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स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती

स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती

स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती का जीवन परिचय

 

पूरा नाम स्वामी कृष्णानन्दजी सरस्वती [जन्म का नाम देवीदानजी रतनू था]
माता पिता का नाम माता का नाम ऊमाबाई व पिता का नाम ठाकुर दौलत दानजी रतनू
जन्म व जन्म स्थान जन्म सन् – 1900 ई. में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बीकानेर रियासत के गाँव दासौड़ी में हुआ।
स्वर्गवास
मॉरिशस की सरकार एवं समस्त जनता ने इस महान संत के द्वारा सम्पन्न सेवा कार्यो के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये एक सप्ताह के सिल्वर जुबली समारोह का आयोजन रखा। इसी दौरान 23 अगस्त 1992 की रात्रि को 92 वर्ष की आयु में स्वामी जी का निधन हो गया। उत्सव शोक में परिवर्तित हो गया।
अन्य
  • देवीदान जी रतनू के पिता ठाकुर दौलतदान जी नोखा तहसील के गाँव खारा के जागीरदार थे तथा गुजरात स्थित लखपत पाठशाला में पढ़े हुए थे।
  • देवीदानजी रतनू बीकानेर रियासत के प्रथम चारण स्नातकों में से एक थे।
  • उन्होंने अखिल भारतीय चारण सम्मेलन अपने पैतृक गाँव दासौड़ी में आयोजित कर उसमें कई सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन एवं शिक्षा एवं जागृति के प्रस्ताव पारित किये।
  • उन्होंने अपनी युवावस्था में जागीर, पद एवं भरे पूरे परिवार का परित्याग कर जोशी मठ से संन्यास ग्रहण कर लिया। अब वे स्वामी कृष्णानन्द सरस्वती थे।
  • युरोपीय एवं अमेरिकन देशों में बसे भारतीय मूल के प्रवासियों में अनैतिकता एवं संस्कारहीनता बढ़ने के कारण वे लोग धर्म परिवर्तन को आमादा थे। स्वामीजी ने उनकी उखड़ती हुई आस्था को संबल प्रदान करते हुए एक लाख रामचरितमानस एवं एक लाख गीता की प्रतियां उनके घर-घर पहुंचाई तथा भारतीय सनातन संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने उन्हें एक लाख रामचरितमानस की प्रतियां भेंट की थी तथा तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम वी. वी. गिरी ने उन्हें एक लाख गीता की प्रतियां भेंट करते हुए उन्हें विदेशों में भारत के सांस्कृतिक दूत की संज्ञा दी थी।

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