बेटी आयी तेरे घर
बेटी आयी तेरे घर, लक्ष्मी सी वों जन्म पर।
भेजा उस भगवान ने,,तुझ पर विश्वास कर।।
भेजा उस भगवान ने,,तुझ पर विश्वास कर।।
और भी घर खूब हैं, जहाँ होता बेटी सम्मान।
वहाँ न भेज यहाँ भेजा,,मत करना अपमान।।
वहाँ न भेज यहाँ भेजा,,मत करना अपमान।।
आज हम सबकों बता,बोल भेदभाव की खता।
क्यों रखते बेटी घृणा,,माँ,पत्नी हैं बेटी!हैं पता।।
क्यों रखते बेटी घृणा,,माँ,पत्नी हैं बेटी!हैं पता।।
क्यूँ बेटी जन्म पर, तुम स्वीकारना नहीं चाहते।
गर्भ हत्या कराकर के ,, तुम गर्त मैं फैंक आतें ।।
गर्भ हत्या कराकर के ,, तुम गर्त मैं फैंक आतें ।।
या थोडी रख मानवता, द्वेष की भूल दानवता।
जीने तो देते मगर,, दुलार छीन करतें दुश्वारता।।
जीने तो देते मगर,, दुलार छीन करतें दुश्वारता।।
पर भगवान ने तेरे घर, क्या सोचकर भेजा हैं।
तूँ तो न चाहता बेटी,,रखता स्वयं दिल में रैजा हैं।।
तूँ तो न चाहता बेटी,,रखता स्वयं दिल में रैजा हैं।।
पर भगवान नें सोचा,तूँ भी मनायें त्यौहार-रोजा।
दी इसलिए तुझें बेटी,,बनानें को बाप खोजा।।
दी इसलिए तुझें बेटी,,बनानें को बाप खोजा।।
तेरी झोली खुदा ने भरकर ,,बेटी सी वों बनकर ।
आयी तेरे आंगन में ,, खुशियाँ के दिन लेकर।।
आयी तेरे आंगन में ,, खुशियाँ के दिन लेकर।।
पर तूँ चाहता मारना,गर देख बेटी क्या होती हैं।
घर आनें से बता देखें,, कै कुचमाद होती हैं।।
घर आनें से बता देखें,, कै कुचमाद होती हैं।।
फिर भी तूँ इस बेटी को, अगर मारना चाहता।
मानवता को छोड तूँ , बेटी मार बेटा ही चाहता।।
मानवता को छोड तूँ , बेटी मार बेटा ही चाहता।।
तो बताओं बेटे क्या करेंगें, किससे शादी करेंगें।
किससे बढायेगें ये वंश,, जब बेटी हनन करेंगें।।
किससे बढायेगें ये वंश,, जब बेटी हनन करेंगें।।
माँ तेरी कोख से तेरी तरह, एक दुलारी आयी हैं।
क्यों भूल रही हों माँ,तुमभी बेटी बनके आयी हैं।।
क्यों भूल रही हों माँ,तुमभी बेटी बनके आयी हैं।।
हर घर में होती बेटियां,अनेकों रूप में बेटियां।
माँ,पत्नी,बहू ये सब भी ,, रह चुकीं हैं बेटियां।।
माँ,पत्नी,बहू ये सब भी ,, रह चुकीं हैं बेटियां।।
गर मारे तो माँ,पत्नी,क्यों जिंदा जिससे जन्मा हैं।
शादी की वों भी बेटी,,फिर क्यों उससे तमन्ना हैं।।
शादी की वों भी बेटी,,फिर क्यों उससे तमन्ना हैं।।
क्या बेटी अनमोल नहीं, बेटे जितना रोल नहीं।
आंखों के पर्दे खोल,,बेटी का कोई मोल नहीं।।
आंखों के पर्दे खोल,,बेटी का कोई मोल नहीं।।
उठा अपना सिर तूँ, बेटे से तो बढकर ये बेटियां ।
एक घर न दो घरों को,,रोशन करती ये बेटियां।।
एक घर न दो घरों को,,रोशन करती ये बेटियां।।
वंश बढाने वाली बेटी,घर चलाने वाली भी बेटी हैं।
फिर क्यों भूल जातेहों,जन्म लेने वाली भी बेटी हैं।।
फिर क्यों भूल जातेहों,जन्म लेने वाली भी बेटी हैं।।
गर ऐसा गौर पाप करते रहें,तो मनुष्य जाति समाप्त होगी।
बेटियां न चाहोंगे रणदेव तो,, बाकी रहें बेटे बनेंगें जोगी।।
बेटियां न चाहोंगे रणदेव तो,, बाकी रहें बेटे बनेंगें जोगी।।
रणजीत सिंह चारण “रणदेव”
गांव – मूण्डकोशियां, राजसमंद
7300174927