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माँ सोनल मढ़ड़ा

माँ सोनल मढ़ड़ा

 

पूरा नामसोनबाई हमीर मोड 
माता पिता का नाममाता राणबाई माणसुर घांघणिया, पिता हमीर माणसुर मोड
जन्म व जन्म स्थानवि.सं. 1980, पोष सुद -2, मढडा, तहसील – केशोद, जिला – जुनागढ
स्वधामगमन
वि.सं. 2031, कार्तिक शुक्ल -13 (दिनाक- 27-11-1974)
समाधी स्थळ
कणेरी ता. केशोद, जि. जुनागढ

 जीवन परिचय

अंधियार नी फौजां हटी, भयकार रजती भागती।
पौ फाड़ हामा सधू प्रगटी, ज्योत जगमग जागती।।

आई सोनल माँ के अवतरण का मर्म दुःखतप्त प्राणिमात्र के उद्धार का हेतुक था। चारण जगदम्बा की जागती ज्योत स्वरूपा आई श्री सोनल माँ आधुनिकता के युग में विकासशील ऊर्जा की प्रतिमूर्ति हैं।

तूम्बेल कुळ मोड वंश के मढड़ा गाँव में पिता हमीरजी गढ़वी एवम् स्वकुक्षिधन्य माता राणबाई से आई श्री सोनल का अवतरणः कवि काग की वाणी अनुसार :-

त्रण तिमिर मेटण सूर समवड़, किरण घटघट परवरी।
नवलाख पोषण ऐकल न रही, ईज सोनल अवतरी।।

वि.सं. 1980 पौष सुद दूज मंगलवार रात्रि 8.30 बजे जूनागढ़ जिलें के केशोद के समीप मढड़ा की पावन धरा पर आई श्री सोनल मां का जन्म प्राकट्य हुआ। “पौष बीज” चारण अस्तित्व का वह दिवस बना जब आधिदैविक, अधिभौतिक, आध्यात्मिक रूप के “त्रण तिमिर” मिटाने वाली जगदम्बा रूपा आई सोनल जैसी सूरजमणि का उदय हुआ। मान्यता है कि आई श्री सोनल के जन्म की भूमिका सराकड़िया के आई सोनल माँ के उस आशीर्वाद में अभिव्यक्त था जब उन्होनें हमीर जी गढ़वी को उनके घर पाँचवी पुत्री के रूप में “परचाळ” प्रतापी “आई” के आगमन की बात कही। हमीर जी ने सराकड़िया सोनबाई माँ के आदेशानुसार स्वयं की पाँचवी संतान का नामकरण “सोनल” किया। जैसे ही लक्ष्मी स्वरूपा “आई सोनल का शुभ आगमन हुआ तभी से मढड़ा में धन, भाग्य, समृद्धि व परमानंद का प्रसार होने लगा। आई माँ का बाल्यकाल पिता व माता के स्नेह से परिपूर्ण था। मढड़ा के हमीरजी का “नेश” आई सोनल की रमणस्थली लीलास्थली बन गया। छः वर्ष की अवस्था में आई सोनल की भेंट चंचलनाथ योगी से हुई जो कि राजस्थान के निवासी परम् शिव भक्त, पवित्र व्यक्तित्व व ज्ञानी चारण थे। योगी चंचलनाथ बापू ने बालिका सोनल को “शिवमंत्र” की दीक्षा दी।

यौवनावस्था में कदम रखते ही “आई” ने सात्विकता तपस्या और एवम् व्रत विधानों से स्वयं को भविष्य के लिए उन्नत किया। इस दौरान आई सोनल विशेषतः भीमनाथ महादेव की उपासना में लीन रहती। गौचारण करना, एकान्त में विराजित होकर अध्यात्म चिंतन करना आई सोनल किशोरवय का सुव्यसन था। इस काल में “आई” ने चारण व अनेकानेक समाजों में व्याप्त कुरीतियों का तार्किक रूप विरोध आरम्भ किया।

विश्वास किया जाता है कि आसोज शुक्ल हवनाष्टमी वि.सं. 1994 की ब्रह्ममुहूर्त वेला में सराकड़िया आई सोनबाई गीयड़ ने प्रकट हो आई सोनल को शक्तिस्वरूपा, जगदम्बा, आई स्वरूपा बन समाज का मार्गदर्शन करने का आदेश दिया। स्वयं आई सोनल ने यह दिवस उनके जीवन के महत्वपूर्ण दिवस के रूप में स्वीकार किया है। आई सोनल का विवाह (सांसारिक मर्यादा की पूर्ति मात्र रूप में) वि.सं. 1995 मार्गशीर्ष माह में गादोई (जूनागढ़, कणजड़ी के समीप) गाँव के सिद्धिभाई गढ़वी के पुत्र रामभाई के साथ सम्पन्न हुआ। श्री करणीजी के समान ही आई सोनल का विवाह मात्र लौकिक रहा। विवाह की रात्रि ही आई सोनल ने स्पष्ट धीर गंभीर वाणी में स्वयं के जन्म का उद्देश्य रामभाई को बता दिया और कहा- “देखो। मैं संसार व्यवहार के निमित्त जन्म लेकर नहीं आई, में “आई” हूँ, तुम्हारी परिणीता नहीं, और बन भी नहीं सकती।” आई सोनल शक्ति अंश की लीला के निमित्त मढडा पधारी और इसी को शेष जीवन का स्थान बनाया।

आई सोनल की प्रगतिशील विचारधारा ही है जिसने समस्त “चारणवरण” को एकसूत्र में बाँधने हेतु “चारण एक बनो, नेक बनो” का जयघोष किया। मढडा के मुस्लिम जमादारों के त्रास से आई माँ ने मुक्ति दिलवाई। पिता हमीरबापू की जमीन पर अधिकार करने आए इन आततायियों को आई सोनल के तेजस्वी पराक्रम ने धराशाई किया। आई सोनल के जीवन का 20 वॉ वर्ष अमूल्य महत्वकारी है जब आई माँ ने सांसारिक ओढणी त्यागकर “जगदम्बा की धावळ” धारण की और सोनल ने “चारणआई” की शक्ति से सुवासित पूज्य स्थानों का तीर्थाटन किया व प्रत्येक स्थान से “आदिशक्ति की अजस्त्र ऊर्जा को स्वयं में समाहित किया। सोनबाई माँ की प्रथम शक्तियात्रा हरसिद्धि एवम् बेचराजी मढ़ के दर्शनार्थ थी। आई माँ की ओजस्वी कीर्ति अहर्निश सौराष्ट्र, कच्छ, काठियावाड़ में प्रसारित हुई, सैंकड़ो श्रद्धावान् दर्शनार्थी मढड़ा पधारने लगे। अब मढडा सामान्य “नेश” नही “सोनलधाम” बनता जा रहा था।

आई सोनल राष्ट्रवादी शक्ति के रूप में उभरकर समाज के सामने आई और आपने भारत व पाकिस्तान विभाजन के उपरांत जूनागढ़ रियासत के पाकिस्तान में मिलाए जाने का विरोध किया साथ ही अजेय वाणी में उदघोष किया कि “जूनागढ़ पाकिस्तान नहीं जाएगा, यह जगदम्बा की आज्ञा है ।” जूनागढ़ नवाब को जूनागढ़ छोड़कर जाने को समझाया और राजपूतों, चारणों को उनकी स्वतंत्र जागीरी को भारत संघ में विलय होने की आज्ञा दी। “जूनागढ़ के भारत संघ में मिलने से अपना हित है।” यह बात समझाने के लिए आई माँ ने गांव – गांव में प्रवचन दिया। आई माँ मढ़ड़ा से कणेरी गांव में बस गये। आई माँ राजस्थान मेवाड़ के गढ़वाड़ा धाम डिंगरकिया में भी पधारे थे। आई माँ ने वहम, अंधश्रद्धा, कुत्सित रुढ़ियों, मदिरापान, अफीम जैसे व्यसनों, दहेज प्रथा, कन्या विक्रय, बलि प्रथा जैसी अनेक विसंगतियों को दूर करने के लिये अथाह प्रयत्न किये। वि.सं. 2010 वैशाख सुद 3 बुधवार को आई माँ ने मढ़ड़ा में चारण सम्मेलन बुलाकर समाज सुधार के कई कार्य किये। वि. सं. 2031 कार्तिक सुदी तेरस दिनांक 17/11/74 बुधवार को सुबह 5.15 बजे पंच महाभूत में देह का त्याग कर परमतत्व में विलिन हो गयीं। पूज्य आई माँ के पार्थिव देह को उनके निवास स्थान कणेरी में अग्नि संस्कार किया गया। आई माँ के स्वधामगमन के पश्चात समग्र भारतवर्ष में उनका जन्म दिवस पौष शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सोनल बीज व नूतन वर्ष के रूप में बड़ी धूम – धाम से मनाया जाता है।

आज आई सोनल शरीर रूप में हमारे मध्य नहीं हैं। परन्तु सकल चारण समाज का पथप्रदर्शन, मार्गदर्शन देने वाली नित्यवाही ऊर्जा के रूप में साक्षात विराजमान है। आवयश्कता इस बात को समझने की है कि “चारण समाज” नें “आई” के व्यक्तित्व और वैराग्य का जितना गुणगान किया, वन्दन, अभिनन्दन किया उतना उनके आदर्शों, आज्ञाओं, समाज के प्रति शुद्ध अपेक्षाओं को आत्मसात् किया है या नहीं? “आई सोनल” की सत्यशः वन्दना तभी सार्थक मानी जा सकती है जब समाज उनके आदर्शों को भाव, स्वभाव, व्यवहार एवम् चरित्र में अंगीकार करेगा।


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  1. चारणों की शक्ति मढ़ड़ावाली माँ सोनल आई, माताजी की महिमा, इतिहास और महत्व क्या है?

3 Responses

  1. There is mismatch in date. 27-11-1974 in starting and 17-11-1974 in End. Please rectify it and update. Thank you 😊

  2. ” सोनल क्रुपा ही केवलम ”
    जे माताजी भाई श्री भंवरदान जी आपको खुब खुब अभिनंदन सह ये कार्य करने हेतु मां सोनल, मां नवलाख लोबडीवाली की क्रुपा सदैव बरसती रहे भाई 🙏🙏🙏

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