चारण शक्ति

Welcome to चारण शक्ति

कवि भंवरदान बीठू (मधुकर) झणकली

कवि भंवरदान बीठू (मधुकर) झणकली

पूरा नामकवि भंवरदान बीठू (मधुकर) झणकली
माता पिता नाम व पत्नीमाता – श्रीमति जतनांदेवी, पिता – हेमदानजी बीठू, पत्नी – लहरादेवी.
जन्म व जन्म स्थान08 मार्च 1935
देवलोक
21 अक्टूबर 1977
प्रकाशित पुस्तके
डिंगल, पिंगल अर आधुनिक राजस्थानी गीत, छंद, कवितावां
देश भक्ति नशा मुक्ति आद पत्र-पत्रिकावां में छपी

 जीवन परिचय

 

कवि भंवरदान (मधुकर) झणकली की प्रशंसा में अन्य कवियों के व उनके संबधित उद्गार इस प्रकार हैं:-

आदरणीय स्व. कवि भवंरदानजी मधुकर झणकली ने मोहनसिंहजी रतनू जयपुर प्रवास के दौरान ऐक दोहा गूढार्थ मे लिखा तथा मोहनसिंहजी रतनू को बताया गया कि इस दोहे के अर्थ के साथ मुझे प्रत्युतर भेजे, मै प्रत्युतर की प्रतीक्षा हु। दोहा इस प्रकार था-

वायस दंती जावरे, जीत सु नगर मझांर।
कर पय मोहन सिह को, मधुकर री मनवार।।
वायस दंती जावरै यानि वायस काग ऐव दंती यानि गज अर्थात काग एव गज यानि कागज। जीत नगर यानि जयपुर पय. मदिरा मधुकर भंवर
अर्थात- हे कागज तु जयपुर जावो ऐव मोहन सिह को प्रेम से मदिरा की मनुवार मधुकर की तरफ से करो।

मोहनसिंहजी ने निम्न दोहे के साथ प्रत्युतर लिखा-

गणपत वाहन ता रिपु, ता रिपु के असवार।
जांके श्रीमुख जो चढे, वा मोहन री मनवार।।
अर्थात- गणेशजी का वाहन चुहा, उसका दुश्मन बिल्ली उसका दुश्मन कुता उसकी असवारी भैरव करता हे उसके मदिरा का भोग लगता हे वो मैरी तरफ से सादर मनुहार है।

यह वार्तालाप करीब चालीस वर्ष पुर्व की बात है। आज देव लोक तिथि पर सादर श्रद्वांजली।

~~मोहनसिह रतनू से.नि.आर.पी.एस चौपासणी चारणान, जोधपुर


आछा नाम इतिहास मों करगा चारण कवेश।
उण पुरखो री ईलड़ी भली पाळी भँवरेश।।
झणकल अमरत झरणो मेहो विठु महराण।
उण घर भँवर ऊपनो सजळ मेघ समान।।
~उदयराजजी उज्ज्वल


मन वचन महाराण वड पण धन ताला विलन्द।
परखन गरंथ पुराण काव रचन भँवर कवि।।
~तुलसीदासजी राव समदड़ी


सुकव सुज्ञानी हेमसुत मध झणकल महराण।
गढवी कुळ रो गेहणो दाता भँवर दान।।
~भारतदान रावल मेडावा


अकल विद्या धर ओपमा दूजो ईशरदास।
अम्बर झणकली ऊपरा पींगळ भँवर प्रकाश।।
~रामलालजी वरसड़ा पीथासनी

भँवर दान कवियों भँवर अमर करण अखियात।
दरसण ज्ञान विज्ञान द्रव सर्व गुण सम्पन्न सुपात।।
~खीमदान बारहठ बालेबा


सत संग संत समाज वाखाणे वीठू भँवर।
सब कवियों सरताज वचन तुमारा हैमवत।।
~खुशालदान राव खण्डप


भंवर भुरजाळाह सारावे कवियण सिको।
पय छिलता प्यालाह शबद तुमारा हैमसुत।।
~ठा. राणसिहजी सिसोदिया


शोभा संपत कव सरस् जात वीठू घण जान।
पछम झणकली प्रगट्यो दुणीयर भँवर दान।।
~धनदानजी लालस चांचलवा


दध आखर कर दूर सवर समापे सुरसती
भँवर दान भरपूर राखे छभा रळीयामणी।।
~मूलचंद प्राणेश झझर


तूँ अली घटक तणा कविता कंज कहाय।
परमळ लीनी प्रेम सूं अहो निस रथो अहाय।।
~शंकरदान चुतरदानजी मेहडू सुहागी


नाम भँवर सम नेक शाम भँवर अंतर नही।
कर संग भँवर अनेक कीट पलट भँवर किये।
~मुल्तानमल स्वामी


मधुकर सूं मधुकर मिलयो मधुकर उपवन मांय।
मधुकर सों ड़िंगळ मही नरख्यो मधुकर नांय।।
~भंवरलाल मधुकर


सोचण री बुध है सदा तकड़ी बोत तमाम।
सुरसत जेनां सांपियो कविता रो शुभ काम।।
मात सीला री मेर सूं पूरण विद्या प्रकाश।
भँवर कव दीसे भलो वीठु झणकली वास।।
~जुगतीदान बालेबा


सधर झणकली हेम सुत जबर कविवर जाण।
तमर हरण अविद्या तणो भँवर विठु कुळ भाण।।
तरक समर मां नर तिका अड़े भँवर सूं आय।
होय निरुत्तर शीश होवे पूर्ण पडूतर पाय।
चारण वर्ण रो चांनणो हरण भावना हींण।
विद्या कविता वारता दाता भँवर प्रवीण।।
~मोहनसिंह रतनू चौपासनी


उत्तम काव्य रोचक उकत वर छंद जथा विधान।
अलंकार रीति अरथ नवरस भंवर निधान।।
~भँवरदान बीठू सांगड


करनला माता नीं कविता बहुत ही चोखी बणी।
वृद्ध ना दोहा वणा कर राज क्यों कीधु रणी।
नाम तो सुणतू हतू पण सुरचना अबके सुणी।
भणे शंकर दान भँवर धन्य हो झणकल धणी।।
~राजकवि शंकरदानजी देथा लिंबड़ी

वाणी आखर वखता ज्ञाता ज्ञान विज्ञान।
हेम सुतन परभु हरो भंवर विठु कुळ भाण।
अनँत कवि अनुराग सूं वड़िया ड़िंगळ वाग।
बीजा सूंघी वासना पीधो भँवर पराग।।
पूरण विद्या प्राप्ती पिंगल वेद पुराण।
मात सीला री मेर सूं बण्यो भँवर विद्वान।।
विध विध कथणी वारता साहित्य अंग सुजाण।
उदियाचल झणकल उदे भयो भंवर कव भाण।।
गीता योग सुग्रँथ का अनुभव बोध अथाग।
इहग मेहा री ओळ मों भयो भँवर वड भाग।।
काव्य सम्भावा कीरती मरुधर जाझो मान।
हिंदी मों हरिओन्ध ज्यो डींगळ भँवर दान।।
~आंनदगिरीजी महाराज जयपुर


दूल्हो शंकर ऊदलो भँवर दान भलम्म।
च्यारो चारण जात रा गेहणा गया गम्म।।
~अनोपदान बीठू झणकली


अकल विद्या धर ओपमा दूजो ईशरदास।
पछम झणकली प्रगट्यो पिंगळ भँवर प्रकास।।
~~कवि राजन (राजेन्द्रदान झणकली)


तूटियो सितारो नभ कडड तटाक देत,
शौक के संमंद हुमे डूबै लोक आजको।
होय के बिहाली, अंशुमाली जोत मंदकरि,
बंद करि केकी धुनी कूकत अकाजको।
कलपै किताक, गुणी ग्यानी विदवान कवि,
बार बार करे याद, झणकल धीराज को
सुकवि सपूत भमरेस सुरलोक गह्यो,
गहणो आलोप हुओ, चारण समाजको
~~मोहनसिह रतनू से.नि.आर.पी.एस चौपासणी चारणान, जोधपुर


ऊमर कम ले आवियो, भव मोंई भमरैश।
अमर नाम इल ऊपरों, कियो मधुकर कवैश।।
~~नवनीत करण रतनू भाखराणी, जैसलमेर)

.

कवि भंवरदान (मधुकर) झणकली के संबधित व उनकी रचनाओं के लिए कविता/आलेख के शीर्षक पर क्लिक करें।

  1. गीत~गाँधीड़ो- रचना – कवि  भंवरदान झणकली
  2. हिन्दी की राम कहानी – कवि भंवरदान झणकली
  3. वीदग विभूति वर्णन: (चावा चारण चरित्र) – कवि भंवरदान झणकली
  4. महाराणा प्रताप रौ जस – कवि भंवरदान झणकल़ी
  5. श्री करणी जी रौ छन्द – कवि भंवरदान झणकली
  6. श्री सभाई सुजस – कवि भंवरदान झणकली
  7. दारू रौ दुख – कवि भंवरदान झणकली
  8. श्री देमां दीपक – कवि भंवरदान झणकली
  9. छंद रूप मुकुंद – कवि भंवरदान झणकली
  10. बखत आय ग्यो खोटो – कवि भंवरदान झणकली
  11. भाविक कवियों री भेंट – कवि भंवरदान झणकली
  12. दईयाणौ थलवट देश – कवि भंवरदान झणकली
  13. संकटो में घिरे हुवे सेनानी का सन्देश – कवि भंवरदान झणकली
  14. पटवारी री पुकार – कवि भंवरदान झणकली
  15. श्री राघव रासो – कवि भंवरदान झणकली
  16. देवी हेलो दे – कवि भंवरदान झणकली
  17. पिंगळ प्रसंग – कवि भंवरदान झणकली
  18. चारण खेड़ा – कवि भंवरदान झणकली
  19. चारणा री मरजाद – कवि भंवरदान झणकली
  20. हा हा बौल कबूतर बौल खौटा रा पड़दा खौल – कवि भंवरदान झणकली
  21. लाखा जमर रौ जस (आउवा पाली) – कवि भंवरदान झणकली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Categories

Categories

error: Content is protected !!
चारण शक्ति