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राजकवि खेतदान दोलाजी मीसण – प्रेषित: आवड़दान उगमदान मीसण

राजकवि खेतदान दोलाजी मीसण – प्रेषित: आवड़दान उगमदान मीसण

पूरा नामखेतदानजी
माता पिता का नाममाता जानुबाई रोहड़ीया व पिता दोलाजी मीसण
जन्म व जन्म स्थान– / – / 1884 देदलाई, ता, नगर जिला थरपारकर (पाक.)
स्वर्गवास
 
अन्य
दादोसा का नाम- श्री वखतदानजी
गोत्र- मीसण
अभ्याश- वृज भाषा एवं संस्कृत (भुज
नानोसा का नाम, गोत्र व गांव- रोहड़ीया लोद्राणी ता. रापर कच्छ
ससुरजी का नाम, गोत्र व गांव- मीशरदान हमीरदानजी देथा गढड़ो पाक
स्वयं का पाक में मूल गांव- देदलाई
हाल कवि के वशंज- सोनलनगर कच्छ (भुज

 जीवन परिचय

चारण समाज में ऐसे कई नामी अनामी कवि, साहित्यकार तथा विभिन्न कलाओं के पारंगत महापुरुष हुए हैं जो अपने अथक परिश्रम और लगन के कारण विधा के पारंगत हुए लेकिन विपरीत संजोगो से उनके साहित्य और कला का प्रसार न हो पाने के कारण उन्हें जनमानस में उनकी काबिलियत के अनुरूप स्थान नहीं मिल पाया। अगर उनकी काव्य कला को समाज में पहुचने का संयोग बेठता तो वे आज काफी लोकप्रिय होते। उनमे से एक खेतदान दोलाजी मीसण एक धुरंधर काव्य सृजक एवं विद्वान हो गए है। खेतदानजी का जन्म देदलाई ता, नगर जिला थरपारकर (हाल-पाकिस्तान) में हुआ था। अपने माता पिता की इकलोती संतान कवि खेतदानजी जब सिर्फ 10 साल के थे कि उनके पिताजी दोलाजी का निधन हो गया। घर का पुरा बोझ उनकी माता जानुबाई पर आ गया। विकट समय झेल रहे खेतदानजी को दूसरा झटका तब लगा जब एक साल बाद उनकी माता जो उनका पालन पोषण कर रही थी वो भी संसार से चल बसी। केवल 11 वर्ष की उम्र जो आनंद की अवस्था होती है ओर जिम्मेदारी से मुक्त होती है, ऐसे में माता पिता दोनो की छत्र छाया गंवाने वाले बालक खेतदान पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन इस जुझारू बालक ने हिम्मत नहीं हारी, आंसु पोंछकर खड़ा हुआ और कुछ ऐसा करने की कमर कसी जो उनको एक नयी ऊँचाई और पहचान दे सके। खेतदानजी ने निश्चय किया कि मुझे चारणत्व की पहचान यानि काव्य सृजक बनना है। 11साल की अवस्था मे पारकर के एक राजपुत का साथ लेकर वे भुज (कच्छ) की ओर निकल पड़े। उस समय तत्कालीन कच्छ राज्य की राजधानी भुज में काव्य शास्त्र सिखाने की सर्वश्रेष्ठ संस्था थी ‘ब्रजभाषा पाठशाला’ जो ‘भुज की काव्यशाला’ के नाम से भी जानी जाती थी। महाराव लखपतजी द्वारा स्थापित इस विख्यात विद्या संकुल मे सीमित मात्रा मे ही विधार्थियों को प्रवेश मिलता था। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित पूरे भारतवर्ष से होनहार विद्यार्थी काव्य शास्त्र का अध्ययन करने इस पाठशाला में आया करते थे तथा यहाँ प्रवेश मिलने को अपना सौभाग्य समझते थे। एक उच्च लक्ष्य के साथ भुज पहुंचे खेतदान को जब इस पाठशाला मे प्रवेश नहीं मिल पाया तो वे काफी हताश हो गए लेकिन उन्होने हिम्मत नही हारी। वे कुछ समय अपने मामा के गांव लोद्राणी रापर (कच्छ) रूके। उन दिनो ब्रजभाषा पाठशाला मे मुख्य शिक्षक धामाय (कच्छ) के हमीरदान जी खिड़ीया थे। खेतदानजी सीधे हमीरदानजी से मिले तथा उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। खेतदानजी की बात एवं उनकी परिस्थिति पर गौर कर हमीरदानजी ने उनको भरोसा दिलाया कि वो खेंगारजी महाराव से बात करके प्रवेश क्वोटा मे एक स्थान बढाने की मांग करेंगे। इस प्रकार मुश्किलों का सामना करते हुए भुज मे कवि खेतदान को प्रवेश मिला। सम्पूर्ण पिंगल कवि पद प्राप्त करने का 12 वर्ष का कोर्स होता था। खेतदानजी ने पूरी लगन और मेहनत से 12 वर्ष अभ्यास करके कवि पद प्राप्त किया। सम्पूर्ण पिंगल कवि पद बहुत ही कम कवियों को मिला था जिनमे से खेतदानजी एक थे जिन्होंने यह पद प्राप्त कर अपनी मेहनत को सही साबित किया।
कवि बनने के बाद दियोदर (बनासकांठा) वाघेला स्टेट मे राजकवि के रूप मे मान प्राप्त किया। कवि खेतदानजी का विवाह गढड़ा देथा शाखा के चारणो मे हुआ। विवाह के उपरांत उन्होंने अपना सारा समय अपनी पेत्रक भूमि देदलाई (पाकिस्तान) मे रहकर गुजारा। देदलाई रहते हुए उन्होने अनेक काव्यों, माताजी के छंद, चिरजाएं, ईश्वर के गुणगान एवं वीर-रस से भरपूर कई कृतियों का सृजन किया।
आज भी गुजरात मे जिन जिन कलाकारो के मुख पर उनकी कविताएं हैं वे गाते समय उनकी अनमोल कविताओं की भरपूर प्रशंसा करते है। उन्होंने हजारो की संख्या मे कविताओं का सृजन किया किन्तु पिछड़े हुए ‘थरपारकर’ इलाके मे रहने के कारण उनके अनमोल सृजन को प्रसिद्धी नही मिल पाई। यदि उनका काव्य संग्रह आज प्रकाशित मिलता तो अच्छे साहित्य की प्राप्ति होती और उनकी मेहनत कारगर साबित होती। उनके निधन के बाद उनका काव्य संग्रह खेतदानजी के बड़े पुत्र ऊमदानजी के पास रहा लेकिन 1971 के भारत पाक युद्ध के समय स्थलांतर होते वक्त उनका बहुमूल्य साहित्य वहीं पर छूट गया जिसका जिन्दगी भर ऊमदानजी को भी अफसोस रहा। उनके द्वारा सृजित जितने भी काव्य है वो सभी बंधुओ के साथ बांटने का प्रयत्न चारण शक्ति वेबसाइट द्वारा किया जाएगा।

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राजकवि श्री खेतदान दोलाजी मीसण का पेढ़ीनामा (वंशावली) यहा रखने का एक छोटा सा प्रयास किया है-

महेशदानजी​

​पातुदानजी​

​खीमदानजी​

​शिवदानजी​

​परबतदानजी​

​गोपालदानजी​

​धनराजदानजी​

​दलाजी​

​देवीदानजी​

​तमाचीजी​

​वखतदानजी​

​दोलाजी​

​खेतदानजी​

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राजकवि खेतदान दोलाजी मीसण रचित अथवा उनसे सम्बंधित रचनाओं अथवा आलेख पढ़ने के लिए नीचे शीर्षक पर क्लिक करें –

  • इन्द्रबाई माताजी (खुड़द) का छंद
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