बालक हूं बुद्धू मत मानो ~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”
इक दिन उपवन में आयुष जब घूम रहा था मस्ती करता कलियों-पुष्पों से कर बातें कांटों पर गुस्सा सा करता तभी अचानक उसके कानों इक आवाज पड़ी अनजानी बचा-बचाओ मुझे…
इक दिन उपवन में आयुष जब घूम रहा था मस्ती करता कलियों-पुष्पों से कर बातें कांटों पर गुस्सा सा करता तभी अचानक उसके कानों इक आवाज पड़ी अनजानी बचा-बचाओ मुझे…
हाथ जब थामा उन्होंने, हड़बड़ी जाती रही। जिंदगी के जोड़ से फिर, गड़बड़ी जाती रही। ‘देख लूंगा मैं सभी को’ हम भी कहते थे कभी, आज अनुभव आ गया तो,…
दादाजी का कमरा जिसमें बच्चे मौज मनाते हैं। नित्य नई बातें बच्चों को, दादाजी बतलाते हैं। इक दिन दादाजी ने बोला, आज पहेली पूछूँगा। जो भी उत्तर बतलाएगा, उसको मैं…
ये षड्यंत्री दौर न जाने, कितना और गिराएगा। छद्म हितों के खातिर मानव, क्या क्या खेल रचाएगा। ना करुणा ना शर्म हया कुछ, मर्यादा का मान नहीं। संवेदन से शून्य…
है वही जो ज्ञान के आलोक को जग में फैलाता। है वही जो आदमी को आदमी बनना सिखाता। जो सभी को प्रेम का संदेश देता है सदा, उस गुरु के…
सोचो उस दिन देश का, होगा कैसा हाल। शिक्षक ने गर छोड़ दी, नेकनियति की चाल।। सतयुग से कलियुग तक देखो, ये इतिहास गवाही देता। शिक्षक हरदम देता रहता, बदले…