चारण शक्ति

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माँ कामेही

माँ कामेही

पूरा नाममाँ कामेही
माता पिता का नामआपके पिता का नाम जसुदान बाटी था
जन्म व जन्म स्थानजन्म विक्रम संवत 1550 में गुजरात के खम्भालीया तहसील के राण गांव के पास ढाबरडी मे हुआ था
स्वधामगमन
 
विविध
माँ कामेही का जन्म विक्रम संवत 1550 में गुजरात के खम्भालीया तहसील के राण गांव के पास ढाबरडी मे हुआ था, आपके पिता का नाम जसुदान बाटी था। आपका विवाह पिपलीया गांव के मेघड़ा गौत्र में हुआ था, माँ कामेही खम्भालीया के पास खजुरिया नेश में अपने मवेशियों के साथ रहते थे।

 जीवन परिचय

चारण शक्ति आई कामेही के श्राप से जामनगर के दुराचारी शाशक का अंत !

आई कामेही का जन्म पिता जसुदान जी चारण (जसाजी) के घर गुजरात राज्य के ढाबरडी गाँव मे चारण कुल की बाटी शाखा में हुआ।
एवम विधि के विधान के अनुसार आई कामेही का विवाह पिपलिया ठिकाणे में चारण कुल की मेंघडा शाखा में हुआ।

आई कामबाई माँ के पास देवांगी और पांणीपंथी नामक दो श्रेष्ठ घोड़ियां थी। जिसकी चर्चा दूर – दूर तक फैली थीं। अश्व की देखभाल आई कामेही के पीहर से आया एक सेवक किया करता था।

उस समय जामनगर पर रावल जाम का राज था। (एक मत के अनुसार यह घटना जाम लाखा से सम्बंधित है) जाम रावल की पुत्री के विवाह के समय प्रसिद्ध अश्व को प्राप्त करने की मंशा से अपने सैनिकों को आई “कामेही माँ के पास से अश्व लाने जा आदेश दिया, सैनिक आई कामेही के पास गए ओर कहा “माँ आपके अश्व बेजोड़ है। अतः जामसाहिब उनको देखना चाहते हैं। आप आज्ञा करें तो हम ले जाएं और सांझ को वापिस पहुंचा देंगे।” आई कामेही ने कहा – “पुत्र ! आप राजपूत हैं। राजपूत झूठ नहीं बोलते। आप पर मुझे भरोसा है। सांझ को पहुंचा देना। ले जाओ!”

सायंकाल का समय हुआ काफी देर इंतजार करने और भी कोई अश्व लेकर नही आता तो आई कामबाई माँ कटार लेकर निकल पड़े। काफी अंधेरा होने के कारण सेवक ने कहा आई माँ में भी आप के साथ चलता हु, लाखणसी अपने दरबारियों के साथ जाजम पर बैठा था। तभी किसी ने कहा कि कोई आ रहा है।
जो राजपूत घोड़ियां लेकर आए थे। उन्होंने पहचान लिया कि आई कामेही माँ है।

उन्होंने अंदाज लगा लिया कि कामेही की चाल क्रोध से भरी है। सैनिको ने राजा से निवेदन किया कि – “महाराज ! आप आई माँ के अश्व दे वापस दे दीजिए।” लेकिन – विनाश काले विपरीत बुद्धि (राजा ‘जोगी ‘अगन ‘ जल, आंरी उलटी रीत।”) जाम नहीं माना। तब तक आई कामेही उनके पास पहुंच कर बोली कि – “मेरे अश्व कहां है? तब अहंकारी जाम ने कहा कि – “अश्व की कीमत दे सकता हूं लेकिन अश्व नहीं।” यह सुनते ही आई कामेही ने अपनी कटारी निकाली और कहा कि -“यह दिख रही है! तब जाम ने उनकी मुखाकृति की तरफ देखा। ऐसे में जाम दूसरा अपराध कर बैठा। वह बोला – “नहीं – नहीं भाभी! तुम्हारे अभी मरने के दिन नहीं है। तुम्हारे अभी घर मांडने के दिन हैं!” यह सुनते ही कामेही ने कहा कि – मोरो (अगनी) लागै रै ऐड़ै देवर!! हूं भैणी ने तूं भा, संबंध आगू जो सखा। का वचन काछेल, के अवगुणे कढ्ढीयूं।।

“अरे मूर्ख जिस रूप को देखकर तेरी मति मारी गई है। ले !” यह कहकर उन्होंने अपनी कटार से एक स्तन काटा और जाम की तरफ फेंका। यह दृश्य देखते ही जाम की जबान तालु के चिपक गई। दूसरे क्षण दौड़ते हुए डेरे से बाहर निकल घोड़े पर सवार हो अपनी राजधानी की तरफ दौड़ पड़ा।

आई कामेही भी योग बल पर जाम के पीछे ही दौड़ी। अचानक जाम को लगा कि कोई पीछे आ रहा है तो उसने मुड़कर देखा तो कामेही ने दूसरा स्तन काटकर उसकी तरफ फेंकते हुए कहा कि – “माँ स्वरूप चारण स्त्री पर कुत्सित दृष्टि डालने वाले! दुष्ट सेवक जो कामेही के पीहर का था, वह भी क्रोधित हुआ। परंतु कर क्या सकता था? उसने सोचा कि न तो मैं घोड़े सवार को पहुंच सकता हूं और न ही आई माँ की रक्षा कर पा रहा हु। उसने अपनी कटार निकाल कर पेट में मार ली। कटार लगते ही जोर से चीख निकली। ऐसी करुण कूक से मा कांमेही का ध्यान राजा से हटकर उस चीख करने वाले की तरफ गया। उन्होंने देखा कि उनके सेवक ने ही कटार खा ली है और मरणासन्न है ।

तब आई माँ बोले – “पुत्र ! यह क्या किया? इतना कह आई कामेही फिर जाम के पीछे दौड़ी।
कहते हैं पींपलिया व जामनगर के बीच आई कामेही ने कटारी से अपने मांस को नौ जगह चीर चीर कर जाम के पीछे फेंका।

उधर जाम डरते – डरते जामनगर पहुंचा। तब तक वह चितबगना हो चुका था। वो गढ़ में घुसा और अपने शयन कक्ष में पहुंचकर थोड़ा सुस्ताने के बाद दरवाजे की तरफ देखा तो आई कामेही वहां तैयार थी। जाम को संबोधित कर कामेही ने अपने शरीर का मांस फिर चीरकर उसकी तरफ फेंका और कहा -“ले इस रूप को देख!” जाम अत्यंत भयभीत हो गया। वह इस विचार में पड़ा कि ऐसी कोई सुरक्षित जगह हो जहां में जाऊं और वहां कामेही मेरे पीछे न आ सके। लोगों ने कहा – “आपके राज्य की स्थापना में तुंबेल चारणों का जो योगदान रहा है वो अविस्मरणीय है। आपने बहुत बुरा काम किया। अभी भी समय है कि आप कामेही की ही शरण में जाएं और क्षमायाचना करें। कांमेही तो माँ है, माँ अवश्य ही माफी दे देगी।”

जाम ने वही किया जो लोगों ने कहा था। उसने कामेही के पैरों में अपनी पगड़ी रखकर क्षमायाचना की। माँ दया करो आई कामेही उसको माफ करते हुए बोली कि – “तुम्हारा अपराध अक्षम्य है। तूने मुझे भाभी भी कहा और मेरा रूप भी सराहा लेकिन अब तुम क्षमा मांग रहे हो तो मैं तुम्हें क्षमा करती हूं। फिर भी सुन लेना अगर एक साल तक तेरे महल की उत्तर दिशा वाली बारी खुल गई और तुमने उसमें देखा तो तू जलकर मरेगा। मैं इसी समय जमर कर रही हूं।” (जमर – चारण स्त्रियों द्वारा जीवित रूप से चिता पर जलना) तब जाम ने कहा कि – “आप अब जमर मत करो। मैं पाटे कराऊंगा।” कामेही ने कहा कि- “अब मैं इस अपवित्र शरीर को एक क्षण नहीं रख सकती। जाम डर के मारे वहां अधिक ठहर नहीं सका। कामेही ने अंतिम तागा किया। (तागा/त्रागा – चारण स्त्री /पुरषों द्वारा कटारी से स्वयं की गर्दन में में प्रहार कर प्राण त्यागना) उस समय मारवाड़ के दो चारण भी वहीं थे। एक भादाजी वणसूर (नांदिया) और दूसरे आसाजी बारहठ (भादरेस)।

हालांकि कुछ लोग आसाजी की जगह ईसरदासजी बारहठ का उपस्थित होना कहते हैं।
दोनों ने जब मरणासन्न कामेही को प्रणाम किया तो कामेही ने उन्हें आदेश दिया कि -“मेरी चिता तैयार की जाए।” उन्होंने अपने हाथों कांमेही की इच्छानुसार चिता बनाई। उस समय कामेही ने कहा कि – “मेरी इस चिता भस्म को अपने गांव साथ ले जाना।
जहां रखो अगर उस जगह भस्म से जाल व करील एक साथ उग जाए तो मान लेना कि कामेही यहीं विराज रही है।”

उन दोनों ने वही किया और वही हुआ जो आई कामेही ने कहा था। आज भी इन दोनों गांवों में बने थान इस ऐतिहासिक कथा की साक्षी भर रहे हैं। दूसरी तरफ जाम सब कुछ भूल चुका था। वरसाले का सुहावना मौसम था। जाम अपनी मेड़ी में था। अचानक हजूरियों ने उत्तर दिशा की बारी खोली और जाम से उधर का मनोरम दृश्य निहारने का निवेदन किया। जाम के सिर पर काल मंडरा रहा था। जाम आई कामेही के वचन भूलकर उधर जलाशय में देखने लगा। जैसे ही उसने देखा दूर समुद्र में एक अग्नि शिखा दिखाई दी। जाम ने आश्चर्य से पानी पर अग्नि शिखा को देखा और हजूरियों को भी अंगुली से बताया। जैसे ही उसने अंगुली सीधी की और कहा -“वो देखो।” एकाएक शिखा से अग्नि बढ़ी और जाम की अंगुली में प्रवेश कर गई। जाम बुरी तरह जल कर मर गया।

चारण राफ न छेड़िये’ जागे कोक जडाग
जागी जाडेजा शीरे’ कामेही काळो नाग

सन्दर्भ – यदुवंश जसप्रकाश
कच्छ कलाधर

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