Sat. Aug 2nd, 2025

Category: डा. गजादान चारण “शक्तिसुत”

पहले राष्ट्र बचाना होगा – डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ नाथूसर

साथ समय के आना होगा सच को गले लगाना होगा फिर जो चाहे भले बचाना, पहले राष्ट्र बचाना होगा। समय-शंख का स्वर पहचानो! राष्ट्रधर्म निभाना होगा तेरी मेरी राग छोड़कर…

काव्यशास्त्र विनोद का अनूठा मंच काव्य-कलरव पटल

हमारे काव्यमनीषियों ने लिखा कि विद्वान एवं गुणी लोग काव्यशास्त्र विनोद में अपना समय सहर्ष व्यतीत करते हैं जबकि मुर्ख व्यक्ति का समय या तो नींद लेने में बीत जाता…

कमाल जिंदगी – डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

मैं देख देख हो रहा निहाल जिंदगी, कदम कदम पे कर रही कमाल जिंदगी। वो गाँव जो कि टीबड़ों के बीच में बसा हुआ, कि अंग अंग अर्थ के अभाव…

मेट आरत मेह कर ~ डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

।।दोहा।। सुरपत केम बिसारियो, मरुधर हंदो मोह। मारण सूं अबखो मरू, बरखा तणो बिछोह।। ।।छंद – सारसी।। बरखा बिछोही शुष्क रोही, और वोही इण समैं। मघवा निमोही बण बटोही, हीय…

पुस्तक-प्रेम, पुस्तकालय-संस्कृति एवं पठनीयता के समक्ष चुनौतियां

विगत दिनों किसी मित्र ने बताया कि उसका पुत्र अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय एवं महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करके अभी अमेरिका में “व्यक्तित्व-विकास” की कक्षाएं लगाता है, जिनमें हजारों विद्यार्थी…

कवि मनुज देपावत का आह्वान- डाॅ गजादान चारण “शक्तिसुत”

जिसने जन-जन की पीड़ा को, निज की पीड़ा कर पहचाना। सदियों के बहते घावों पर, मरहम करने का प्रण ठाना। महलों से बढ़कर झौंपड़ियां, जिसकी चाहत का हार बनी। संग्राम…

रक्तिम स्याही से लिखने वाले – कवि मनुज की क्रांति-चेतना

जिसने जन-जन की पीड़ा को, निज की पीड़ा कर पहचाना।सदियों के बहते घावों पर, मरहम करने का प्रण ठाना। महलों से बढ़कर झौंपड़ियां, जिसकी चाहत का हार बनी।संग्राम किया नित…

चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसे आज के विद्यार्थी एवं अभिभावक

यह चिरंतन सत्य है कि समय निरंतर गतिमान है और समय की गति के साथ सृष्टि के प्राणियों का गहन रिश्ता रहता है। सांसारिक प्राणियों में मानव सबसे विवेकशील होने…

म्हारी अनूदित पोथी आस्था री मंदाकिनी सूं एक निबंध आप सब विद्वानां रै पठनार्थ- डॉ गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

म्हारी अनूदित पोथी आस्था री मंदाकिनी सूं एक निबंध आप सब विद्वानां रै पठनार्थ – डॉ गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ बरसां सूं अजोध्या नगरी मांय उदासी छायोड़ी है। सगळा लोग-बाग आप-आपरै धरम-करम…