवि मनुज देपावत (देशनोक)
  • आज होली जल रही है- कवि मनुज देपावत
  • मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा- कवि मनुज देपावत (देशनोक)
  • मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ – कवि मनुज देपावत
  • तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं, वह मेरा जीवन अवलंबन- कवि मनुज देपावत देशनोक
  • लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो- कवि मनुज देपावत (देशनोक)
  • प्रताप की बलिदान कहानी – मनुज देपावत (देशनोक)
  • रे धोरां आळा देस जाग– मनुज देपावत (देशनोक)
  • हे गाँव, तुझे मैं छोड़ चला, लाचार भरे इस भादों में- कवि मनुज देपावत
  • मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।- कवि स्व. मनुज देपावत
  • कल़ायण — कवि स्व. मनुज देपावत
  • कवि मनुज की क्रांति-चेतना – डाॅ गजादान चारण “शक्तिसुत”

.

कवि मनुज देपावत फ़ोटोज़

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Categories

Categories

error: Content is protected !!
चारण शक्ति