Fri. Nov 22nd, 2024

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।

जोधपुर महाराजा जसवंतसिंहजी प्रथम जदै जमरूद में शान्त हुय गिया तो शाही आदेश री पालणा में मारवाड़ रा सगऴा सेनानी नवजात राजकुमार अजीतसिंह ने अर राणियां नै सागै लेय दिल्ली में किशनगढ महाराजा री हवेली में आयर ढबग्या। औरंगजेब री मंसा काऴी, अर मन घणो खोटो। राजकुमार नै मारणो चावै। जोधपुर खालसै कर लीनो अर हवैली रै चारूं तरफां ही अहदीयां रो करड़ो पहरो बैठा दियो। अब मारवाड़ रा सरदारां दुर्गादास, मुकंददास, मेड़तिया रघुनाथ, राठौड़ सोनग, मनोहरदास चारण, भाटी हेमराज आदि मानीता मौजिज व वीरां गुप्तावू बैठक कर बालक महाराजाजी ने औरंग री दाढ हूं दिल्ली सूं बारैं निकाऴ जुगत जचाय मारवाड़ पहुंचाण अर बाद में लड़णे रो मतो करियो। पण बाऴक ने निकाऴनो आसान काम नहीं (शिवाजी सिसौदिया रै कैद बारै गयां पाछै औरंग घणों सतर्क अर चौकस हुय गियो) चार चार घेरा पौहरेदारां रा लागियोड़ा। पण वीर आं बातां रा शंका मानै तो वीरता केहड़ी।

आखिर बाऴक महाराजा नै, सपेरा रो भेष बणाय दिल्ली सूं बाहर निकाऴवा री जिमेदारी मनोहरदास चारण आपरै खंवै घाली। वो सपेरां रा डेरां मे रैय सगऴा तरीका सीख अर ऐक दिन पुंगी बजावतो बाऴक अजीतसिंह नै लेय अर दिल्ली रे बाहर बंऴूंदा गांव री ठुकराणी जिकी गयाजी री यात्रा कर’र आवती ही उण नै सौंप उणरा रथ री रूखाऴी करण सागै होयो। उठीनै मुंकंददास अर दुर्गादास भी आपरै भरोसै रा सैनिकां नै साथ कर दिया अर सकुशल चौखी तरियां मारवाड़ में पहुंचा दिया।

इण इतियासू घटणारो पद्यात्मक सटीक विवरण करियो है सौदा बारहठ केसरीसिंह जी सोनाणांवाऴां

।।दोहा।।
चारण मनहर कवि चतुर, पूंगी वाद्य प्रवीन।
चतुर सपेरा भेष करि, कंध पिटारा लीन।।
गावत पनिहारी सरस, चलत सपेरी चाल।
बोल सपेरी बोलियत, कंठ ठूमरन माल।।

सांप पिटारै एक मँह, एक कियउ गलहार।
कंघा अरू लघु काच इक, लियउ दुमाले धार।।
आँखो में अंजन दियउ, करके भगवां भेस।
इक लघु टुकरा वस्त्र को, लिय लपेट कटि देस।।

दांतन मंह मिस्सि दई, द्वै सोने की मेख।
कौंन परीक्षक कहि सके, है यह कृत्रिम भेख।।
दवा दवा बोलत निपट, अट पट पांव धरंत।
चतुरन की आंखन महीं, डारत धूरि चलंत।।

धिनवाद को पात्र यह, मनहर दास विशेष।
अपने स्वामी रू देश हित, कीनों भगवां भेष।।
काहू को न पिछान दिय, अपनी कलि विकास।
आयो ड्योढी निकट यह, रहत जहां रणवास।।

धात्री गौरा नाम की, स्वपचनि भेष बनाय।
पूंगी को संकेत सुनि, लाई शिशुहि लुकाय।।
अजीत सपेरे हाथ दिय, पाहरु दीठ चुराय।
तुरंत पिटारे में तबै, लीनो शिशु हि लिटाय।।

चलत भए इहिं चालसों, मारवाड़ की और।
सब हिं भए नचीत अब, रणबंके राठौर।।

रणवास के डेरे पर शाही पहरा रहने पर भी बालक महाराज को दिल्ली से सपेरे का स्वांग बनाकर सुरक्षित निकालने में मुकंददास खींची के लिए प्रसिध्द है, किन्तु वास्तव में मनोहरदास चारण पुत्र गोकलदान नांदू सुरपाऴिया गांव का रहने वाला मुकंददास की फौजी टुकड़ी का एक बड़ा अधिकारी था और दिल्ली में मारवाड़ की सेना के साथ ही तैनात था। उसने मुकंददास की सम्मति से बालक महाराजा की यह महत्वपूर्ण सेवा की थी। इसके पुरस्कार स्वरुप उनको एक जागीर मिली जिसका परवाना मनोहरदास के वंशजों के पास मौजूद है तथा इस बड़ी घटना की प्रामाणिकता सिध्द करता है।

~~राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा, सीकर)

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *