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श्री चालकनेची माँ

श्री चालकनेची माँ

पूरा नामश्री चालकनेची माँ 
माता पिता का नाम 
जन्म व जन्म स्थान 
स्वधामगमन
 
विविध
(कवि ”मधुकर” भंवरदानजी मेड़वा से मिली जानकारी के आधार पर:-चालकनेची ही आवड़जी है यह चालकना गाम बाड़मेर जिले में है। संवत भी 838, राजा तणू ओर विजयराव चुड़ाला के समय सें सही मेल इतियास मिलता है।)

 जीवन परिचय

(कवि ”मधुकर” भंवरदानजी मेड़वा से मिली जानकारी के आधार पर :-चालकनेची ही आवड़जी है यह चालकना गाम बाड़मेर जिले में है। संवत भी 838, राजा तणू ओर विजयराव चुड़ाला के समय सें सही मेल इतियास मिलता है।)


वर्तमान बाड़मेर जिले की धोरीमन्ना तहसील से 26 किमी दक्षिण में चालकनू गांव स्थित हैं। इस गांव में राक्षसी प्रवृति का हूण चालकों रहता था जो लोगों को जिंदा खा जाता था। भगवती श्रीआवड़जी का इस क्षेत्र में आगामाना हुआ तो इस कुख्यात हूण चालकों का इस स्थान पर माँ ने अपने हाथों से सहार किया और उसके ऊपर एक विशाल शिला रख दी। इस शिला का एक सिरा आज भी उसी जगह जमीन के अंदर धंसा हुआ हैं। इस चालकों नामक राक्षस का संहार करने के कारण श्रीआवड़ माता ‘चालकनैची’ के नाम से प्रसिद्ध हुए और यह गांव चालकना या चालकनू कहलाता हैं।

भगवती श्रीआवड़ादि देवियों को कई चारणों की खांप चालकनेची के नाम से अपनी कुलदेवी के रूपा में मानते हैं। भक्त कवि ओपाजी आढ़ा ने अपनी रचना में श्रीआवड़जी बनौ जूनी जोगणी’ के नाम सो सम्बोधित करते हुए उनके द्वारा चालकों राक्षास को मारने का उल्लेख किया हैं।
जो निम्न प्रकार से हैं।

जूनी जोगणी श्री अम्बे जूनी जोगणी,
माता सेवगां री साय कीज्यों जूनी जोगणी।

ब्रह्मा विष्णु वेद उपाया ज्यारीं तू जणणी,
तुंही उपाया तुंही खपाया मां थारी पहुंच घणी।

चाळकनेची चाळको मार्यो लीनो चोट चड़ी,
एक चळू भर हाकड़ो सोख्यो पीता खबर पड़ी।

भगवती श्री आवड़जी द्वारा चालको दैत्य का संहार करने का उल्लेख करते हुए केसरोजी खिड़िया (राजस्थानी शक्ति काव्य के पृ.सं. 151) कहते हैं कि

पाटपति तण ब्रिद किसू केहर पुणै, थाटपति तणा ब्रिद सधर थाया।
चाळका दैत नै भांजियौ रवेची, रूपो थारा नमौ चाळराया।।

इस गांव में श्रीआवड़ादि सातों बहिनों का प्राचीन मंदिर बना हुआ हैं। मंदिर के पास जाळ का प्राचीन वृक्ष हैं। मंदिर के पीछे रेत का विशाल धोरा हैं। इस मंदिर के आस-पास मंदिर निर्माण के लिए घड़े बहुत सारे प्राचीन पत्थर के स्तम्भ व बड़े विशाल पत्थर पड़े हुए जो मंदिर की प्राचीनता व पूरातात्विक महत्व के सूचक रूपा में इधर – उधर बिखरे हुए पड़े हैं। इस पूरातात्विक घड़े हुए पत्थरों के आधार पर हम कह सकते हैं कि रिसायत कालीन समय में किसी भक्त शासक की चालकनेची के भव्य मंदिर निर्माण की योजना किसी कारणवश अपूर्ण रह गई। वर्तमान में मंदिर का संचालन चारण समाज के ट्रस्ट द्वारा किया जाता हैं। मंदिर के पीछे स्थित विशाल धोरे पर राजस्थान सरकार के राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के द्वारा व मातेश्वरी श्रीआवड़ माता के जीवन चरित्र को संरक्षित रखने के उद्देश्य से आदरणीय श्रीओंकारसिंह जी लखावत के द्वारा स्वीकृत पैनोरमा का निर्माण कार्य चल रहा हैं। कुछ विद्वान चालकनू गांव को श्रीआवड़ादि शक्तियों का जन्म स्थान भी मानते हैं जिसके बारे में हमने शोधपूर्वक अध्ययन में पूर्व में बता दिया हैं।

मनरंगथलराय

चालकनू या चालकना से चार किमी दूर मनरंगथळ स्थल आया हुआ हैं। इस मनरंगथळ में श्रीआवड़ादि शक्तियों के निवास करने के कारण वे ‘मनरंगथळ राय’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। मनरंगथळ स्थान का बहुत ही प्राचीन महत्व हैं। बहुत ही प्राचीनाताम रचनाओं में मनरंगथळ का उल्लेख आता हैं। मारवाड़ के शासक राव रिड़मल के समकालीना चांनणजी खिड़िया (14 वीं शाताब्दी) की रचना में मनरंगथळ का उल्लेख इस प्रकार से आता हैं ।।

कळकळिया कूआ भर्याजी,
अम्बेजी ठंड़ी सीतळ छांय।
मनरंग थळका मारगांजी,
अम्बेजी लख आवै लख जाय।।

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