पूरा नाम | चारण भक्त कवि श्री सांयाजी झूला |
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माता पिता का नाम | पिता – स्वामीदासजी, |
जन्म व जन्म स्थान | विक्रम संवत 1632 भाद्रपद विद नवमी को जागीर ग्राम लीलछा में |
स्वर्गवास | |
अन्य | |
आपके भाई का नाम भांयाजी था व आपके चार पुत्र थे ! सांयाजी की संतान सांयावत झुला कहलाये और भांयाजी की संतान भांयावत झुला कहलाये ! | |
जीवन परिचय | |
भक्त कवी श्री सांयाजी झुला ~गणपतसिंह मुण्डकोशिया ईडर राजमंत्री कुवावा जागीरदार महात्मा सांयाजी झूला चारणो की वरसडा शाखा मे एक महापुरुष हुए जीनका नाम ठाकुर आल्हाजी वरसडा। आल्हाजी को कच्छ के शासक ने एक बडा सा झुले पर बैठा सोने का हाथी भेंट कर दरबार मे सन्मान दीया। तब से वे झुला कहलाए। ठाकुर आल्हा जी झुला को गुजरात के महान शासक सिध्धराज जयसिंह ने उनकी विध्वानता की एवज मे लीलछा सहीत 12 ग्राम का पट्टा जागीर मे दीया। आल्हाजी की वंश परंपरा मे विक्रम संवत 1632 भाद्रपद विद नवमी को जागीर ग्राम लीलछा में स्वामीदासजी के घर महात्मा भक्त कवि श्री सांयाजी झुला का जन्म हुआ। उनके भाई का नाम भांयाजी था । सांयाजी की संतान सांयावत झुला कहलाये और भांयाजी की संतान भांयावत झुला कहलाये। नागदमण और रुक्मणीहरण नामक दो महान ग्रंथ के रचियता सांयाजी ईडर के राज दरबारी कवी थे। महात्मा सांयाजी अनन्य कृष्ण भक्त थे। सांयाजी झुला कुवावा के जागीरदार थे। राव कल्याणमलजी ने विक्रम संवत 1661 मे सायांजी झुला को 2 हाथी और लाखपसाव भेंट सहीत आलीशान कुवावा ग्राम जागीरी मे दीया। सांयाजी को 8 -घोडे, 6 – हाथी, और उठण / बेठण रो कुरब की ताजीम के सन्मान ईडर दरबार से एनायत थे। सांयाजी को बीकानेर राजा रायसिंहजी ने लाखपसाव और 2 हाथी,जोधपुर राजागजसिंहजी ने 13 शेर सोने का थाल,एवं लाखपसाव और ईडर से 6 बार लाख पसाव का सन्मान प्राप्त हुआ था। सांयाजी ने अपनी जागीर कुवावा में गोपीनाथ मंदिर, मंठीवाला कोट, किल्ला (गढ, दुर्ग) तथा बावड़ियां बनवाई थी। कुवावा के दुर्ग मे उनका निवासस्थान (खन्डेर अवस्था मे) आज भी विध्यमान है। ईडर रीयासत मे मुडेटी के ठाकुर ने अंग्रेजो से बचने के लीए ईस कीले मे शरण ली थी।और सांयावतो ने उनकी रक्षा कर अंग्रेजो से उनका बचाव कीया था।ईस अहेसान को आज तक मुडेटी वाले मानते है। आज सांयाजी झुला के वंशज कुवावा के जागीरदार है और उनकी दया से कुवावा मे बहोत समृध्धी है। कुछ सायावत झुला वागड प्रदेश (राजस्थान) से जुड़े हुए थे तो उनको वागड मे जागीरी प्रदान हुई । वे कुवावा से वहाँ जा बसे,आज वागड (राजस्थान) मे साँयावत झुला के नरणिया, मकनपूरा, माकोद, गामडा, चूंडावाडा, ठिकाने है। जीवन के अन्तिम वर्षों में ब्रजभूमि जाते वक्त मार्ग में श्रीनाथद्वारा में श्रीनाथ दर्शन करने गये। वहां इन्होंने तेर सेर सोने का थाल प्रभु के चरणों में धरा था। जो आज भी विद्यमान है। उस दिन से आज तक वहां तीन बार आवाज पड़ती है “जो कोई सांयावत झूला हो वो प्रसाद ले जावें”। मृत्यु के अंतिम दिन मथुरा में एक हजार गाये ब्राह्मणों को दान दी तथा हजारों ब्राह्मण गरीबों को भोजन करवाकर हाथ जोड़कर श्री कृष्णचंद जी की जय कर इन्होंने महाप्रयाण किया। एक समय शाम को सांयाजी ईडर नरेश राव कल्याणमल जी की कचहरी में बेठे थे अचानक सांयाजी स्थिर हो गए और दोनों हाथों को जोर-जोर से रगड़ने लगे। सांयाजी की इस विचित्र क्रिया को देख राजा सहित सभा अचंभित रह गयी। थोड़े समय पश्चात सांयाजी हाथ रगड़ते बंद हुए और दोनों हाथो को अलग किये तो दोनों हाथ काले हो गए थे व हाथो में छाले हो गए थे। इन हाथो को देखकर राजा और प्रजा और ज्यादा अचंभित हुए। राणा जी से रहा नहीं गया तो सांयाजी से पूछा कि आप एक घडी तक स्तब्ध होकर क्या कर रहे थे जिससे आपकी हथेलियां काली पड गई और छाले पड गए, कृपा कर कविराज हमें बतावे। तब सांयाजी बोले हे रावजी इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं, द्वारिका में श्री रणछोड राय की आरती उतारते समय पुजारी के हाथ में पकड़ी आरती की बाती से गिरे तिनके के कारण रणछोड राय के वाघो (कपड़ो) में आग लग गई तो इस घटना से मुझ सेवक को दृष्टीगोचर होने से दोनों हाथो से रगड़ कर आग बुझाने से मेरे हाथ काले हुए और छाले पड़े। इस वक्तव्य पर राणाजी को विश्वास नहीं हुआ तो दुसरे ही दिन अपने विश्वासपात्र राठोड चांदाजी को इस घटना की सत्यता का पता लगाने के लिए द्वारिका भेजा। संदर्भ:- नागदमण – हमीरदान मोतीसर ~जयपालसिंह (जीगर बऩ्ना) सिंहढायच ठि.थेरासणा |
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- नागदमण – सांयाजी झूला
One Response
Jay ho sayaji dada
મારા પર મને ગર્વ છે કે હું સંત શિરોમણી સાયાજી ઝૂલા દાદા નો વંશજ છું ♥️🙏🙏