मनरंगथली मझ मात रमें – छंद : रोमकंद
!!दोहा!! गुण लिखतां गुणपत थके, बरणत सुरसत व्यास! मात तिहारै चरित को, दाखि सकै किम दास? १ नहीं छंद, रस भी नहीं, पास नहीं लय प्रास! रास तऊ रचणौ चहें,…
!!दोहा!! गुण लिखतां गुणपत थके, बरणत सुरसत व्यास! मात तिहारै चरित को, दाखि सकै किम दास? १ नहीं छंद, रस भी नहीं, पास नहीं लय प्रास! रास तऊ रचणौ चहें,…
सुध बुध समपो सगती देमां करूँ अरदास परवाड़ा तोरा पढां पींगळ छंद प्रकाश।।1।। शरण लीधी फते सिंह जी माघण धर मंझार वळीयो मारण वाखरो चारण वर्ण चकार।।2।। चूंथ पातां धन…
छंद रूप मुकुंद – कवि भंवरदान झणकली घर हूत अणुत कपूतर पूत, भभूत लगाए भटकता है। गुरू धूत कै जूत करतूत सहै, अस्तूत मां भूत अटकता है।। अदभूत धँआङ माँ…