चारण शक्ति

Welcome to चारण शक्ति

चारणों की शक्ति मढ़ड़ावाली माँ सोनल आई, माताजी की महिमा, इतिहास और महत्व क्या है?

चारणों की शक्ति मढ़ड़ावाली माँ सोनल आई, माताजी की महिमा, इतिहास और महत्व क्या है?

 

चारणों की शक्ति मढ़ड़ावाली माँ सोनल आई, माताजी की महिमा, इतिहास और महत्व क्या है?
कई संत सोरठ (सौराष्ट्र) की भूमि पर बसे हैं। परमार्थ के माध्यम से और अपने सेवा कर्मों के माध्यम से, उन्होंने मानव धर्म की श्रेष्ठ सेवा के लिए अपनी भक्ति के द्वारा समाज के सम्मुख बड़ा उदाहरण प्रस्तुत  किया है।

सौराष्ट्र संतों की भूमि है, वीरपुर में जलाराम बापा, जूनागढ़ में नरसिंह मेहता, बिलखा में शेठ शगाळसा, सताधार में आपागीगा, बगदाणा में बापा सीताराम, भगुड़ा में आई मोगल माँ और मोणीया में आई नागबाई माँ, के नाम मात्र से भक्तजनों की जन्मों जन्म से मुक्ति होती आयी हैं और ऐसा अनुभव करते हैं।

तो दर्शन करेंगे आई श्री सोनल माताजी के परम धाम के….
आज यह तीर्थ, जिसे चारणों का शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है, जूनागढ़ जिले के मढङा गाँव में आई श्री सोनलधाम स्थित है।

मढ़ड़ावाळी सोनल माताजी… जूनागढ़ से मात्र 30 किलोमीटर दूर मढ़ड़ा गाँव में आई श्री सोनल माताजी का मंदिर आया हुआ है… 700 लोगों की आबादी वाला यह गाँव लाखों भक्तों का सर्वोच्च धार्मिक स्थल है। दिन हो या रात, ठंड हो या गर्मी, और बारिश ही क्यों नहीं हो पर भक्त इन समस्याओं पर भी हर्ष पूर्वक इस मंदिर में,  आई माँ के दर्शन के लिए सोनलधाम आते हैं।

मंदिर में बिराजित आई सोनल की दयामयी मूर्त के दर्शन करने के लिए हर दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। 20 विग्रह में फैला यह मंदिर परम् धाम है जो आई सोनल शक्ति के सम्मान में पूजा जाता है।

आई सोनल माताजी के दर्शन के लिए देश – विदेश से श्रद्धालु आते हैं। सोनल माताजी का जन्म इसी गाँव मढ़ड़ा में हुआ था। माताजी का जन्म एक सामान्य व्यक्ति की तरह हुआ और संसार में कई लोगों का कल्याण किया। सोनल माताजी के भक्तजन पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन सभी भक्तों को माताजी पर पूरा भरोसा है। माताजी के एक भी आदेश के बिना कोई काम नहीं होता।

मढ़ड़ा गांव में, पिछले कई वर्षों से भोजन प्रसाद के लिए सभी को दोनो समय के भोजन के लिए कहने को आता है, तात्पर्य यह है कि साध्वत चलाया जाता है। कोई भी भूखा जाता नही है, और किसी को संसार का कोई दुःख रहता नही है।

सुबह शाम मंदिर में भव्य आरती होती है। आरती दर्शन कर भक्त धन्यता महसूस करते हैं। इस गाँव में स्थानीय लोग भी प्रतिदिन माताजी की आरती के दर्शन करने आते है। सभी जातियों के लोग माताजी के दर्शन के लिए आते हैं।

पोष सुदी बीज के दिन माताजी का जन्मदिन मनाया जाता है। लोग माताजी के जन्म दिवस को सोनल बीज के रूप में मनाते हैं। मढ़ड़ा से लेकर मेलबोर्न, अहमदाबाद से लेकर इंग्लैंड तक, हर साल, सोनल माताजी का जन्मदिन मनाया जाता है। जब सोनल बीज आती है, तो माताजी के भक्त बड़ी सख्या में मढ़ड़ा आते है।

ऐसे तो माताजी के बहुत से भक्त हैं। जो तन-मन ओर धन से श्रद्धा से सिर झुकते है, माताजी के सभी उपदेश को जीवन में उतार कर जीवन धन्य करते है।

मढ़ड़ा गाँव मे बिराजमान आई श्री सोनलधाम की महिमा क्या है? चारण समाज के साथ जुड़े इस मढ़ड़ा गाँव का क्या है महत्व?
शास्त्रों में चारणों की दिव्यता, महानता और उपलब्धियों के वर्णन कई स्थानों पर पाए जाते हैं। चारणों की देशभक्ति, कर्तव्य परायणता, संस्कृति की रक्षा, साहित्य सेवा, वीरता, तटस्थता और क्षत्रियों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने में उनकी सेवा की प्रशंसा आज सब कोई करते हैं। तब श्री सोनल माताजी ने भी विभिन्न समुदायों के लोगों को कई साक्षात चमत्कार दिए। क्योंकि माताजी के आशीर्वाद से भक्तों के सभी कार्य पूरे हो गए, भक्तों को श्री सोनल माताजी पर पूरा विश्वास है। माताजी भगवती का ही अवतार है….

खिम्रवंती प्रजा.. जिनके स्वर और छंद ने हमारी संस्कृति को पाया है। नई पहचान.. और जहाँ तक आई श्री सोनल माताजी की अपरम्पार महिमा तो आप जानते ही हैं।

श्री सोनल माताजी अपने जीवनकाल में केवल ही केवल पुरुषार्थ…जीवन मे सत्य, पवित्रता, सादगी और सात्विकता अग्रस्थान पर रखी। चारण समाज को एक करने और व्यशनमुक्त करने का सबसे बड़ा अभियान चलाया था। चारण समाज भी ऐसी दिव्य आत्मा को ध्यानपूर्वक सुनते थे। अपने जीवन में, आई श्री सोनल माताजी के प्रवचनों ओर व्याख्यानो को गहरे उतारते थे। आई श्री सोनल माताजी ने विभिन्न समुदायों के लोगों को कई चमत्कार दिए । जब भक्तों ने माँ को सच्चे मन से पुकारा है तब अवश्य माताजी ने चमत्कारो से भक्तों के कई कष्ट को दूर किया है।

चीलो वण सक्ति तणो, चारण चुकी जात।
जन्मी न होत जगतमां,, मढ़ड़े सोनल मात।।

सोनल धाम का इतिहास क्या है? आई श्री सोनल माताजी कौन थे?
महाभारत, वाल्मीकि रामायण के अलावा जैन धर्मो के कई शास्त्रों में भी चारणों की दैवी शक्तिओ के उच्च सिद्धियाँ होने के अनेक वर्णन मिलते हैं। कवि कुलगुरु कालिदास ने भी चारण के बारे में अदिना ग्रंथों में बयानबाजी का उल्लेख किया है।

प्रमुख अवतारों में से एक, और भगवान रामचंद्र और श्री कृष्ण भगवान – पिथू (पृथू) राजा, अलाउद्दीन खिलजी, मुगल सम्राट अकबर और उनके वंशजों और सैकड़ों अन्य शासकों से पहले आए हैं और उन्हें भी पुण्य गुणों से आकर्षित किया है।

ऐसा कहा जाता है कि, जो चारण सच्चा और शुद्ध चारण है। वह कभी गलत नहीं बोलता। साहित्य में और सार्वजनिक रूप से कई बार चारणों की कविता भी सुनते हैं। दरअसल चारणों की एक अलग ही पहचान है। जिसमें यह व्यापकता, पवित्रता, आत्मसम्मान, खुशी, दूरदर्शिता और बहादुरी का प्रतीक माना जाता है।

भावनगर के महाराज के साथ गुजरात के संस्थापक रविशंकर महाराज, ठक्करबापा, आज़ादीकाळ  के रतुभाई अदाणी, जैसे कई लोग आई श्री सोनल माताजी की विचारधारा से प्रभावित हुए थे ओर आई श्री सोनल माताजी की शरण आयें। जूनागढ़ आजाद हुआ तब आई श्री सोनल माताजी का स्पष्ट मानना ​​था कि जूनागढ़ भारत का अपरिहार्य हिस्सा है। जो कोई भक्त चारण समाज का आई श्री सोनल माँ के धाम में दर्शनार्थी बनकर आता है वो दूसरी बार सपरिवार दर्शनार्थी बनके जरूर आते है।

जी हाँ .. चारण के घर में जहाँ मढ़ड़ा गाँव में आई श्री सोनल माताजी की दैवी आत्मा अवतरित हुई तब पूरा गांव खुशी और उत्साह के माहौल से घिरा हुआ था। चारणकुळ की यह आई इतनी तेजस्वी और दिव्य थी कि इनमे साक्षात् माँ भगवती का वास हो ऐसा लग रहा था। इसीलिए आज एक दृष्टांत लिखा है।

चारण कुळ का मढ़ड़ा गाँव में ऐसा इतिहास है। संत स्वभाव के पिताजी हमीर मोड़ के वहाँ… श्री सोनल माताजी का जन्म पांचवीं बेटी के रूप में हुआ, चार – चार बेटियो के बाद पांचवी संतान बेटा आये ऐसी आशा परिवार में सबको होती है, परंतु हमीरबापू के वहां… पांचवी संतान की ख़ुशी परिवार को इतनी ही थी। जितना अगली चार – चार पुत्रियों का जन्म हुआ हो इतना। हमीरबापू को पहले हुए सराकड़ीया वाले सोनबाई माँ ने वचन दिया था कि आपकी पांचवी पुत्री माँ भगवती का अवतार होंगे। वो पुत्री मोड़ कुळ के साथ समस्त चारण जाती और हिंन्दु सस्कृति का उद्धार करेंगे।

आज भी आई श्री सोनल माँ की इसलिए श्रद्धा रखते हैं, कि माताजी बचपन से ही स्वरूपवान के साथ तीव्र बुद्धिशाली ओर स्पष्टवक्ता थे, वह अपने जीवन में कभी स्कूल नहीं गए। लेकिन संस्कृत भाषा पर माँ सोनल की प्रतिभाशाली भाषा थी जो सामने वाले आपकी बातों का समर्थन करते थे। श्री सोनल माताजी ने कई बार संस्कृत भाषा में व्याख्यान दिए हैं। देशभर में परिभ्रमण भी किया, खासकर हरिद्वार, काशी, मथुरा, आदि जैसे पवित्र स्थानों में संत्सग भी किये। एक चारण होने के नाते, माताजी चारणी साहित्य के प्रखर ज्ञाता भी थे। श्री सोनल माताजी… माँ भगवती शक्ति के रूप के बावजूद, उन्होंने अन्य देवी-देवताओं की भी स्तुति करते थे। वास्तव में … श्री सोनल माताजी का रूप… आई सोनल माँ की तेजस्वीता बहुत थी जो सामने वाले को उन की दिव्य शक्ति का अहसास होता था।  माताजी की वाणी में भी सरस्वती बिराजमान थे।

सोरठ का मढ़ड़ा गाँव आज चारण समाज में जग प्रसिद्ध हो गया है। यह आई श्री सोनल माताजी के कारण से ही.. माँ भगवती रूप में, चारण समाज ने यहाँ नित्य सोनल माताजी की पूजा-अर्चना करते है। आई श्री सोनल माताजी स्मृतिशक्ति भी ख़ूब अच्छी थी। बचपन से माँ सोनल की प्रतिभा ऐसी थी कि सामने वाली व्यक्ति को आपकी प्रतिभा का अपने आप अभिभुत होता था और आपकी बात सामने वाले के दिल में उतर जाती थी। समाज के हित के लिए… आई माँ गीतों ओर हरिरस के ऐसे दोहे बोलते की बैठा हुआ सौकोय भक्त मंत्रमुग्ध हो जाता। माताजी खुद के मधुरकंठ से रामायण की कथा भी सुनाते, आई श्री सोनबाई की योग्य उम्र होते ही उनकी माता राणबाई अति आग्रह ने वश में लेकर शादी करते है, लेकिन शादी के दिन, श्री सोनल माताजी ने ब्रह्मचर्य आजीवन व्रत की घोषणा की थी। उन्होंने पूरा जीवन समस्त चारण जाति और हिंदू संस्कृति का उद्धार करने में ही बिताया। विशेष रूप से हमारी संस्कृति की असली पहचान पूरी दुनिया तक पहुँचे और उसका सम्मान हो इस इरादे पूरा जीवन जीया।. जय श्री सोनल माताजी…।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Categories

Categories

error: Content is protected !!
चारण शक्ति