कवि गिरधरदान रतनू दासोड़ी
जन्म | १५ अगस्त १९७० |
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उपनाम | गिरधरदान |
जन्म स्थान | दासोड़ी (कोलायत) बीकानेर |
आपरी मोलिक कृतियाँ:- | |
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आपरी संपादित कृतियाँ:- | |
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जीवन परिचय | |
पारंपरिक डिंगल काव्य रा नामचीन कवियां में शुमार कवि गिरधरदान रतनू “दासोड़ी” शिक्षा विभाग राजस्थान रे मायने शिक्षक रा पद माथे सेवारत है। निबंधकार रे रूप में इ आपरी न्यारी निरवाळी ओळख है। प्राचीन पांडुलिपियाँ पढण में आप पारंगत हो। आपरा पिताजी रो नाम श्री केशुदान रतनू अर माताजी रो नाम मोहनकंवर है। आपरो मूल निवास ग्राम दासोड़ी, तहसील कोलायत, जिला बीकानेर है। स्वतंत्रता दिवस यानि १५ अगस्त १९७० ने जनमिया कवि गिरधरदान जी महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर सूं राजस्थानी साहित्य में एम.ए. नेट अर मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर सूं बी.एड. री शिक्षा प्राप्त करी। आप मरू भारती, वरदा, विश्वंभरा, वैचारिकी, मरू सरस्वती, चारण चिंतन, माणक, राजस्थानी गंगा, महेश्वरी सेवक, राजस्थली, जागती जोत, मरूधर ज्योति, रणबांकुरा, राजपूत एकता, ओल़ी-ओल़ी, राजपूत सोसायटी जैड़ी टणकी अर टाल़वी पत्रिकावां में लगोलग लेखन करियो। मोकल़ा शोध आलेख प्रकाशित करिया। अनेकूं राष्ट्रीय संगोष्ठियां में पत्र वाचन करियो। सम्मान:-
सेति केई संस्थानां सूं सम्मानित। संप्रति: मानद अध्यक्ष, प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान, दासोड़ी ठिकाणो: ग्राम-पोस्ट: दासोड़ी, तहसिल: कोलायत, जिला: बीकानेर (राजस्थान) – 334302 |
गुरु पूर्णिमा को कवि द्वारा अपने गुरुओं के प्रति आभार वंदन
गुरु पूर्णिमा रै दिन ज्ञात-अज्ञात उण तमाम श्रद्धेय जनां रै श्रीचरणां में सादर वंदन। जिणांरो वरदहस्त सदैव म्हारै माथै रैयो।
कैयो जावै कै दत्तात्रेय चौबीस गुरु किया। कविराजा बांकी दासजी तो अठै तक लिखै कै जितरा माथै में केस है उतरां ई उणां रै गुरु है-
‘बंक इतियक गुरु किए, जितियक सिरपर केस।
आपांरै अठै गुरु नैं गोविंद सूं बधर बतायो गयो है अर्थात ईश मिलण रै मारग रो माध्यम ई गुरु है।म्हैं आज तक नुगरो ई हूं, म्हैं किणी नै गुरु नीं बणायो पण म्हारी श्रद्धा जिणांरै प्रति रैयी उवां रा नामोल्लेख अंजस रै साथै आपनै बताय सकूं कै म्हनैं मुरारीदानजी आशिया, ठा.अक्षयसिंहजी रतनू रो स्नेह मिलियो। जिणसूं साहित्य रसास्वादन में रुचि बधी। म्हैं इणांरै पावन चरणां में वंदन करूं।म्हैं स्व.मालदानजी नगाणी सींथल (लाइब्रेरियन)रा.मा.वि.रै चरणां में वंदन करूं जिणांरी कृपा रै पाण म्हैं नवीं-दसमी री कक्षावां में ई महनीय किताबां पढी जिकां मांय सूं घणकरीक संदर्भ पोथियां ही अर छात्र नैं तो कांई अध्यापकां नै इश्यू करणी मना ही पण म्हैं अलमारी मांय सूं काढली मतलब म्हनैं मिलणी ईज ही पण उवै आ जरूर कैता कै-
“रतनूड़ा किताब गमायदी तो म्हनै मरादेला। “
बस किताब हाथ में। ऐड़ा सद्भावी गुरु नैं पुनः प्रणाम।
म्हनैं सादगी रो पाठ पढावणिया गुरुदेव स्व.ऋषिकेशजी शर्मा(प्राचार्य रा. उ.मा.वि.नापासर) नै ई प्रणाम।
जिण महमनां म्हनै लिखणो सिखायो उणांमें श्रद्धेय डॉ.मनोहरजी शर्मा अर डॉ.किरणजी नाहटा री पावन स्मृति नै वंदन। इण दोयां सारू तो म्हारा उवै ई भाव है जिकै कृष्णदासजी छींपा, आपरै गुरु जीवणदासजी आशिया सारू प्रगट किया हा-
कौन हवाल हुतो किसना मम,
जो न मिलै गुरु जीवन जैसो?
मैं श्रद्धेय गोलोकवासी डॉ. ब्रजनारायणजी पुरोहित (हिंदी विभागाध्यक्ष, स्वायतशासी डूंगर महाविद्यालय बीकानेर नै ई विनीत भाव से प्रणाम करूं जिणां सदैव प्रेरणा अर स्नेह दियो।
इण सगल़ै उदारमना मनीषियां सहित म्हैं आदरणीय गुरुदेव नवलजी जोशी अर आदरणीय मोहनसिंह जी रतनू रै श्रीचरणां में वंदन करूं जिणांरो लाड ई लेखनी रो मूलाधार है।
मौकै-बेमौकै म्हारो कल़ियो गाडो काढणिया श्रद्धेय डॉ.शक्तिदानजी कविया, भंवरदानजी रतनू खेड़ी अर डूंगरदानजी आशिया ई म्हारै सारू वंदनीय हैं।
आज गुरुपूर्णिमा है सो आप सगल़ै जोगतै शिष्यां नैं पावन पर्व री अंतस सूं बधाई।
म्हारी अंतस री खोट नै स्नेह री चोट सूं निकाल़णियां रै पावन चरणां में पांच छप्पय भेंट-
वदै जगत गुरु ब्रह्म, सदा गुरु शंभ सुणीजै।
वसुधा गुरु ही विसन, परम ब्रह्म गुरु पुणीजै।
चाव ओट गुरु चरण, धरण भारत री धारै।
उरां धार उपदेश, सफल़ नर जनम सुधारै।
गुणी गीध ओट गहियै गुरु, बहियै सतवट वाटड़ी।
इणभांत सदा रहियै अभै, हेत तणी कर हाटड़ी।। 1
गुरु बिन मिल़ै ग्यान, भल़ै मन ध्यान न भाई।
जोड़ण जुगती जाण, बाण उगती वरदाई।
भलै बुरै रो भान, कान कही गुरु करावै।
अंतस मेट अग्यान, दुरस सनमान दिरावै।
इहलोक अनै परलोक रो, सतगुरु माग सुधारणो।
सुण गीध कवी गुरुवर सदा, धिन चित चरणां धारणो।। 2
गही जिकां गुरु ओट, छदम -छल़ लाऱो छूट़ो।
गही जिकां गुरु ओट, तिमिर हिरदै रो तूटो।
गही जिकां गुरु ओट, निपट मो -माया नासै।
गही जिकां गुरु ओट, पांस जम रैसी पासै।
बुद्ध देय चित करदे विमल़, हेर हियै मल़ हारदे।
सुण गीध कवी साची सरब, सतगुरु माग सुधार दे।। 3
पुणियै गुरु परणाम, बात इतियास बताई।
पुणियै गुरु परणाम, करण सीखी कविताई।
पुणियै गुरु परणाम, लेखणी गद्य लिखायो।
पुणियै गुरु परणाम, सार संगीत सिखायो।
मरम री बात अणहद मुदै, धिन बातां सद धरम री।
गरम री चोट गुरुवर करी, भली मिटाई भरम री।। 4
महर गुरु री मान, नेह देवै सब नाती।
महर गुरु री मान, सरस सनमान सँगाथी।
महर गुरु री मान, वडा नर छभा बोलावै।
महर गुरु री मान, सैण इक जीह सरावै।
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कवि गिरधरदानजी री प्रशंसा में अन्य विद्वानां रा उद्गार इण प्रकार हैं:–
गिरधर – गरिमा
(सुकव गिरधर दान रतनू दासोड़ी री काव्य कला कीरत)
ठीमर थिर चिर ठावका, पखै म्रजादा प्रीत।
सिरधर हुवा साहित माा, गिरधर रतनू गीत।।1
लाखीणी लवल्या लगी, झीणी समझ जरूर।
कुण गिरधर समवड़ करे, गुण भरियो न गरूर।।2
केई मुकता काढ़िया, मथ साहित महरांण।
केसू सुत गिरधर सुकव, कठै न राखी कांण।।3
अमर रहैला आपरा, गरिमा साहित ग्रंथ।
डींगळ पींगळ डोकरी, पूजै गिरधर पंथ।।4
महती धिन धिन मात तव, जाम्यौ सुत जबरैल।
दासोड़ी रतनू दिपै, छकअण रतनू छैल।।5
पीढ़ी नव इब पांतरी, बेसक जूनी बत्त।
याद दिरावण ही अबे, दीसै गिरधर दत्त।।6
कारीगर तूं कलम रौ, नमै अलेखूं नाह।
वय ‘लक्ष्मण’ ले वारणा, गिरधर री गरिमाह।।7
~~लक्ष्मण दान कविया (खैण)
दासोड़ी धर दिप-दिप दीपै
गिरधर सुकव गुणी गजब रौ, जबरा सबद जड़ावै।
दाख सदा दुणियण में देखी, मोती तरै मड़ावै।
दासोड़ी धर दिप-दिप दीपै, गुणियल गिध गरबावै।
सिरजै दूहा छंद सोरठा, कविता सरस कथावै।
पेखण रजवट रीत पुराणी, सांच वात छलकावै।
परघल अंतस प्रीत तिहारै, गुण छत्री रा गावै।
रजपूती सब्दां सूं रंग नै, झरणा नैह झरावै।
अंजसै सुकवी ऊपर छत्री, मौद हींयै न मावै।
कलम करा में कोड करंती, साहित नित सिरजावै।
गिरधर गजब उकेरण गाथा, धाबलियांली ध्यावै।
‘इण नै इज कहता रजपूती’, कीरत गीत कहावै।
औपे आखर-आखर औली, सौरभ नित सरसावै।
बारहठ ईसर केसर बांकी, ज्यूं ई आय जगावै।
सबद भरै है साख तिहारी, चित्त सूं छत्री चावै।
नामी नर गिध रहै निरोगो, पद नित ऊंचौ पावै।
‘मेंदर’ छायण तव मुलकंतौ, गीत जांगड़ौ गावै।
©महेन्द्रसिंह सिसोदिय छायण,
जैसलमेर(राज.)
धणियाप रा आखर
दासोड़ी मगरै दिपै, राजै रतनू रीत
केशव सुत गिरधर कवी, पाल़ै आदू प्रीत। ।
~~(ठा अक्षयसिंह रतनू, जयपुर)
केशव सुतन रतनू कवि, आखै बात अमुल्ल।
मुनी रिसी होवै मसत, गिरधर री सुण गल्ल। ।
~~(ठा मुरारदानजी आसिया, नोखड़ा)
मुरधर मे़ं कवियां मुगट, रतनू कुल़धर रीत।
सिरधर करूं सराहना, गिरधर थारा गीत। ।
सुत केसव रतनू सधर, मुरधर साचो मीत।
सिरधर लीनो सांपरत, गिरधर थारो गीत। ।
जस रचियो म्हारो जिको, सारो भाल़ सप्रीत।
सुप्यारो घण सोहणो, गिरधर थारो गीत। ।
~~(डॉ शक्तिदान कविया, बिराई, जोधपुर)
गुण रो आगर गिरधरो, कामां हुवैज कूंत।
मायड़ भाषा री मुदै, सेवा करै सपूत। ।
~~(लक्ष्मणदान कविया, खैण)
मंडित गौरव सूं मुदै, साचैला शुभचीत।
अपणायत भरिया इधक, गिरधर हंदा गीत। ।
~~(नारायणसिंह कविया नोख)
आशीष रा आखर
वीणहथी रो वरदहस्त, गिरधर कवि गुणवंत।
रूड़ा आखर रल़कता, छंद सरस छल़कंत। ।
चहू़दिस जगमग चानणो, वास मही बीकाण
दासोड़ी निसदिन दिपै, प्रभा तिहारी पाण। ।
डिंगल़ री कीरत दिलां, रगांज थलवट रीत।
कंठ वसै कमलासना, गिरधर हंदा गीत। ।
संस्कारी धीरो सदन, व्रतधारी विद्वान।
गिरधारी गुण गाय कर, गरबीजै गुणवान। ।
~~(नवलजी जोशी, पोकरण)
साख रा शब्द
बूंदीकोटा बीकपुर, चित्रकूट भटनेर।
गिरधर थारा गीतड़ा, फैल रिया चहूंफेर। ।
पूरै मरूधर प्रांत री, इष्ट पार्ट अजमेर।
गिरधर थारा गीतडा, फैल रिया चहूंफेर। ।
धर गूजर धर मालवै, महा जोध धर माड़।
केसव सुत गिरधर कवि, देवै गूंज दहाड़। ।
महि हथनापुर मेड़तै, अहिपुरछत्र आमेर।
गिरधर थारा गीतड़ा, फैल रिया चहूंफेर। ।
शशीहर सविताह, आखर भाल़ै आपरा
कर गिरधर कविताह, मन हर लीनो मोहना
छाछ बिलोई छाण, कविता री मंथन करी
रतनू गिरधर राण, माखण लेवै मोहना। ।
~~(मोहनसिंह रतनू चौपासणी)
स्नेह री सरिता
छंदों वाळी छोळ रो, अंतस समद अथाह।
उफणतौ आठूं पहर, वाह! गिधीया वाह!॥1
ग्वाड गांव गिर कंदरा, महल थडक्कै माढ।
गाजै डिंगळ गीतडा, गिरधर-कंठ -अषाढ॥2
गिरधारी थारीह, न्यारी वळै नवीन नित।
सब कविता सारीह, ज्यारी बात करै जगत॥3
डिंगळ करनल डोकरी, कव गिरधर कंठीर।
डणकै मां रे मढ धकै, गहरै रव गंभीर॥4
मुरधर रो मोती खरौ, गिरा तनय गुणवान।
दासोडी कुळ दीवडौ, गढवी गिरधर दान॥5
~~नरपत दान आसिया “वैतालिक” खांण
गुण निधानी गिरधरा, शब्द शारद झणंकार।
ओपत माल़ सुमेर जिम, डिंगल़ री डणंकार। ।
~~(नारायणसिंह सुरताणिया मींडावास)
गिरधर हीरो गजब रो जड़ियो विधना जोय।
पातां गैणो पल़कतो सुकवि साचो सोय
~~(विरेंद्रजी लखावत रेंदड़ी)
सखां री साख
दीपै डिंगल़ देस में, कविजन करै किलोल़।
गिरधर रै गीतां बहै, छंदां वाल़ी छौल़। ।
दिवलो दासोड़ी तणो, दीपै गिरधरदान।
चारण कुल़ रो चानणो, रतनू तूं रसखान। ।
गिरधर गीतां रो गुणी, कविता रो कमठाण।
मुरधर री कीरत मुणी, पुरखां रै परवाण। ।
गिरधर मुरधर री मणी, सबदां रो सुरसाज।
कवियां में कीरत घणी, सिरजण रो सिरताज। ।
साची तैं भाखी सदा, कुल़ री राखी काण।
सबदां रो साखी सिरै, दाखी है दुनियाण
गिरधर थारा गीतड़ा, है मुरधर रा मीत।
हलधर गावै हेत सूं, प्रगल़ उर में प्रीत। ।
~~(शंकरसिंह राजपुरोहित आऊवा, )
गीधो कर गुणगान, मातने सदा मनावे !
गीधो कर गुणगान, ध्यान कर करणी ध्यावे !
गीधो कर गुणगान, मौज कर खुशी मनावे !
गीधो कर गुणगान, परम साहित रस पावे !
दासोड़ी गिरधर देखयो, जिके डिंगळ री जान !
रकनू अमोलख असो रतन, पारस मेरू प्रमान !!
~~मीठा मीर डभाल
साहित,धर्म,समाज सूं,बहे जका विपरीत।
राह बतावै रोकने, गिरधर थारा गीत।
पढतो हिय प्रफुलित हुवै, दुनिया दे लख दाद।
अक्खर थारा रे अनुज, सक्खर जिसडा स्वाद।।
दासोडी गिरधर दिपै, भारोडी हिमतेस।
नाथूसर गज नीपजै, नरपत खाँण नरेस।।
~~मोहन सिंह जी रतनू