नेता अर साधु पर दूहें रणजीत सिंह रणदेव चारण रचित
नाथ नीति ऐसी रमें, मंदिर बनने माॅल।
आस-पास का खात हें, बचत न कोई खोल ।।१।।
आस-पास का खात हें, बचत न कोई खोल ।।१।।
राजनिती भरती रही, नैताओं का लोभ।
धन की तो सीमा नहीं, प्रथम देखें प्रलोभ ।। २।।
धन की तो सीमा नहीं, प्रथम देखें प्रलोभ ।। २।।
साधु नेता स अफंडी, रहते भरते रोज ।
फसल अपनी पकात हैं,, करते दोंनो मौज ।। ३।।
फसल अपनी पकात हैं,, करते दोंनो मौज ।। ३।।
साधु साथे झोल रहे , नेता राखें नाम।
खाते रहते देश कों, करते कोय न काम।।४।।
खाते रहते देश कों, करते कोय न काम।।४।।
नेता बाबा नाम के, दिनोंदिन लुटत दाम ।
दोनों करते दाम की ,,सुबह से लेन श्याम ५।।
दोनों करते दाम की ,,सुबह से लेन श्याम ५।।
नेता जी अर साधु जी, मोजी करते माप ।
दोनों अपने बोल से ,,फट से देते छाप ।।६।।
दोनों अपने बोल से ,,फट से देते छाप ।।६।।
नेता साधु की नितियाँ, जन की लेती जान।
दोनों अपने स्वार्थ से,, करत जनन की हाण ।। ७।।
दोनों अपने स्वार्थ से,, करत जनन की हाण ।। ७।।
दिल्ली देश कि जात हैं,लोगों की हैं नाक।
सत्ता बना सब अपनी, करत देश कों खाक।। ८।।
सत्ता बना सब अपनी, करत देश कों खाक।। ८।।
जात-पात में बाटके, भली करें ना कोय।
लूट खजाना देश का ,,भली करें ना कोय ।। ९।।
लूट खजाना देश का ,,भली करें ना कोय ।। ९।।
साधु अपनी झोल लिए, घर अनादि को जाय।
खोल टिप्पणे नाम के ,लूट माल लें जाय।।१०।।
खोल टिप्पणे नाम के ,लूट माल लें जाय।।१०।।
माला सत्ता माल की, मोती मोती पोय ।
इक मोती गिर गया तो, दूजा भला जितोय।।१२।।
इक मोती गिर गया तो, दूजा भला जितोय।।१२।।
राजनिती में आ गये, अनेकानेक चंद ।
नियम कायदे ना पता ,बन बेठे हैं नंद ।।१३।।
नियम कायदे ना पता ,बन बेठे हैं नंद ।।१३।।
अज घर-घर नेता मिले, बाकी रहा न कोय।
साधु भांड सिंह”रण”सभी, इस फिराक में जोय।।१४।।
साधु भांड सिंह”रण”सभी, इस फिराक में जोय।।१४।।
नेता ऐसा होंत की , बुरा करें ना कोय।
जनता की पीड़ाक में , पुरी रात ना सोय।। १५।।
जनता की पीड़ाक में , पुरी रात ना सोय।। १५।।
रणजीत सिंह रणदेव चारण
गांव – मुण्डकोशियां, राजसमनंद
मोबाइल न. – 7300174927