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पद्मश्री डा. सीताराम लालस

पद्मश्री डा. सीताराम लालस

पूरा नामपद्मश्री डा. सीताराम लालस (सीताराम जी माड़साब के नाम से जनप्रिय)
माता पिता का नामहाथीरामजी के सुपुत्र के रूप में 29 दिसंबर 1908 (आसोज सुद ग्यारस बुधवार) को माता जवाहरबाई (सार्दुलसिंहजी बोगसा, गाँव-सरवडी चारणान की पुत्री) की कोख से सीतारामजी का जन्म गांव नैरवा जिला जोधपुर मे लालस शाखा मे हुआ।
जन्म व जन्म स्थान29 दिसंबर 1908 गांव नैरवा जिला जोधपुर मे
स्वर्गवास
78 वर्ष की उम्र में 29 दिसंबर 1986 को सीताराम जी लालस का स्वर्गवास हुआ
अन्य
आपने ४० वर्षों की अथक साधना के उपरान्त “राजस्थानी शब्दकोष” एवं “राजस्थानी हिंदी वृहद कोष” का निर्माण किया। यह विश्व के सबसे बड़े शब्दकोशों में से एक है जिसमे 2 लाख से अधिक शब्द, १५ हज़ार मुहावरें/कहावतें, हज़ारों दोहे तथा अनेकों विषय जैसे कृषि, ज्योतिष, वैदिक धर्म, दर्शन, शकुन शास्त्र, खगोल, भूगोल, प्राणी शास्त्र, शालिहोत्र, पशु चिकित्सा, संगीत, साहित्य, भवन, चित्र, मूर्तिकला, त्यौहार, सम्प्रदाय, जाति, रीत/रिवाज, स्थान और राजस्थान के बारे में जानकारी एवं राजस्थानी की सभी उप भाषाओं व बोलियों के शब्दों का विस्तार पूर्वक एवं वैज्ञानिक व्याकर्णिक विवेचन है। इस अभूतपूर्व कार्य के लिए 2 अप्रेल 1977 को भारत सरकार ने आपको पद्मश्री से सम्मानित किया।

 जीवन परिचय

पद्मश्री डा. सीताराम लालस (सीताराम जी माड़साब के नाम से जनप्रिय) राजस्थानी भाषा के भाषाविद एवं कोशकार थे। आपने ४० वर्षों की अथक साधना के उपरान्त “राजस्थानी शब्दकोष” एवं “राजस्थानी हिंदी वृहद कोष” का निर्माण किया। यह विश्व के सबसे बड़े शब्दकोशों में से एक है जिसमे 2 लाख से अधिक शब्द, १५ हज़ार मुहावरें/कहावतें, हज़ारों दोहे तथा अनेकों विषय जैसे कृषि, ज्योतिष, वैदिक धर्म, दर्शन, शकुन शास्त्र, खगोल, भूगोल, प्राणी शास्त्र, शालिहोत्र, पशु चिकित्सा, संगीत, साहित्य, भवन, चित्र, मूर्तिकला, त्यौहार, सम्प्रदाय, जाति, रीत/रिवाज, स्थान और राजस्थान के बारे में जानकारी एवं राजस्थानी की सभी उप भाषाओं व बोलियों के शब्दों का विस्तार पूर्वक एवं वैज्ञानिक व्याकर्णिक विवेचन है। इस अभूतपूर्व कार्य के लिए 2 अप्रेल 1977 को भारत सरकार ने आपको पद्मश्री से सम्मानित किया। जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर ने आपको मानद पी.एच.डी. (डाक्टर ऑफ़ लिटरेचर) की उपाधि प्रदान की।

जोधपुर दरबार मानसिंह जी का जालोर के घेरे में जिन १७ चारणों ने साथ दिया था उनमे से एक थे जुढिया निवासी नवल जी लालस जिनको सांसण में सन 1807 में नेरवा गाँव मिला था। नवलजी की पीढी में पीरदान जी, हरुदान जी, हाथीराम जी हुए। इन्ही में से हाथीराम जी के सुपुत्र के रूप में २९ दिसंबर १९०८ (आसोज सुद ग्यारस बुधवार) को माता जवाहर बाई (सार्दुल सिंह जी बोगसा, गाँव-सरवडी चारणान की पुत्री) की कोख से सीताराम जी का जन्म गांव नैरवा जिला जोधपुर मे लालस शाखा मे हुआ।

बालक सीताराम सिर्फ ढाई वर्ष के थे कि इनके सर से पिता का साया उठ गया। इनको पढ़ाने की जिम्मेदारी इनके नाना सार्दुल सिंह जी बोगसा ने उठायी जो स्वयं भी राजस्थानी के जाने माने विद्वान् एवं कवि थे। सार्दुल सिंह जी की मृत्यु के उपरांत भी सीताराम जी अपने गाँव नेरवा तथा ननिहाल सरवडी दोनों जगह रहे। उन्होंने अमतूजी श्रीमाली से व्याकरण एवं अंकगणित की शिक्षा प्राप्त की। साथ ही साथ ननिहाल सरवडी में बड़े बूढों से डिंगल साहित्य एवं काव्य शास्त्र सीखते रहे। इतिहास एवं संस्कृति की प्रारंभिक शिक्षा इनको अपनी नानी सिंगारा बाई से मिली। डिंगल साहित्य में इनका रुझान तत्कालीन विद्वान पन्नाराम जी महाराज के सानिध्य में आकर और बढ़ गया।

सोलह वर्ष की आयु में सीताराम जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर ली। तत्पश्चात पन्नाराम जी महाराज की सलाह पर वे जोधपुर आ गए तथा चारण होस्टल में रहने लगे जहां मारवाड़ मिडिल बोर्ड से इन्होने अपनी स्पेशल आठवीं कक्षा मेरिट के साथ उत्तीर्ण की।

१९२८ में सीताराम जी की नियुक्ति शिक्षक के रूप में चेनपुरा स्कूल (मंडोर, जोधपुर) में हुई। कार्य के साथ साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी तथा पंडित भगवती लाल शास्त्री से संस्कृत व्याकरण की शिक्षा प्राप्त की।

१९३१ में ये बागड़ स्कूल, जोधपुर में नियुक्त हुए जहां ये प्रसिद्ध क्रांतिकारी ठा. केसरी सिंह बारहट एवं उनके भाई किशोर सिंह बार्हस्पत्य के संपर्क में आए। इनकी सीताराम जी ने पूरी लगन एवं उत्साह से सहायता की।

इन्ही दिनों सीताराम जी का संपर्क जयपुर शासकीय पुस्तकालय के सुपरिन्टेन्डेन्ट पंडित हरिनारायण पुरोहित (पारीख) से हुआ जिनकी सलाह से इन्होने राजस्थानी साहित्य पर कार्य करना प्रारम्भ किया। पुरोहित जी ने इनको एक पुराना राजस्थानी शब्दकोष “नाम माला” दिया जिसे पढ़कर सीतारामजी ने पुरोहित हरिनारायण जी को पत्र लिखा (४ अप्रैल १९३२) कि “आधुनिक समय के लिहाज से यह शब्दकोष अनुपयोगी है”। पुरोहित जी ने इस पत्र को गंभीरता से लेते हुए सीताराम जी को कटाक्ष किया कि वे पहले अपना स्वयं का शब्दकोष बनायें फिर किसी शब्दकोष की आलोचना करें। पुरोहितजी का यह कटाक्ष सीताराम जी ने अपने दिल पर ले लिया तथा यही घटना एक वृहद राजस्थानी शब्दकोष की रचना का निर्णायक मोड़ बनी।

१९३७ से १९४० से दौरान बिलाड़ा में रहते हुए सीताराम जी दीवान हरीसिंह जी के संपर्क में आए जहां इन्होने आइमाता मंदिर पुस्तकालय में रखे हस्तलिखित ग्रंथों का अध्ययन करना आरम्भ किया। पुस्तकालय नीचे तहकाने में था। एक बार पढ़ते हुए पुस्तकालय की सीढ़ियों से ४५ फीट की ऊंचाई से वे सिर के बल गिरे जिससे उनके मस्तिष्क में अंदरूनी चोट आई तथा आतंरिक रक्तस्राव के कारण वे कोमा में चले गए। दीवान हरीसिंह जी की मदद से उनको जोधपुर ले जाया गया जहां एक लम्बे उपचार के पश्चात वे पुनः स्वस्थ्य हो पाए।

१९३७ में एक अश्लील पुस्तक के खिलाफ सीताराम जी ने एक कानूनी लडाई जीती जिससे उस पुस्तक के लेखक, एक तथाकथित साधू, ने इनको जहर देकर मारने का प्रयास किया किन्तु वे उपचार करके बच गए।

बिलाड़ा में रहकर सीताराम जी ने आई माता का संक्षिप्त इतिहास लिखा। यहीं पर इन्होने “हाला झाला रा कुण्डलियाँ” तथा “बाँकीदास ग्रंथावली” के सम्पादन में भी सहयोग किया। ठा.किशोर सिंह बार्हस्पत्य के “हरिरस” (भक्त इसरदास जी रचित) के सम्पादन में भी सीताराम जी का उल्लेखनीय योगदान रहा।

१९४१ में सीताराम जी का स्थानान्तरण मथानिया हो गया जहां पानारामजी महाराज के सानिध्य में इन्होने काफी साहित्यिक ज्ञान प्राप्त किया।

१९४५ में संस्कृत सोसाइटी अयोध्या ने सीताराम जी को “साहित्य भूषण” की उपाधि प्रदान की। इन्ही दिनों जय नारायण व्यास के नेतृत्व में अखिल राजस्थानी भाषा सम्मलेन आयोजित हुआ जिसमे सीताराम जी को “Executive Vice President” बनाया गया। १९४१ से १९४५ के दौरान सीताराम जी ने लगभग पचास हज़ार शब्दों का राजस्थानी शब्दकोष का एक खाका तैयार कर लिया था किन्तु पुरोहित हरी नारायण जी के स्वर्गवास हो जाने के कारण यह प्रकाशित नहीं हो पाया।

१९४६-४७ में इनको स्वतंत्रता आन्दोलन में संलिप्त होने तथा क्रांतिकारियों से संपर्क रखने के आरोप में सरकारी कार्य से निकाल दिया गया। आज़ादी के उपरान्त इन्हें वापस कार्य में लिया गया।

१९५३ में इन्होने ६५००० शब्दों के साथ प्रकाशन के लिए सारदुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीटूट बीकानेर से संपर्क किया मगर बात नहीं बनी। १९५४ में W.S.Allen (केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर) की सलाह पर प्रथम राजस्थानी ग्रामर की किताब लिखी।

१९५५ में चोपासनी शिक्षा समिति ने राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना की तथा सीताराम जी के कार्य को राजस्थानी-हिंदी शब्दकोष के रूप में प्रकाशित करने के कार्य को हाथ में लिया। १९६२ में शब्दकोष का प्रथम खंड प्रकाशित हुआ। इस कार्य की समस्त साहित्य जगत में सराहना हुई। १९६७ से १९७८ तक बाकी के आठ खंड प्रकाशित हुए।

सीताराम जी ने कविराजा करनीदान जी रचित वृहद् ग्रन्थ “सूरज प्रकाश” का भी सम्पादन किया है जो तीन खण्डों में १९६०, ६१ एवं ६३ में प्रकाशित हुआ।

७८ वर्ष की उम्र में २९ दिसंबर १९८६ को सीताराम जी लालस का स्वर्गवास हुआ। जुलाई १९८७ में जोधपुर नगर निगम ने शास्त्री नगर में उनके घर से निकलने वाले मार्ग का नामकरण “डॉ. सीताराम लालस मार्ग” के नाम से किया तथा उनका एक स्टेचू बनवाया।

मास्टर साहब सीताराम जी के चार पुत्रियाँ एवं एक पुत्र हुए। पुत्रियाँ विमला जी, सरला जी, दीपा जी एवं सबसे बडी पुत्री कमला जी हुए। पुत्र कैलास जी का जन्म 11.11.48 को हुआ। कमला जी का विवाह पालावत बारहठ किशोर सिह जी मांहुद के साथ हुआ इनकी दोहित्री श्रीमती मंजुला जी भी एक साहित्यकार लेखिका है जिन्होने उम्मेदाराम जी ग्रंथावली, सम्मानबाई ग्रंथो का संपादन किया तथा विभागाध्यक्ष इकोनोमिक्स से हाल मे सेवा निवृत हुए। इनका ससुराल सेवापुरा हे। दूसरी पुत्री विमला जी का विवाह मिरगेसर हिंगलाजदान जी के साथ हुआ। दीपा जी का वाल्यकाल मे दैहांत हो गया तथा सरला जी का विवाह मोगडा रणवीरसिंह जी के सुपुत्र स्वरुप सिह जी के साथ हुआ।

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