चारण शक्ति

Welcome to चारण शक्ति

माँ सुहागी बाई

माँ सुहागी बाई

 

पूरा नामसुहागीबाई
माता पिता का नामपिता भादाजी मेहड़ू
जन्म व जन्म स्थानजन्म स्थान – सुहागी, जिला – बाड़मेर राज. 
स्वधामगमन
 
विविध
 

 जीवन परिचय

विक्रमी सवंत 1580 में मेंहडू शाखा के चारण भादाजी मेंहडू को गंगाजी सोढा द्वारा सुहागी गाँव भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ। सुहागी का तत्कालीन नाम मेंहडु वास था।
भादाजी मेहड़ू की सुपुत्री सुहागीबाई का विवाह महिया शाखा के चारण से हुआ। सुहागीबाई के पुत्र का नाम मांडणजी महिया था। माडणजी महिया से सोढा राजपूतों ने घोड़ो की माँग की माडणजी ने यह माँग अस्वीकार कर दी। तत्पश्चात सोढा राजपूत घोड़ों को षड्यंत्र पूर्वक चोरी करके ले गये।
जब उक्त घटना घटी तब माडणजी सामाजिक कार्य से अन्य गांव गए हुए थे इस घटना की जानकारी उन्हें संदेशवाहक द्वारा भेजी गई। माडणजी घर आकर जब विश्वस्त हुए कि घोड़े बाखासर के सोढा राजपूत ही ले गए हैं तो बाखासर गांव जाकर गले में कटार पहन ली। ( चारणों का सत्याग्रह का एक प्रकार जिसमें स्वयं ही अपने गले में कटार को प्रवेशित करवाया जाता है।) माडणजी इसी अवस्था में सोढा राजपूतों की कोटड़ी पहुंच गये।
यह दृश्य देखकर सोढा राजपूत अत्यंत भयभीत हो गये इसकी सूचना माडणजी के ननिहाल पक्ष (मेंहडु चारण) को दी। माडणजी के ननिहाल पक्ष के लोग और वंशज जाकर माडणजी का पार्थिव शरीर ले आये।
यह दुःखद समाचार माईके आये हुए सुहागीबाई को सुनाया गया। सुहागीबाई के कथनानुसार माडणजी की मृत देह को वर्तमान सुहागी गांव की पश्चिम दिशा में जहां से बाखासर दृष्टिगोचर होता है, धोरे पर (धोरा= टीला, टीबा) चित्ता पर रखा गया। अपने पुत्र माडणजी के मस्तिष्क को गोद में लेकर सुहागीबाई विक्रमी सवंत 1585 में अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सती हो गयी।
सुहागीबाई ने बाखासर के सोढा राजपूतों को श्राप दिया कि आपके राज का पतन होगा। माताजी के वचन सत्य सिद्ध हुए और सोढो के भाणेज चौहान राजपूतों ने आक्रमण कर के सोढो से जागीरी छीन ली।
माताजी ने पीहर पक्ष के लोगों को आज्ञा दी थी कि यह गांव मेरे नाम से बसाने पर आप सभी सुखमय रहेंगे। माताजी की कृपा से सुहागी के चारण आज भी सुखी और साधन सम्पन्न है।
माताजी जिस स्थान पर सती हुई उस स्थान पर वर्तमान में थान है। जहां आज भी माताजी की पूजा होती है।

प्राचीन दोहा
सोढे भादा नै सम्पयो,जस कारण घण जाण।​
​दत सुहागी सासण दियो,रीझै गांगे राण।।1।।
​संवत पनरै सौ अस्सी,सातम नै भृगु सार।​
​सोढै भादा नै सम्पयो, दत गांगै दातार।।​2।।

______________________________________
आई श्री सुहागीआई झमर जळी सती हुए इसकी ऐतिहासिक सम्पूर्ण माहिती इस गाँव के प्रतिष्ठ चारण कवि श्री शंकरदानजी मेहडू तथा इनके पुत्र कवि श्री सामलदानजी मेहडू के जो भी विद्वान कवि है उनके गाँव के अन्य वडील मेहडू शाखा के चारणों की हाजरी में दी हुई है।

सुहागीबाई से सम्बंधित रचनाओं अथवा आलेख पढ़ने के लिए नीचे शीर्षक पर क्लिक करें-

.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Categories

Categories

error: Content is protected !!
चारण शक्ति