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माँ गीगाई

माँ गीगाई

 

पूरा नाममाँ गीगाई
माता पिता का नामजोगीदासजी बीठू के घर सांपू कंवर की कोख से गीगाईजी महाराज ने जन्म लिया।
जन्म व जन्म स्थानविक्रम संवत 1730 आषाढ सुद पाचंम को नागौर जिले की मकराना तहसील के इन्दोखा गांव में
स्वधामगमन
 
विविध

माताजी के दो भाई थे, खुडद धणियाणी श्री इंद्र बाईसा भी हर माह की चानणी पाँचम को इन्दोखा पधार कर गीगाई माँ के दर्शन और जोत करते थे और ईन्द्र बाईसा का वचन था की मेरे बाद भी मेरे पिता के वंसज यंहा आयेंगे, उस वचन को निभाते हुए पहले माताजी के भाई अम्बादान जी पाँचम को पधारते थे और अब भेरू दान जी पधारते हे !

 जीवन परिचय

हिंदू धर्म में जगत के कल्याण हेतु समय – समय पर शक्तियां अवतरित होती रहती हैं ! मगर सभी जातियों का मूल्यांकन किया जाए तो भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा शक्ति अवतरण का गौरव चारण जाति को प्राप्त हैं ! इसका मूल कारण चारणों का शक्ति उपासक है ! इसी अवतरण की कड़ी में विक्रम संवत 1730 आषाढ सुद पाचंम को नागौर जिले की मकराना तहसील के इन्दोखा गांव में जोगीदासजी बिट्ठू के घर सांपू कंवर की कोख से गीगाई जी महाराज ने जन्म लिया ! जन्म के समय से ही माता – पिता को यह विश्वास हो गया था कि यह एक शक्ति अवतरण है ! माताजी के दो भाई थे जिसमें छोटा भाई रतनसिंह था ! आपका ननिहाल लुणावास चारणान है वहां भी आप की मूर्ति स्थापित हैं गीगाई जी शुरू से ही खोडियारजी के उपासक रहे थे ! कहा जाता है कि बचपन से ही देवी करणीथला नामक औरण में नौलाख लोवडियाल के संग अखाड़ा रमते थे यह औरण आज भी कल्याणपुरा व मनाणी के बीच मकराना नागौर सड़क के उत्तरी तरफ मौजूद हैं ! यह जगह पावन है तथा तत्कालीन श्री गीगाई जी का रमणीक स्थल है ! रात्रि के समय गीगाई जी अखाड़े में अकेले ही जाया करते थे तथा सुबह 4 बजे तक नौ लाख लोवडियाल के संग रमण करते थे !

खुडद धणियाणी श्री इंद्र बाईसा भी हर माह की चानणी पाँचम को इन्दोखा पधार कर गीगाई माँ के दर्शन और जोत करते थे और ईन्द्र बाईसा का वचन था की मेरे बाद भी मेरे पिता के वंसज यंहा आयेंगे, उस वचन को निभाते हुए पहले माताजी के भाई अम्बादान जी पाँचम को पधारते थे और अब भेरू दान जी पधारते हे !

इन्दोखा धाम छोटी खाटू से 21 किलोमीटर, डीडवाणा से 36 किलोमीटर, नागोर से 100 किलोमीटर, डेगाणा से 45 किलोमीटर, मकराणा से 38 किलोमीटर और खुड़द धाम से 15 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हे !
माताजी महाराज ने कई परचे परवाडे दीये जो जग प्रसिद्ध हे —

गायों की गिनती छुडवाना–
विक्रम संवत 1737 की बात है जब गीगाई जी महाराज 7 वर्ष के थे, उस समय मुग़ल सल्तनत में गायों की गिनती कर टैक्स लगाने का फरमान जारी किया था जिसमें जो टैक्स अदा नहीं करेगा उसकी गायों को जप्त कर लेने का निर्णय था ! इन्दोखा की गायों की गिनती का केंद्र नावद रखा था जो इन्दोखा से 3 किलोमीटर की दूरी पर है ! एक दिन शाम को इन्दोखा ठाकुर साहब जोगीदास जी बीठू को मुगलों का सिपाही आकर सूचित कर गया कि कल सभी गायों को नावद ले कर आवे और गिनती करवावे इस बात को पास में खड़े सात वर्षीय गीगाई जी ने सुन लिया, तभी से गीगाई जी जोगीदास जी के सामने जिद करने लगे कि मैं भी आपके साथ नावद आऊंगी, मगर जोगीदास जी ने मुसलमानों का हवाला देते हुए गीगाई जी को स्पष्ट मना कर दिया ! जोगीदास जी सुबह 4 बजे उठे और अन्य लोगों के साथ गायों को लेकर नावद के लिए रवाना होने लगे ! उसी समय गीगाई जी जाग गए और साथ आने की फिर से जिद करने लगे तो जोगीदासजी ने गीगाई जी को एक कमरे में बंद कर दिया और गायों को लेकर रवाना हो गए और जब नावद पहुंचे तो आगे गीगाई थी महाराज को खेलते देख जोगीदास जी आश्चर्यचकित रह गए ! जब सारी गायें एकत्रित हो गई तो बादशाह के वजीर गिनती करने लगे उसी वक्त गीगाई जी ने ऊंचे स्वर में कहा कि ठहरो गिनती में करुंगी, यह आवाज वजीरों को दोनों तरफ से सुनाई दी जिससे सारे मुसलमान कांप गए तभी माताजी ने एक बछड़े के पास जाकर कहा उठो मेरे शेरो, इतने में सारे गाय और बछड़े शेर बन गए उस समय का एक दोहा है —

सैपत वर्षा सात परवाडो कीधो प्रथम !
हद सिर देतां हाथ बाघ थया जद बाछडा॥

गीगाई जी ने 7 वर्ष की आयु में यह पहला परचा दिया था ! सभी गायों और बछड़ों को शेर के रूप में देखकर सारे मुसलमान घबराकर अजमेर भागे और पूरा हाल अजमेर सम्राट को सुनाया अजमेर सम्राट अत्याचारी था ! उसने गायों की गिनती छोड़ चारणों की गिनती शुरू करवा दी क्योंकि वह राजबाई के नव रोजा छुड़ाने की घटना से अवगत था, इसीलिए उसने संपूर्ण चारणों का अंत करने की ठान ली ! बादशाह के आदेश से सेना ने सभी चारणों को अजमेर बुला लिया ! कहा जाता है कि उस समय चारण गले में जनेऊ की तरह ऊन की कंठी पहनते थे, उस परकोटे में ईतने चारण इकट्ठे हो गए की कन्ठियों का वजन सवा मण हुआ था ! उस परकोटे में श्री गीगाई जी का काके के लड़के प्रभु दान भी थे उन्होंने उसी परकोटे में चिरजा बनाई जो आज भी सुविख्यात हैं

गीगल गाय रुखाली, आज कांई बाघ थक्यों बिरदाली !

भक्तों की करुण पुकार सुनकर श्री गीगाई शेर पर सवार होकर हाथ में त्रिशूल ले बादशाह के महल पहुंच गए ऐसा विकराल रूप देखकर बादशाह देवी के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा कि चारण तो आज मुक्त हे ही अपितु गायों की गिनती भी आज के बाद नहीं करुंगा !

श्री गीगाई जी का विवाह–
ज्यो ज्यो माताजी व्यस्क होने लगे जैसे जैसे पिताजी को गीगाई मां के विवाह की चिंता सताने लगी कुछ समय बाद वे जोधपुर के पास *सिलारिया* नामक गांव में रतनु शाखा के चारण से उनका विवाह तय किया तब माताजी की उम्र 25 वर्ष थी, कुछ समय पश्चात धूमधाम से विवाह करवाया गया और बारात विदा की, जब बारात इन्दोखा से 2 किलोमीटर पश्चिम की ओर पहुंची तब श्री गीगाई जी ने सारथी को रथ रोकने को कहा लेकिन उनके पति ने मना कर दिया, उस समय रथ अपने आप रुक गया रथ चारों ओर से बंद था तब गीगाई जी के पति ने रथ का पर्दा उठाया तो रथ मे शेर बैठा नजर आया और उसके पास मां शक्ति हाथ में त्रिशूल ले बैठी थी यह देख उनके पति पर्दे को छोड़ दूर जाकर खड़े हो गए देवी ने पर्दा उठा कर पति को कहा कि मैं इस लोक में सांसारिक सुख भोगने नहीं आई हूं अपितु राजा और महाराजाओं को अपने भूले हुए कर्तव्यों का बोध करवाने आई हूं मैं आपकी सहधर्मिणी जरुर हूं मगर आप मुझसे ग्रहस्थ संबंध नहीं रख सकते ! मैंने सिर्फ हिंदुत्व की मर्यादा रखने के लिए विवाह किया है इससे पहले माता जी का ऐसा स्वरुप देखकर सारे बाराती भाग गए और बाद में माताजी के पति भी रथ लेकर चले गए ! बड़े तो सभी भाग गए लेकिन बच्चे नहीं भाग सके और रोने लगे तब माताजी उन्हें सांत्वना देकर बिठाया, थोड़ी देर में बालकों को प्यास लगी तब गीगाई जी ने अपने हाथों से छोटा सा कुंड खोदा जिसमें पानी आ गया और सदा के लिए ही पानी रहने लगा ! कहा जाता है कि जब तक मां का शरीर रहा उस में पानी भी रहा था मगर बाद में एक वनवासी औरत के काँचली धोने से वह पानी सूख गया उस जगह एक छोटा सा ओरण है उसे कुंड वाला ओरण कहते हैं !

मनाणा ठाकुर का अन्त–
एक बार मनाणा ठाकुर अमर सिंह इन्दोखा आए थे आ कर वापस जा रहे थे तब इन्दोखा निवासी जगत सिंह मेड़तिया ने अपने मोती नामक कुत्ते को अमर सिंह के पीछे कर दिया और मोल्या-मोल्या कह कर ताना दिया, अमर सिंह को गुस्सा आया तो वापस आकर जगत सिंह का वध कर दिया तब जगत सिंह का 10 वर्षीय पुत्र मानसिंह साथ मे था ! उसने प्रण ले लिया की पिता का बदला लेकर ही बाल कटवाऊंगा ! धीरे धीरे मानसिंह व्यस्क हुआ एक दिन किसी काम से मनाणा जाकर वापस आ रहा था रास्ते में खेतों में काम कर रही औरतों ने लंबे बाल रखने का कारण पूछा तो मान सिंह ने जवाब दिया कि ठाकुर अमर सिंह से बदला लेकर बाल कटवाने का प्रण है तब औरतों ने ताना दिया की क्यों जुँए पाल रहा है, क्योंकि अमर सिंह एक क्रूर और शक्तिशाली ठाकुर था उसी समय मान सिंह ने आत्महत्या करना ही उचित समझा और इन्दोखा आकर गीगाई मां के चरणों में गिर पड़ा और बोला की मां मैं आपके सामने ही आत्महत्या करुंगा क्योंकि ठाकुर को मारना असंभव है और जहां भी जाता हूं लोग बालों को ले कर ताना मारते हैं तभी गीगाई जी ने आशीर्वाद दिया कि जा मेरे छोटे भाई रतन सिंह को साथ ले जा और आज ही मनाणा ठाकुर का वध करके आ जा और कहां की तुम्हें रास्ते में एक गीदड मिलेगा उसके मुंह में बकरे का सिर होगा उसे तुम गिरवा कर प्रसाद रूप में खा लेना और जो नहीं खाएगा वह मनाणा से जिंदा वापस नहीं आएगा, तुम ज्यों ही मनाणा में प्रवेश करोगे बच्चे खेलते हुए यह कहते मिलेंगे की ‘बढ भागी ने मार ल्यो’ तो तुम समझना तुम्हारी जीत निश्चित है तदंतर तीन व्यक्ति मानसिंह, रतन सिंह बिठु व मांगू राम जाट ठाकुर से लोहा लेने रवाना हुए, रास्ते में माता जी के कहे अनुसार सगुन होते गए और मनाणा पहुंच गए रास्ते में जो गीदड के मुंह से बकरे का सिर मिला उसे दोनों ने तो प्रसाद के रूप में खा लिया मगर मांगू जाट ने नहीं खाया था ! ठाकुर के द्वार पर एक बड़ा कींवाड था उसे खोलने के लिए मांगू जाट ने सर पर साफा बांधकर टक्कर मारी जिससे कींवाड तो टूट गया मगर उस जाट की मृत्यु हो गई ! संयोगवश मनाणा की फौज कहीं बाहर थी और ठाकुर घर पर थे उसी वक्त मानसिंह ने ठाकुर का सिर कलम कर दिया और सिर को लेकर इन्दोखा की तरफ आ ही रहे थे कि सामने से गीगाई जी पधार गए गीगाई जी ने कहा कि यह ठाकुर का सर साथ क्यों लाए ठाकुर का अंतिम संस्कार कैसे होगा और रानी तुम्हें श्राप दे देगी, ऊसी वक्त सिर को तो वापस पहुंचा दिया मगर 15000 सैनिकों ने इन्दोखा पर आक्रमण कर दिया और दोनों में घमासान युद्ध हुआ अंत में मानसिंह व रतन सिंह बीठू के सर कट गए तब वह झूझ गए तथा झुझार हो 161 सैनिकों के सिर काट दिए और जंहा रतन सिंह का धड़ गिरा वहां आज एक चबूतरा है जिसे आज लोग बड़ी श्रद्धा के साथ मानते हैं !

महाप्रयाण–
अंत में माताजी महाराज ने जब अपनी देह छोड़नी चाहि तो अपने भाइयों के सम्मुख कहा कि जहां बांध्या वहीं छोड़ना अर्थात मेरा यह शरीर ससुराल सिलारिया में हीं छोडूंगी, तब भाइयों ने व्याकुल हो कहा कि माताजी फिर हमारा कौन है, तब मां ने खेजड़ी के सूखे ठूंठ के ऊपर जल के छींटे दिए जिससे वह खेजड़ी हरि होने लगी और कहा कि इसे ही मेरी देह समझना, जो आज कलयुग में भी माताजी की देह रूपी खेजड़ी हरि है और इसकी पूजा की जाती है सारी उम्र पीहर में बिताकर 102 वर्ष की उम्र में माताजी सिलारिया पहुंच गए और एक-दो दिन रहने के बाद इस नश्वर देह को समाधि समर्पित कर दिया !

धन्य गाँव इन्दोखा जहां माता जी महाराज गीगाई जी ने जन्म लिया

साभार – श्री गीगाई चरित्र और इन्दोखा सिरदारो द्वार दी जानकारी

~ प्रेषित गणपत सिंह चारण मुण्डकोशिया

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