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कविराज जूझारदान दैथा ‘मीठड़िया’

कविराज जूझारदान दैथा ‘मीठड़िया’

पूरा नामकवि जूझारदान दैथा ‘मीठड़िया’
माता पिता का नामकविराज का जन्म प्रेमदान देथा के घर हुआ व इनकी माता का नाम लाछाबाई था.
जन्म व जन्म स्थानजन्‍म सिंध प्रांत के अमरकोट जिले के केशराड् नामक गांव में विक्रम संवत १९३२ को
स्वर्गवास
 
अन्य
 

 जीवन परिचय

साहित्य सृजन एक अद्वितीय विधा है, जो कि सदैव शाश्वत रहती है। यदि बात करें “चारण” समुदाय की तो, उसकी तो संस्कृति में भी काव्य का समन्वय शामिल हैं। इस समाज में हमेशा बड़े विद्वानों ने अवतरण लिया है- महाकवि ईश्वरदास जी बारहठ, आशाजी बारहठ, सूर्यमल्ल मिशण, दुरसा आढा, वहीं धाट-पारकर में भी अनेक कवि हुए जिनमे कविराज खेतदान, कविराज खूमदान इत्यादि। इन्हीं शृंखला में नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है स्वर्गीय कविराज जूझारदानजी देथा भी एक महान कवि अवतरित हुए।

कविराज जूझारदान जी का जन्‍म सिंध प्रांत के अमरकोट जिले के केशराड् नामक गांव में विक्रम संवत १९३२ को  प्रेमदान देथा के घर हुआ। इनकी माता का नाम लाछाबाई था। कविराज का ननिहाल बाड़मेर स्थित भादरेश गांव में था।

बाल्यकाल से ही डिंगल (मारवाड़ी का साहित्यिक रूप) भाषा में रचनाओं का सृजन करना इनकी रुचि का एक हिस्सा रहा। किशोरअवस्था में इनके स्वास्थ्य ने यू टर्न लिया, और कविराज एक अमर बीमारी “से पीड़ित हो गए, जिंदगी एक बिस्तर से ढांचे में रहने लगी, अंततः उन्होने  गांव स्थित माँ जोमा जी के मंदिर में जीवन बिताना स्वीकार किया। हमेशा भक्ति भाव से संपूर्ण आध्यात्मिक रूप से मां के श्री चरणों में वंदन किए रहते।एक दिन मां ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और उन्हें स्वस्थ्य होने का वचन तथा साथ ही “सरस्वती मुख” का उपहार वरदान के रूप में भेंट किया।

उसी दिन से जूझारदान ने अपनी प्रथम रचना माँ जोमा को समर्पित की। कविराज के संबंध अमरकोट के शासक राणा परिवार से बेहद नजदीक रहें, और जूझारदान की विद्वत्ता व काव्य पर पैनी नजर से अभिभूत हो तत्कालीन राणा अर्जुनसिंह ने उन्हें भुज स्थित “डिंगल पाठशाला” में डिंगल छंदो पर विद्वता हासिल करने के लिए भेज दिया। उस समय वहां के महाराजा राणा परिवार के दामाद थे तो उन्हें भुज राज परिवार का भी सहयोग मिला।

वहां उनके गुरुराज हमीरदान की शिक्षा से वे एक विद्वत डिंगल सृजक बनें। एक किस्सा उस विद्यालय का कि, जब विद्वता का इम्तिहान हो रहा था तो जूझारदान जी ने “वीसा छंद ” रचना पाठशाला सरंक्षक के समक्ष पेश की, तो गुरूदेव ने उन्हें इम्तिहाँ में सर्वोपरि उपहार दिया और आधिकारिक विद्वान घोषित किया। उनका यह छंद जनमानस में प्रसिद्ध है।

इनके तीन पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े स्वर्गीय कविराज भूरदान जी उनसे छोटे, स्वर्गीय शंभूदान जी, और पूरदान जी। इनकी (पुत्रों) उम्र किशोरावस्था तक पहुंचते ही कविराज का देहावसान हो गया।

उनको जीवन में राणा राज परिवार, भडेली राजपरिवार आदि का प्रेम मिला, उनके आगे हम आज भी कविराज का नाम लेते है तो नमन स्वत: प्राध्वनित होता है।


 

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  1. छंद देवलजी माँ – कविराज जूझारदान दैथा ‘मीठड़िया

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