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श्री आवड़ माता (तनोट माता) के आशीर्वाद से भारतीय सेना की तनोट के युद्ध में चमत्कारी विजय

श्री आवड़ माता (तनोट माता) के आशीर्वाद से भारतीय सेना की तनोट के युद्ध में चमत्कारी विजय

पूरा नाम श्री आवड़ माता
माता पिता का नाम इनकी माताजी का नाम (गुजरात में मीणल माता और देवल माता दोनो मिलते हैं,) जबकि राजस्थान में मोहवृति ओर पिता मामडियाजी चारण के घर जन्म
जन्म व जन्म स्थान भगवती श्री आवड़ माता ने वि.स. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन गुजरात के भावनगर जिलें के रोहिशाला गांव में अवतार लिया
स्वधामगमन
विविध
श्री आवड़ माता – वि. संवत 808 मादा शाखा के चारण कुळ में मामडिया चारण के घर सात बहने ओर एक भाई महेरख का जन्म, 1.आवड़, 2.होल, 3.गेल, 4.आई रांगळी (रंगबाई), 5.आई रेपल (रूपबाई), 6.आई सांसई, 7.आई लघुबाई आई (खोडियार – जानबाई) ये सात-बहने।

 जीवन परिचय

भगवती श्री आवड़ माता ने वि.स. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन चारण मामड़जी के घर अवतार लेकर अपने जीवनकाल में कई चमत्कार कर दिखाये थे जिसकी एक विस्तृत श्रृंखला हैं। श्री आवड़ माता के चमत्कारों के कारण कवियों ने अपनी साहित्यिक रचनाओं में श्री आवड़ माता को 52 नामों से सम्बोधित किया जिसके कारण से भगवती श्री आवड़ माता 52 नामों से विश्वप्रसिद्ध हुए।

श्री आवड़ माता के वर्तमान परिपेक्ष्य में चमत्कारों का वर्णन करें तो हमें 20 वीं सदी के सम्पूर्ण विश्व की सर्वाधिक चमत्कारी घटना का स्मरण आ जाता है। ये घटना भारत पाकिस्तान के मध्य लड़े गये तनोट युद्ध (1965 ई) की हैं।

भारत पाकिस्तान के बीच 1947 ई. के विभाजन के समय से ही सम्बन्ध तनावपूर्ण रहें हैं। इसका मुख्य कारण भारत द्वारा कश्मीर रियासत का भारत संघ में विलय करना था। पाकिस्तान कश्मीर घाटी पर अधिकार करना चाहता था। इसी कारण से 05 अगस्त 1965 ई. को पाकिस्तान ने अमरिकी सहायता से प्राप्त आधुनिक सैन्य हथियारों, टैंकों व लड़ाकू विमानों से लैस होकर कश्मीर पर हमला कर दिया। इस आक्रमण का सामना करने के लिए भारतीय सेना ने लाहौर क्षेत्र में युद्ध के लिए नया मोर्चा खोल दिया। पंजाब व कश्मीर क्षेत्र में भारत-पाक की सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। युद्ध की भयावह स्थिति को देखते हुए अमेरिका के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ ने शांति प्रस्ताव द्वारा 23 सितम्बर 1965 ई. को युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस शांति प्रस्ताव की घोषणा से पहले भारतीय सेना ने कश्मीर व पंजाब की सीमा से पाकिस्तान के अन्दर घुसकर पाकिस्तान के बड़े भू भाग पर अपना कब्जा कर लिया था। इस स्थिति को देखते हुए पाकिस्तान सेना ने राजस्थान सीमा के थार के मरूस्थल की बंजर भूमि में स्थापित चौकियों पर कब्जा कर लिया। शांति वार्ता के दौरान भारत सरकार ने कश्मीर व पंजाब क्षेत्र के सीमा पार अपना अधिकार बताया वहीं पाकिस्तान सरकार ने राजस्थान के सीमावर्ती मरूस्थल की चौकियों पर अपने अधिकार का दावा किया। पाकिस्तान सेना द्वारा राजस्थान की सीमान्त चौकियों पर कब्जे की सूचना पाकर भारतीय प्रतिनिधि आश्चर्यचकित रह गये। क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने युद्ध विराम की घोषणा के बाद बिना गोलाबारी किये जैसलमेर व बीकानेर जिले की सीमावर्ती चौकियों पर अधिकार कर अपनी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ कर लिया था।

पश्चिम राजस्थान के जैसलमेर जिले की सीमावर्ती चौकियों में तनोट चौकी सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थी। पाकिस्तान सेना तनोट पर कब्जा करके बाद में जैसलमेर होते हुए जोधपुर व दिल्ली पर कब्जा करना चाहती थीं। इस दृष्टि से पाकिस्तान सेना के विजयी अभियान में तनोट का बड़ा महत्व था। सितम्बर 1965 ई. में जब भारत-पाक युद्ध प्रारम्भ हुआ, इस समय 13 ग्रेनेडियर्स(गंगा रसाला) की चार कम्पनियों को पश्चिमी राजस्थान के मरूस्थल की रक्षा करने हेतु अलग अलग क्षेत्रों में भेज दिया गया। ए कम्पनी के मेजर (बाद में कर्नल बने) हरिसिंह व जुगतसिंह को पूगल, बी कम्पनी को मेजर(बाद में कर्नल बने) जयसिंह राठौड़ थेलासर को तनोट (जैसलमेर), सी कम्पनी मेजर पूर्ण सिंह रिजर्व सेक्टर तथा डी कम्पनी मेजर (बाद में कर्नल बने) बलदेव सिंह को बाड़मेर सीमान्त क्षेत्र की रक्षा का दायित्व सौंपा गया।

तनोट की चौकी पर पाकिस्तान सेना के आक्रमण से पहले तनोट पाकिस्तान सेना से तीनों ओर से घिर चुका था। पाकिस्तान सेना ने किशनगढ़ से लगभग 74 किमी दूर बुइली तक तथा पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दुर तक के भू भाग पर कब्जा कर लिया था। तनोट के पास स्थित घंटियाळी माता मंदिर के आस पास के धोरों में दुश्मन सेना ने एंटी पर्सनल व एंटी टैंक माइन्स बिछा दिया था। इस तरह से पाकिस्तान सेना ने अपनी घेराबंदी मजबूत करके अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैनात कर दिया था। ऐसी विषम परिस्थितियों में कर्नल जयसिंह राठौड़ ने धैर्य, साहस, वीरता, सुझबुझ एवं राजपूती शौर्य से काम लिया। 16 नवम्बर 1965 ई. को पाकिस्तान सेना के लड़ाकू विमान ने इस क्षेत्र की टोह ली तथा 17 नवम्बर को पहला आक्रमण किया। 17 व 18 नवम्बर 1965 ई. को दो दिनों में शत्रु सेना ने तनोट पर भारी आक्रमण किया। इस प्रकार पाकिस्तान सेना ने तनोट से भारत का सम्बन्ध काट दिया तथा अपनी आठ कम्पनियों से तीनों दिशाओं से तनोट पर आक्रमण किया। भारतीय सेना की ओर से तनोट में मुकाबले के लिए कर्नल जयसिंह राठौड़ थेलासर के नेतृत्व में हमारे मात्र 300 सैनिक थे जबकि दुश्मन सेना के 1500 सैनिक थे जो आधुनिक हथियारों से लैस थे। उनके पास 124 सपोर्टिंग गन मोरटार्स व टी 16 वैपन कैरियर थे। हमारी ओर से शत्रु सेना का मुकाबला 13 ग्रेनेडियर्स की केवल एक स्क्वैड्रन तथा 13 सीमा सुरक्षा बल (युद्ध से पहले आर ए सी कहीं जाती थी) की दो कम्पनियां तैनात थी।

इस विकट परिस्थिति में श्री आवड़ माता (तनोट माता) की कृपा से दूसरे दिन युद्ध होने से पहले एक सैनिक गुमान सिंह सिसोदिया(गाँव समीचा, तहसील कुम्भलगढ, जिला राजसमन्द यूनिट 13 BN BSF) को भगवती तनोट माता का भाव आता है और उस गुमान सिंह के भाव के माध्यम से आवड़ माता ने कहा कि किसी को घबराने की आवश्यकता नहीं है तुम वर्तमान पोजिशन को छोड़कर पूर्व की ओर चले जाओ, शत्रु सेना तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर पायेगी, तुम्हारी विजय निश्चित हैं। उस सैनिक ने कहा मुझे मातेश्वरी तनोटराय ने स्वप्न में कहा कि तनोट के धोरे में मेरी सातों बहिनो की मूर्ति, तलवार, त्रिशूल, नगारा, धुपिया व आरती दबी हुई हैं इसे निकाल कर पूजा करना। मां के आदेश को मानकर सैनिकों ने धोरे की खुदाई की तो गुमान सिंह के बताये स्थान पर मूर्ति व उक्त वस्तुएं प्राप्त हुई। इससे भारतीय सैनिकों में तनोट माता के प्रति विश्वास में वृद्धि हुई। अब सैनिक माता के बताये अनुसार अपनी पोजिशन बदल कर पूर्व की ओर बढ़ गये। शत्रु सेना ने भारतीय सेना की तैनातगी स्थल पर तोपों के द्वारा धुआंधार गोले बरसाये जहाँ एक दिन पूर्व युद्ध हुआ था वह सैनिक गुमान सिंह सिसोदिया (भोपा) बार बार मोर्चे के बाहर दिन में खुला खड़ा होकर अपने सैनिकों का साहस बढ़ाता रहा तथा युद्ध के दौरान तनोट माता का जयकारे लगता रहा। तीसरे दिन के निर्णायक युद्ध में जब दुश्मन सेना उत्तर की तरफ से तनोट माता मंदिर की ओर आखिरी भयंकर हमला करने को अग्रसर हुई तो मां तनोटराय की असीम कृपा से भारतीय सेना ने शौर्य से लड़कर शत्रु सेना को अपने 500 जवानों की लाशों को युद्ध स्थल पर छोड़कर भागने पर विवश कर दिया, जिनकी कब्रें तनोट युद्ध के मैदान में साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं।

इस युद्ध के दौरान शत्रु सेना ने लगातार 48 घण्टों तक तनोट क्षेत्र में करीब 3000 गोले बरसाये लेकिन मां तनोटराय की असीम कृपा से अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चुक गये। श्री तनोटराय मंदिर को निशाना बनाकर पाकिस्तान सेना ने करीब 450 गोले दागे। परन्तु मां तनोटराय की चमत्कारी शक्ति के फलस्वरूप एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा। यदि कोई गोला फट भी गया तो मंदिर को एक खरोंच भी नहीं आयी। भारतीय सेना के किसी सैनिक को कोई चोट तक नहीं आयी। मां तनोटराय के इस चमत्कार को भारतीय सैनिकों के अलावा पाकिस्तान सेना के सैनिकों ने भी माना कि श्री तनोट माता चमत्कारी देवी शक्ति है। मां तनोटराय के चमत्कार से प्रभावित होकर इस युद्ध में पाकिस्तान सेना की ओर से भाग लेने वाले ब्रिगेडियर शाहनवाज हुसैन ने युद्ध के बाद विजा लेकर भारत आकर तनोटराय मंदिर के दर्शन किये और मां के युद्ध दौरान के अद्भुत चमत्कारों से प्रभावित होकर अपनी श्रद्धा स्वरूप तनोटराय को एक चांदी का छत्र चढ़ाया, जो वर्तमान में आज भी मंदिर में मौजूद हैं। यह छत्र आज भी भारत-पाक युद्ध में तनोट माता के अद्भुत चमत्कार का यशगान कर रहा है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान सेना के द्वारा बरसाये गोले जो तनोट माता की कृपा के फलस्वरूप फटे नहीं। उन गोलों में से कुछ गोले मंदिर परिसर में आज भी श्री तनोटराय के साक्षात् चमत्कार स्वरूप प्रदर्शनी में रखे हुए हैं। श्री तनोट माता के अद्भुत चमत्कार व असीम कृपा से 1965 ई. के भारत-पाक युद्ध में तनोट की लड़ाई में भारतीय सेना की विजय हुई। भारत के प्रमुख समाचार पत्रों में इस विरोचित व चमत्कारी विजय का उल्लेख हुआ। कर्नल जयसिंह राठौड़ थेलासर की वीरता, साहस, धैर्य एवं कुशल नेतृत्व की भारत वर्ष में प्रशंसा हुई। इस गौरवशाली विजय के कारण वे सदैव भारतीय इतिहास में अमर हो गये। इस युद्ध को 20 वी सदी की सर्वाधिक चमत्कारी घटना कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी|

इस विजय के उपलक्ष में भारतीय सेना ने तनोटराय के मंदिर में एक शिलालेख भी स्थापित करवाया है जो तनोटराय के अद्भुत चमत्कार का एक पुरातात्विक व ऐतिहासिक साक्ष्य हैं। इस युद्ध में भारत के किसी सैनिक अथवा पशु मात्र की भी जीवन की क्षति नहीं हुई। केवल एक ऊँट की पूँछ को एक मात्र बम स्पर्श कर सका। 16 नवम्बर 1965 ई. के युद्ध से पूर्व दुश्मन सेना के सैनिक तनोट माता के रास्ते पर माइन्स बिछाने आये थे। पाक सेना के जवानों ने घंटियाळी माता (आवड़ माता का ही एक नाम) मंदिर को अपवित्र करते हुए कुछ प्रतिमाओं को खण्ड़ित कर दिया, मंदिर का सामान तोड़ फोड़ दिया एवं चांदी के छत्र आदि को लूट कर ले जाने जैसी वाहियात हरकत कर डाली। मां घंटियाळी ने तत्काल ही शत्रु सेना को अदृश्य चक्रों से मौत के घाट उतार दिया। मंदिर में तोड़ फोड़ करने वाले सभी 7-8 पाक सैनिक घंटियाळी माता मंदिर के परिसर के भीतर ही दम तोड़ चुके थे। उनकी लाशे केर व फोग के वृक्षों पर उल्टी अवस्था में पड़ी थी। लूटे गये छत्र आदि आस पास ही बिखरे हुए पड़े थे। जैसलमेर के लोक जीवन में ऐसी मान्यता है कि भारत पाक युद्ध के समय पाकिस्तानी सैनिकों को घंटियाळी माता मंदिर में मूर्तियों की तोड़ फोड़ करने के बाद दिखना बंद हो गया। इस पर वे भ्रमित हो गये और आपस में ही लड़कर मर गये। किसी के कोई चोट लगी हुई नहीं थीं, सबके मुंह से खून निकला हुआ था। दूसरे दिन जब भारतीय सैनिकों व स्थानीय लोगों को घंटियाळी माता के इस अद्भुत चमत्कार की जानकारी मिली तो उक्त घटना का बड़ी तेजी से प्रचार प्रसार होने से घंटियाळी माता मंदिर के इस धाम के प्रति लोगों में श्रद्धा भाव बढ़ गया। श्री तनोटराय मंदिर को जाने वाले प्रत्येक यात्री रास्ते में पड़ने वाले इस चमत्कारी मंदिर का दर्शन अवश्य करता है।

श्री तनोटराय मंदिर जैसलमेर से 120 किमी दूर उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान सीमा पर आया हुआ है। भारत-पाक युद्ध (1965 ई. व 1971 ई.) के दौरान भारतीय सेना की तनोट माता ने चमत्कारी सहायता की। इसके परिणामस्वरूप युद्ध के बाद से इस मंदिर की पूजा व्यवस्था का सारा प्रबन्धन भारतीय सेना के हाथ में है। 1965 ई. के युद्ध की तरह 1971 ई. के भारत पाक युद्ध में भी तनोटराय ने भारतीय सेना की चमत्कारी सहायता की जिससे भारतीय सेना पुनः विजय हुई। इस युद्ध की विजय 16 दिसम्बर को होने के कारण भारतीय सेना इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाती हैं। इस ऐतिहासिक विजय की स्मृति में राजस्थान सरकार ने तनोट माता के मंदिर के द्वार पर विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। यह विजय स्तम्भ तनोट माता के चमत्कार स्वरूप दर्शनार्थियों के लिए भारतीय सेना की शौर्य गाथा के प्रतीक के रूप में मौजूद है।

तनोट के युद्ध में तनोट माता द्वारा की गई भारतीय सेना की चमत्कारी सहायता का उल्लेख भगवती श्री आवड़ जी महाराज (ठा. मूलसिंह भाटी) के पृ. स. 60, मारवाड़ की अवतारी देवियाँ (नंद किशोर शर्मा) के पृ. स. 56 से 60, श्री तनोट माता (डॉ अशोक गाड़ी) के पृ. स. 39 से 45 पर अपने ग्रंथों में किया है। उक्त तीनों ही लेखक जैसलमेर जिले के हैं। जिसमें प्रथम दो लेखक तो तनोट युद्ध के समकालीन हैं जिन्होंने तो पाकिस्तानी बमों की गूँज अपने कानों से सुनी हैं। इस चमत्कार का उल्लेख कथा मातेश्वरी तनोटराय (लक्ष्मी नारायण, कमान्डैन्ट BSF) के पृ.स. 11 व विश्व विख्यात मंदिर मातेश्वरी श्री तनोटराय, जैसलमेर (तनोटराय ट्रस्ट BSF) आदि BSF द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में हुआ है। मुझे भी अपने शोध कार्य के सम्बन्ध में सैनिक गुमान सिंह सिसोदिया के गाँव समीचा जाने का अवसर प्राप्त हुआ। तनोट माता के भक्त स्व. गुमान सिंह सिसोदिया के पुत्र हुकम सिंह से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि उनके पिता स्व गुमान सिंह सिसोदिया इस युद्ध में तनोटराय के चमत्कार से इतने प्रभावित हुए कि वे तनोट के धोरे में मिली मातेश्वरी तनोटराय की सप्तामत मूर्ति को सेवाकाल में हरदम अपने पास रखते थे। उनकी जहाँ भी पोस्टिंग रही उन्होंने वहीं पर नई मूर्ति बनवाकर तनोट माता के थान की स्थापना की। उन्होंने देश की सीमाओं पर जोधपुर, बाडमेर (नवा तला), बीकानेर, 1971 ई. भारत पाक के युद्ध बाद जब भारत ने पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के छाछरो पर कब्जा किया था तो उन्होंने छाछरो के रामसर में भी तनोटराय के थान की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने कुल 15 स्थानों पर अपनी सेवाकाल में तनोटराय के नये थान स्थापित किये। वे 30 सितम्बर 1993 ई. को लांसनायक के पद से सेवानिवृत्त हुए तो उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति की पूंजी लगाकर अपने गाँव समीचा (जिला राजसमन्द) में तनोट माता का भव्य मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा 25 फरवरी 1994 ई. (माघ पूर्णिमा) के दिन हुई। इस मंदिर में उन्होनें तनोट के धोरे में प्राप्त मूर्ति को स्थापित किया जो उन्हें युद्ध के दौरान तनोट माता द्वारा स्वप्न में बताये स्थान पर मिली थी। इस मंदिर में धोरे की खुदाई से मिली तलवार, त्रिशूल, नगारा, धुपिया व आरती मौजूद हैं। मातेश्वरी तनोटराय के भक्त सैनिक गुमान सिंह सिसोदिया का स्वर्गवास अभी हाल में 19 जून 2013 ई को हुआ है। मुझे उनके पुत्र हुकम सिंह (वकील साहब) के माध्यम से गुमान सिंह सिसोदिया के साथ उस तनोट के चमत्कारी युद्ध में भाग लेने वाले शिव सिंह राठौड़ सेवानिवृत्त निरीक्षक BSF (कालवा, हाल बीकानेर के तिलक नगर) के मोबाइल नम्बर मिले। उन्होंने मुझे युद्ध में तनोटराय के चमत्कारी सहायता की लिखित सूचना भेजी। उनके अलावा तनोट में गुमान सिंह सिसोदिया के साथ युद्ध के बाद साथ में सेवारत प्रहलाद सिंह झाला (गाँव ताणा, तहसील कपासन, जिला चितौड़ गढ़) के माध्यम से उक्त चमत्कारी सहायता की सूचना प्राप्त हुई। मुझे एक सेवानिवृत्त आर.ए.एस. अधिकारी राजेश जी मिश्रा ने बताया कि उन्हें जैसलमेर के कालू सिंह भाटी (डिप्टी कमान्डेड) ने बताया था कि पाकिस्तान सेना ने युद्ध के बाद कावर्ड डिस के इल्जाम में पाकिस्तान सैन्य अफसर पर कोर्ट मार्शल चलाया था तो उस सैन्य अफसर ने बताया कि जब हम हिन्दुस्तानी सेना को टारगेट करके गोले दागते तो एक हाथ बीच में आ जाता था जो कभी बाँये से दाँये तो कभी दाँये से बाँये घुमता था जो हमारे टारगेट को दिग्भ्रमित कर देता था। इस प्रकार मातेश्वरी तनोटराय द्वारा इस युद्ध में भारतीय सेना की चमत्कारी सहायता को दुश्मन सेना के अधिकारी द्वारा भी माना गया है। आज मातेश्वरी तनोटराय का धाम अपने चमत्कार के कारण सैनिकों की देवी के रूप में विश्व विख्यात हो गया है।

जय तनोट माता
जय आवड़ माता

~~डॉ.नरेन्द्र सिंह आढा (झांकर)
इतिहास व्याख्याता राउमावि घरट सिरोही

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