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क्रांतिकारी ईश्वरदानजी आशिया

क्रांतिकारी ईश्वरदानजी आशिया

 

पूरा नामईश्वरदानजी आशिया
माता पिता का नामपिता जवानसिंहजी आशिया
जन्म व जन्म भूमिआपका जन्म विक्रम संवत 1952 आषाढ़ कृष्णा आठम को ठिकाना मेगटिया, (राजसमन्द) मेवाड़ में
देवलोकगमन
ईश्वरदानजी आशिया 29 जुलाई 1989 को अपने पीछे भरा पुरा परिवार छोड़ कर देवलोकगमन कर गए
अन्य
आप सादा जीवन ऊँच विचार के सिद्धांत के मुल्य को महत्व देते थे। सन् 1920 के बाद आप जीवन भर खादी के वस्त्र पहनते रहे, योग व्यायाम और आधात्म, ध्यान में विश्वास रखते थे, आपने धन कमाने की जगह हमेशा देश सेवा को अपना लक्ष्य बनाया, खेती से अपना गुजारा चला लेते थे! समाज की कुरीति दहेज प्रथा, मृत्युभोज, बाल विवाह, छुआ छूत का हमेशा विरोध किया। आजादी के बाद राजस्थान सरकार ने आपको स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते पेन्शन देने का आग्रह किया तो आपने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मेरे द्वारा देश सेवा में किया कार्य मेरा कर्तव्य था। मुझे इसके बदले कुछ नही चाहिए।

 जीवन परिचय

राष्ट्रभक्त साथियों आज हम बात करते है मेवाड़ पुरोधा ईश्वरदानजी आशिया की। आपका जन्म विक्रम संवत 1952 आषाढ़ कृष्णा आठम को ठिकाना मेगटिया, (राजसमन्द) मेवाड़ के जवानसिंहजी आशिया के घर हुआ जो कवि और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा महाराणा हाई स्कूल उदयपुर से हुई, मगर आप जब पाँचवी कक्षा में थे आपकी माता का देहान्त हो गया, आपके पिताजी के साथ मैयो काॅलेज के एक छात्रावास में रहने लगे, जहाँ जवानसिंहजी देलवाड़ा उदयपुर राज्य का प्रथम ठिकाना राजराणसिंहजी के पुत्र के संरक्षक थे, पिताजी ने आपका दाखिला अजमेर में दयानंद एग्लों वैदिक हाइ स्कूल में दिला दिया। शादी के बाद ईश्वरदान की शिक्षा का दायित्व केसरीसिंहजी ने ले लिया। अब उनकी क्रान्तिकारी शिक्षा का क्रम प्रारंभ हुआ। अपने पुत्र प्रतापसिंह बारहठ के साथ अपने दामाद ईश्वरदानजी को भी सेठी अर्जुनलालजी द्वारा संचालित वर्द्धमान जैन विध्यालय जयपुर भेज दिया। यहाँ अहिंसा धर्म प्रचार के साथ नवयुवको को देश की स्वतंत्रता हेतु सशस्त्र क्रान्तिकारी प्रशिक्षण दिया जाता था।

संस्था के माध्यम से विद्यार्थियो को काल और केसरी जैसे आग उगलते मराठी अखबार पढ़ने को मिलते थे। सेठी जी अपने मनोनुकूल विद्यार्थियों को चुनकर यथेष्ठ स्थानो पर क्रान्तिकारी कार्य के सम्पादन और प्रशिक्षण के लिये भेजा करते थे। इसी क्रम में प्रताप सिंह बारहट, छोटे लाल जी और ईश्वरदानजी आशिया को दिल्ली के अमर शहीद रास बिहारी बाेस के सहयोगी मास्टर अमीर चन्दजी के पास भेज दिया, जहाँ देश की स्वतंत्रता के लड़ने वाले अवध बिहारी, बंसन्त कुमार विश्वास और आजाद हिन्द फौज़ के संस्थापक रास बिहारी बोस और शचीन्द्र के सम्पर्क में आए, जब अमरचन्दजी ने प्रतापसिंह जोरावरसिंह और ईश्वरदानजी को रास बिहारी बोस से मिलवाया तो तब खुश होकर रास बिहारी जी ने कहा, ऐसे उदाहरण तो है कि पिता ने अपने पुत्र को देश की बलिवेदी पर चढ़ने को भेज दिया किन्तु मेरे सामने केसरीसिंहजी का पहला उदाहरण हैं जिसने अपने भाई, पुत्र के साथ अपने जामाता (दामाद) को भी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिये क्रांति के पथ पर भेज दिया। ठा. केसरीसिंह बारहठ को महन्त प्यारे राम की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश सरकार ने राजपुताने के सभी क्रान्तिकारियो को गिरफ्तार करने की मुहिम चला दी।

अर्जुनलाल सेठी, विष्णु दत्त सोम दत्त राव गोपालसिंह को गिरफ्तार कर लिया। प्रतापसिंह को गिरफ्तार कर इन्दौर के पुलिस सुपरिटेन्ट कार्लेकर ईश्वरदान आशिया को मेगटिया गाँव से गिरफ्तार कर उदयपुर ले गए और रियासती पुलिस को सुपुर्द कर दिया। उन्हें बेड़ियो में जकड़ कर रखा और कठोर यातनाएँ दी। तीन महीने की तफ्तिश के बाद सबूत के अभाव में उन्हे रिहा कर दिया। विजयसिंह पथिकजी ने सन् 1920 में समाचार पत्र निकालने का निश्चित किया। यह पत्र मेवाड़ की बजाय वर्धा से प्रकाशित कर और इसका नाम राजस्थान केसरी रखने का निश्चय किया। जिसमें सह सम्पादक की जिम्मेदारी ईश्वरदानजी आशिया ने निभाई। राजस्थान केसरी पूरे देश में बड़ा प्रसिद्ध हुआ। आप मरुभारती के सहसम्पादक भी रहे, मेवाड़ चारण सभा एवं श्री भूपाल चारण छात्रावास, उदयपुर की संस्थापना में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया। अखिल भारतिय चारण सम्मेलन के मुख्यपत्र ‘चारण’ के सम्पादक भी रहे। आप वीर सतसई के सम्पादको में भी रहे। आपने कोलकाता साहित्य शोध एवं संग्रह सम्बन्धित कार्य सम्पन्न किया। आपकी रूची हिन्दी, डिंगल और गुजराती साहित्य में रही। आप हिन्दी अंग्रेजी मराठी गुजराती डिंगल पिंगल बांग्ला भाषा पर अच्छी रूची और पकड़ रखते थे। आप जब सातवी कक्षा में थे, तब आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया, आपने बचपन से दुख देख कर भी सहनशील, स्वावलम्बी, बने रहे और खेती का कार्य करने लगे। खेतो के विवाद के झगड़े में बीच बचाव में आप अपना दाहिना हाथ हमलावर के हथियार के वार से गंवा बैठे। मगर एक हाथ से ही लेखन कार्य करते रहे! बिजोलिया किसान आन्दोलन के प्रणेता विजय सिहँ पथिक से ईश्वरदानजी का मिलन उस समय हुआ जब वे फरारी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। इसी समय उन्होने काँकरेली के पास भाणा ग्राम में पाठशाला स्थापित की। सरकार की आँखों से बचने के लिये वे मेवाड़ में मोही के ठाकुर डुंगरसिंह भाटी की प्रेरणा से कंवर अमरसिंहजी के शिक्षक बन गए।

आप सादा जीवन ऊँच विचार के सिद्धांत के मुल्य को महत्व देते थे। सन् 1920 के बाद आप जीवन भर खादी के वस्त्र पहनते रहे, योग व्यायाम और आधात्म, ध्यान में विश्वास रखते थे, आपने धन कमाने की जगह हमेशा देश सेवा को अपना लक्ष्य बनाया, खेती से अपना गुजारा चला लेते थे! समाज की कुरीति दहेज प्रथा, मृत्युभोज, बाल विवाह, छुआ छूत का हमेशा विरोध किया। आजादी के बाद राजस्थान सरकार ने आपको स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते पेन्शन देने का आग्रह किया तो आपने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मेरे द्वारा देश सेवा में किया कार्य मेरा कर्तव्य था। मुझे इसके बदले कुछ नही चाहिए। सही बात भी मातृभूमि की सेवा की क्या कीमत कोई दे सकता है। एक जनम क्या हर जन्म भी अपनी मिट्टी के लिये न्योछावर कर दे तो कम है। सच्चे देश भक्त की यही तो पहचान होती है। दुनिया में हम आए है तो कुछ ऐसा करके जाए की सदियाँ याद रखे ईश्वरदानजी आशिया भी 29 जुलाई 1989 को अपने पीछे भरा पुरा परिवार छोड़ कर देवलोक गमन कर गए।

–प्रेषक – महेंद्रसिंह चारण (चारणत्व)

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