Mon. Jul 28th, 2025

Category: कवित

भारत नैं आज संभाळांला

सूरज जद स्याह अंधेरी सूं, रंग-रळियां करणो चावै है। चांदै नैं स्यामल-रजनी रै, आँचळ में आँणद आवै है। इसड़ी अणहोणी वेळा में, होणी रा गेला कद दीखै। कहद्यो अै तारा…

जिंदगी

कर रहा हूँ यत्न कितने सुर सजाने के लिए पीड़ पाले कंठ से मृदु गीत गाने के लिए साँस की वीणा मगर झंकार भरती ही नहीं दर्द दाझे पोरवे स्वीकार…

जद भोर भयंकर भूंडी है

जद भोर भयंकर भूंडी है अर सांझ रो नाम लियां ही डरां। इसड़ै आं सूरज चंदां रो किम छंदां में गुणगान करां।। कळियां पर काळी निजरां है सुमनां री सौरभ…

सरपंची सौरी कोनी है

घर में बड़तां ई घरवाळी, बर-बर आ बात बतावै है। जो दिन भर सागै हांडै है, बै रात्यूँ घात रचावै है। वो बाबै वाळो बालूड़ो, अबकाळै आँटो चालै है। सरपँच…

चारण नी द्रस्टीये द्रोपदी – रचना: जोगीदान चडीया

द्रोपदी एक क्षत्रीयांणी हती, राजपूती धर्म अने युद्ध नी कळा ने जांणवावाळी समर्थ विरांगना हती, आजे जो कोई सामान्य स्त्री ना सीयळ पर कोई दुष्ट नजर करे अने आजनी सामान्य…