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श्री भूपाल चारण छात्रावास उदयपुर

श्री भूपाल चारण छात्रावास उदयपुर

इतिहास: राजस्थान में चारण छात्रों के लिए शिक्षा का सामुहिक प्रयास सर्वप्रथम उदयपुर में कविराजा श्यामलदास जी के प्रयासों से संवत 1937 (सन 1880) में हुआ। कविराजा श्यामलदास के गुणों से उदयपुर के महाराणा सज्जनसिंह जी इतने प्रभावित थे कि वे राजपूत जाति व राजपूत राज्यों के लिए समस्त चारण जाति को ईश्वरीय देन समझने लगे। उनके मन में यह दृढ़ हो गया कि राजपूत जाति को पतन से रोकना है तो पहले चारणों को सुशिक्षित करना चाहिए। इनसे बढ़कर निर्भिक सलाहकार, पूर्ण विश्वस्त और शुभचिंतक अन्य कोई नहीं हो सकता। इस बात को वे जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह जी और महाराजा कृष्णगढ़ शार्दुल सिंह जी को अनेक बार कहा करते थे। इसी विश्वास व संस्कार के कारण व कविराजा की प्रार्थना पर महाराणा सज्जनसिंह जी ने क्षत्रियों की वार्षिक आमदनी का दशमांश हिस्सा जिला हाकिमों की मार्फत मंगवा कर चारण पाठशाला के नाम से शिक्षाकेंद्र बनवा कर उसमें चारणों के लड़कों की पढ़ाई में खर्च करने का निश्चय किया। तदनुसार सम्वत 1937 (सन 1880) में पाठशाला और छात्रालय की थापना हुई जिसमे छः मास्टर नियत किए गए, साथ में नौकरों, पठन पाठन की सामग्री, छात्रों का भोजन वस्त्र आदि समस्त खर्च राज्यकोष से दिया जाने लगा। जब तक पाठशाला एवं छात्रावास का स्वतंत्र भवन नहीं बना तब तक उमराव सरदारों की हवेलीयों में काम चलाया जाता। सबसे पहले सौदा बारहठों के गांव राबछा में पहाड़ जी की हवेली में इसका श्री गणेश हुआ, जिसमें क्रांतिकारी केसरी सिंह जी बारहठ ने भी शिक्षा प्राप्त की थी।

प्रत्येक सोमवार को जहां महाराणा की इच्छा होती वहां चारण छात्रों सहित, बड़े बड़े साहित्यकारों विद्वानों के साथ सभा होती जिसमें साहित्य रसज्ञ ठाकुर मनोहर सिंह जी डोडिया (सरदारगढ़), स्वामी गणेशपुरी जी, मोड़ सिंह जी महियारिया, फतहकरण जी उज्जवल जैसे महान विद्वानों एवं शहर के अन्य कवियों के साथ महाराणा स्वयं सभाध्यक्ष पद पर आसीन रहते। यह व्यवस्था चार साल तक चली उस समय एक सौ से अधिक चारण छात्र एकत्रित हो चुके थे क्योंकि बालकों को लाने का काम स्वयं कविराजा शामलदास जी करते थे। ये चारण जाति के लिए स्वर्णिम काल था।

परन्तु ईश्वर की सृष्टि में विभिन्न स्वभावों के व्यक्ति होते हें। इतनी सुविधाएं होने पर भी अनेक चारण अपने बालकों को नहीं भेजते थे। विवश होकर कविराजा जिला हाकिमों द्वारा पुलिस व जागीरी सवार भेजकर लड़कों को पकड़वा मंगाते। उस समय का द्रश्य दु:ख और करूणा से भरा हुआ था। दुःख था चारणों के मुर्खतापूर्ण मोह पर व करूणा थी बालकों के रूदन को शतगुणित करने वाले घर के भीतर माता, भुआ, बहिन, पिता भाई दादा आदि के बूढ़ क्रंदन पर। बालक का एक हाथ होता सवार के हाथ में व दुसरा हाथ होता पिता व अन्य परिजनों के हाथ में। इस प्रकरण में सहस्त्रों गालियां पड़ती कविराजा जी को एवं उनके घर वंश को। कल्पना की जा सकती है कि किन विपरीत परिस्थितियों में चारण समाज में शिक्षा हेतु कविराजा ने अथक प्रयास किए।

चारण छात्रावास के लिए चल रही इस इस संस्था को महाराणा आदर्श रूप देना चाहते थे, इस हेतु जयपुर एवं जोधपुर के महाराजा भी प्रेरित हों ऐसा प्रयास महाराणा ने किया। पाठशाला और छात्रालय के स्वतंत्र भवन बनाने का निश्चय हुआ इसके लिए महाराणा साहब ने अपने प्रिय सज्जन निवास नामक बाग के पास 5:30 बीघा जमीन माफी में प्रदान की एवं इस भवन के लिए मेवाड़ के उमराव सरदारों से चंदा इकट्ठा किया। जितना चंदा इकट्ठा हुआ उतने ही रुपए राज्य से दिए गए किंतु भवन के लिए ₹100000 से कम नहीं हो एसा महाराणा चाहते थे। कविराजा को किसी से कुछ मांगने की चिढ़ सी थी परंतु जाति सेवा में चंदा मांगना स्वीकार किया। उनके प्रभाव और समझाने की खूबी से सब बड़े उमराव सरदारों ने उत्साह और उदारता से चंदा दिया। थोड़े ही अरसे में करीब ₹40000 एकत्र हो गए और पाठशाला का निर्माण प्रारंभ हुआ। संवत 1948 के चैत्र में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी और कृष्णगढ़ के महाराजा सार्दुल सिंह जी उदयपुर में मेहमान होकर आए तब महाराणा दोनों अतिथि नरेशों के साथ पाठशाला का प्रारंभिक निर्माण देखने गए वहां उन्होंने जोधपुर महाराजा से कहा कि यह भवन तैयार हो जाने पर मैं आपको फिर उदयपुर बुलाऊंगा और इसका उद्घाटन आपके हाथों से होगा इस प्रकार आप भी जोधपुर में चारण पाठशाला निर्माण कराएं जिसका उद्घाटन में करूंगा। चारणों के लिए यह एक शुभ संयोग चल रहा था। दोनों महाराजाओं ने बड़ी प्रसन्नता से यह प्रस्ताव स्वीकार किया कि अपने अपने राज्य में चारण छात्रावास बनाएंगे।

किंतु विधि को कुछ और ही मंजूर था। दुर्भाग्यवश महाराणा सज्जन सिंह जी का असामयिक स्वर्गवास हो जाने के कारण ₹40000 में से ही 30000 लगाकर जितना बन सका उतना पाठशाला भवन खड़ा कर दिया तथा यह मधुर स्वप्न टूट गया। जमा जमाया मंडप छिन्न-भिन्न हो गया। इधर तो नासमझ चारण माता पिता मौका पाकर अपने लड़कों को भगा ले गए व कुछ ठिकानों के जागीरदार कविराजा श्यामलदास जी से जलते थे उन्होंने भी मौका पाकर पाठशाला के लिए राशि देना बंद कर दिया। राज्य का हाथ भी शीतल हो गया परिणामतः पक्षी उड़ गए और सूखा सरोवर रह गया।

परंतु विद्या के महत्व पर मुग्ध कविराजा अपनी संतान को पठन-पाठन से वंचित कैसे रखते अतः ₹10 मासिक कविराज जी ने ₹10 मासिक बारहठ कृष्ण सिंह जी ने और ₹10 मासिक ठाकुर चमन सिंह जी ने घर से देना तय करके ₹30 मासिक तनख्वाह पर काशी से दक्षिण ब्राह्मण पंडित गोपीनाथ शास्त्री को बुलाकर 6 बालकों को पढ़ने-पढ़ाने की पुनः शुरुआत की। कविराजा के दत्तक पुत्र यशकरण जी, बारहट कृष्णसिंह जी के पुत्र केसरीसिंह और किशोरसिंह जी, ठाकुर चमनसिंह जी के पुत्र करणीदान जी एवं भैरव सिंह जी तथा कविराजा जी के साढू के पुत्र आशिया चाळक दान जी को अध्ययन के लिए पंडित गोपीनाथ जी को सुपुर्द किया।

यह स्थिति कविराजा साहब और बारहठ कृष्णसिंह जी को संतोषप्रद न थी अतः आखिर उन्होंने तत्कालीन महाराणा फतेहसिंह जी से अर्ज की कि “हमारे लड़कों को तो हम अपने खर्च से पढ़ा लेंगे परंतु पाठशाला बंद हो जाने से चारणों के दूसरे लड़के अनपढ़ रह जाएंगे इसमें हुजूर की बदनामी होगी कि महाराणा सज्जन सिंह ने कृपा करके पाठशाला जारी कि वह महाराणा फतेहसिंह जी के जमाने में बंद होकर रह गई इसलिए ज्यादा नहीं तो सिर्फ शिक्षकों की तनख्वाह के लायक खर्च राज्य सरकार देवें बाकि खुराक पुस्तकें आदि का खर्च लड़कों के माता-पिता देंगे”।

महाराणा को यह बात पसंद आई और संवत 1943 पौष शुक्ल बीज अपने जन्मदिन के उत्सव पर महाराणा फतेहसिंह पाठशाला के भवन में पधारे और उदघाटन किया एवं अध्यापकों की तनख्वाह के लिए 12 रोज सदा राज्य से मिलते रहने का आदेश दिया। कालांतर में बहुत समय पश्चात पाठशाला पर ताला पड़ गया। लंबे समय पश्चात जाति हितेशियों की सच्ची लगन के सतत प्रयत्न के परिणाम स्वरुप उस पाठशाला का रूपांतर श्री भूपाल चारण छात्रावास के रूप में स्थापित हो गया। महाराणा भूपाल सिंह जी ने उस पाठशाला (वर्तमान गुलाब बाग) के भवन बाड़ी को तो राजकीय मोटर गैराज बनाने के लिए जप्त कर लिया और उसके बदले में भवन की कीमत के ₹30000 की जमीन सूरजपोल बाहर हवाले (वर्तमान चारण छात्रावास) में प्रदान कर दी जिसमें छात्रालय बन जाने पर संवत 1994 चैत्र कृष्ण अष्टमी गुरुवार को स्वयं पधारकर उसका उद्घाटन किया और ढाई सो रुपए वार्षिक राजकीय सहायता करते रहने की आज्ञा प्रदान की तब से यह श्री भूपाल चारण छात्रालय चल रहा है।

पता: शक्ति नगर, उदयपुर, राजस्थान 313001

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