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चारण एक धारण
केवण विनती कालजों , मेहाई सुण मात।
चारण बट कैसे वियों,, सबने करदों साथ।।1।।
 
चारण एक धारण हों , शक्ति पुत्र हों साथ।
करदों किरपा करनला,,कदम-कदम हों हाथ।।2।।
 
शक्ति साक्षात् सोहें, धरा ऊपर धाय।
एक करों नी अंबका,, प्रथम इच्छा प्रदाय।।3।।
 
मारू कहें काच्छेला,, तितर-बितर तुंबेल।
स्वयं बढाई अहम् की ,, मानव ऊपर मेल ।।4।।
 
विनय मारी आही व्हैं, चारण हों इक साथ।
सब चारण हैं एक से,,मंशा पुरी कर मात।।5।।
 
चारणों सब चारण व्हैं , समझ आपणी सैख ।
जों ना समझें जौगणी, ना वों चारण नैक।।6।।
 
मारू माने करनला, कंकु माँ काच्छैल।
तुंबेल मने सोनला,, ऊंच नीच को मैल।।7।।
 
करणी सोनल कुमकुम, हिंगलाज आवड मात ।
शक्तियां सब समान हैं,, सोचों चारण जात।।8।।
 
आप प्रथम माँ आवडा, शक्ति स्वरूपा सांज ।
चरण पडें चारण चरणा, करनल तेरों काज।।9।।
 
भूलज्यों मती भंंजणी ,  चारण तोरे चार।
करजों किरपा कोड सूं ,सुखमय दिज्यों सार।।10।।
 
चारण बसे तुझ चरणा, शरणा लिज्यों साथ ।
आवेला जद दु:ख मया ,आगे करजों हाथ।।11।।
 
मढ आयों तोरे मया, दास शरण तुझ दाय।
सम्मुख करूं सिंवरणा, मोरी सुणलें माय।।12।।
 
@चारण अस्तित्व सेवा संगठन@
 
रणजीत सिंह रणदेव चारण
मुण्डकोशियां, राजसमन्द
7300174927

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