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माँ चम्पाबाई

माँ चम्पाबाई

 

पूरा नाममाँ चम्पाबाई
माता पिता का नामपिता वाघजी मेहड़ू और जनेता धनुबाई घुद की कुख से
जन्म व जन्म स्थानपारकर की पावन धरा पर आज से तकरीबन 100 साल पहले यानि कि इसविसन्न 1918 को गांव डिंनसी ता, नगर पाकिस्तान
स्वधामगमन
 
विविध
पीहर पक्ष – पिताश्री का नाम वागदानजी मेहड़ू, गाँव डिणसी ता, नगर।
ससुराल पक्ष – पति परमेश्वर का नाम राणी दानजी s/o उदयराज जी सिन्ढायच गाँव मऊ , ता, नगर पारकर
ननिहाल पक्ष – नानाजी का नाम हमीरजी घुद, एवं मामाश्री का नाम गोपालदानजी घुद, गांव वाव dist बनासकांठा गुजरात।
आज भी माताजी के मामा के वंसज वाव में ही स्थायी है।।

 जीवन परिचय

धिंगी धरा मरु धाट की, पाक पाराकर देश।
संत कवि अरु शक्तियां,”आवड.” प्रगट हमेश।।

धाट पारकर चारण समाज में ऐसे कई नामी अनामी संत, कवी विद्वान और सती, सक्तिया अवतरित हो गए जिनका हम समस्त धाट पाकर के बंधुओ को न केवल गौरव, बल्कि अधिकतम एतिहासिक ज्ञान भी होना आवश्यक है।
इसी विषय पर आज में एक ऐसी सख्शियत और पारकर जैसे दुर्गम इलाके में प्रकट हुई साक्षात जगदम्बा स्वरूप, चम्पाबाई माँ के पवित्र जीवन कवन और उनके पर्चो को आपके सामने शेयर कर रहा हु, अगर कही भूल हो तो क्षमाँ करे।

पारकर की पावन धरा पर आजसे तकरीबन 100 साल पहले यानि कि इसविसन्न 1918 को गांव डिंनसी ता, नगर निवासी पिता वाघजी मेहड़ू और जनेता धनुबाई घुद की कुख से साक्षात शक्ति और ईश्वर की मूर्ति समान आई चम्पाबाई का जन्मोदय हुआ।

पीहर पक्ष – पिताश्री का नाम वागदानजी मेहड़ू, गाँव डिणसी ता, नगर।
ससुराल पक्ष – पति परमेश्वर का नाम राणी दानजी s/o उदयराज जी सिन्ढायच गाँव मऊ , ता, नगर पारकर
ननिहाल पक्ष – नानाजी का नाम हमीरजी घुद, एवं मामाश्री का नाम गोपालदानजी घुद, गांव वाव dist बनासकांठा गुजरात।
आज भी माताजी के मामा के वंसज वाव में ही स्थायी है।।

जिस प्रकार सूर्य के तेज का अंदाज उनके उदय से हो जाता है, उसी प्रकार माँ चम्पाबाई का बचपन ही भक्तिरस से ओतप्रोत था। केवल तेरह साल की बाल्यावस्था में ही उन्होंने विद्वान गुरु खेताराम को गुरु बनाकर , गुरु आशीर्वाद जे साथ अथक भक्ति के साथ जीवन पथ पर चलना सूरू किया।
प्रातः सुबह स्नानादि के बाद गीता, रामायण, हरिरस विगेरे पवित्र गर्न्थो का पाठ करना, अपनी ही हथेली पर कबूतरों को दाना खिलाना, औरो को निश्वार्थ ज्ञान रूपी बोध देना माताजी का नित्यकर्म था।
माँ चम्पा बाई स्वयं सिद्ध साधिका थी, सामान्य गृहस्थ जीवन जीते हुए उन्होंने अपने पति परमेश्वर रानीदानजी की अपार सेवा की। इन्ही सेवा के फलस्वरूप भगवान् की उन पर इतनी कृपा हुई की हर जान मानस उनको प्रभु का रूप मानने लगे।

अपार प्रभु भक्ति, दया, करुणा, परोपकारी भावना उनके रग रग में व्याप थी।
1971 के भारत पाक युद्ध के बाद हमारा हिन्द भूमि पर आगमन हुआ, इसके साथ माँ चम्पाबाई का परिवार भी हिंदुस्तान आया। सुरुआत के कुछ साल बाखासर के पास तारिसरा गाव में प्रभु भक्ति के साथ पसार किये। तत्पश्चात 1985 में सरकार द्वारा आवंटित भूमि पर बसने के लिए नहर की और अग्रसर हुए।
मेकेरी गांव के पास 5 MKM नई आबादी का शिलान्यास भी आई चम्पाबाई माँ के शुभ हाथों से हुआ था। कहा जाता है कि उस साल के बाद, आजतक मेकेरी और आजु बाजु के गाँवो में कभी अकाल नहीं पड़ा है। गाढ़ प्रभु भक्ति, साक्षात जगदम्बा स्वरूप , निखालास स्वभाव , एवं समाज पथदर्शक गुणों के कारण हर जान मानस में उनके प्रति अपार श्रधा बन गयी थी। हर मुश्किल घड़ी में आई चम्पाबाई को याद कर आशीर्वाद लेना नहीं चूकते थे। आई चम्पाबाई ने अपने भक्ति सभर पवित्र जीवन में अपने श्रद्धालु भक्तो को अनेकों पर्चे और आशीर्वाद दिए। पूर्ण श्रद्धा के साथ जो भी अनुयायी उनके सरन गया होगा माँ ने उनको अचूक कुछ उपाय या राह दिखाई होगी।

ईश्वर की साक्षात मूर्ति और जगदम्बा स्वरूप आई चम्पाबाई का पवित्र देह आज से 20 साल पहले मगसर सुकल एकादसी , इसवीसन 1998 को अपने लाखो भक्तो को छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गया।
माताजी के स्वर्गधाम के बाद ठीक 2 साल बाद सावन सुदी एकादसी, इसवीसन 2000 को उनके निज मंदिर का प्रतिष्ठा समारोह हुआ। 20 साल बाद आज भी उनके मंदिर पर सुकल एकादसी को रात्रि जागरण अविरत चालू है। माताजी के मंदिर की सेवा पूजा चेतनदान मेहड़ू, और विन्ज़दान गणेशदान मेहड़ू पूर्ण भाव से करते है। माताजी की तिथि मगसर सूद एकादसी को उनके परिवार के सदस्य पूर्व सरपंच और माताजी पोते ईश्वरदान, करणीदान, एवं दसरथ दान रात्रि जागरण और महाप्रसाद के रूप में मनाते है। साथ ही साथ माताजी की प्रतिष्ठा तिथि सावन सुदी एकादसी माताजी के परम भक्त विन्ज़दानजी रोहड़िया परिवार की और से रात्रि जागरण और महाप्रसाद के साथ मनाना अविरत प्रवाह चालू है। इन दोनों ही पवित्र तिथियों पर आजु बाजु से आपर संख्या में माताजी शिष्य पधारते है। 1918 से 1998 तक के अपने 80 साल के पवित्र जीवन में उन्होंने अपने अनेक शिष्यो को आशीर्वाद के साथ साथ दुख हरणी भी साबित हुई।

माँ चम्पाबाई के चमत्कारिक पर्चे
01. जब माताजी का परिवार तारिसरा बाखासर बिराजित थे उस समय हमारे कौटुम्बिक भाई मालदान पथुजी को प्रथम चमत्कारिक परचा दिया। मलदानजी क्षय रोग से इतने भयंकर पीड़ित थे की डॉक्टरों ने भी अपने हाथ ऊपर कर लिए थे, लगातार खून की उल्टियां होने के कारण उनके जीने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा था , तब माँ चम्पाबाई के सरन गए। माताजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपको कुछ नहीं होगा, आप प्रभु भक्ति कभी मत भूलना। माताजी के आशीर्वाद मिलते ही मालदान भयंकर रोग से ऐसे मुक्त हुआ जैसे कोई चमत्कार हुआ हो। उसके बाद मालदान माताजी का परम भक्त बन गया और आजभी उनके निर्देशानुसार प्रभु की अनन्य भक्ति करता है। आज उनका दो पुत्रों के साथ फलफूला परिवार ही माताजी की दया का वरदान है।

02. दूसरा परचा उन्होंने अपने परम शिष्य विन्ज़दानजी रोहड़िया को दिया। उनके आशीर्वाद से आज उनके दोनों सुपुत्र एम्.बी.बी.एस. डॉक्टर है , जो की समस्त धाट पारकर समाज का गौरव है, आज भी इस रोहड़िया परिवार को माताजी पर अपार सारधा है, माताजी की मूर्ति प्रतिष्ठा तिथि हर वर्ष विन्ज़दान रोहड़िया परिवार की और से मनाई जाती है। यहाँ तक की यह परिवार अपनी गाड़ी या मकान पर भी *आई चम्पाबाई* लिखाते है।

03. तीसरा चमत्कार तब हुआ जब मेकेरी सरपंचो के चुनाव के कुछ दिन पहले उनके पोते इश्र्वर दान अपने परिवार सह कच्छ की और आ रहा था। तब गाव के लोगो ने उनको रोककर सरपंच का उमीदवार बना दिया ।मगर उनके सामने उनका प्रतिद्वंदी सुथार बहुत ही मजबूत पोजीसन में था। और ईश्वरदानजी की जित की अपेक्षाए काफी धुंधली थी, मगर एक रात सुथार को माताजी *चम्पाबाई* सपने में जाकर कहा कि मेरा पोता तो जित रहा है तुम जाकर उनको माला पहनाओ। दूसरे दिन काल्पनिक सुथार, ईश्वरदान के घर आकर उनके पैरों पड़ा और खा की में अपनी प्रत्याशिता वापिस खींचता हु और आप ही हमारे सरपंच हो, कहकर गले में विजयी माला पहनाई।

इस प्रकार आई चम्पाबाई माँ ने अपने पवित्र जीवन के दौरान अपने सर्द्धालुओ को अनेक पर्चे देकर आशीर्वाद दिए एवं अनेको के लिए दुःख हरणी भी साबित हुई।

संकलन सहयोग-
आवडदान मीसण सोनलनगर
ईश्वरदान सिन्धायच
डॉ केसरदान रोहड़िया
भंवरदान मेहड़ू साता

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