भारत के पूर्वोतर राज्य त्रिपुरा की सीमा आसाम व मिजोरम से लगती है, त्रिपुरसुंदरी शक्ति-पीठ यहां पर स्थापित है यह त्रिपुरभैरवी के नाम से भी जानी जाती है यह ब्रह्मस्वरूपा देवी है भुवनेश्वरी को विश्वमोहनी माना गया है यहां माता को परादेवी, महाविद्या त्रिपुरसुंदरी, ललिताम्बा नाम से भी जाना जाता है इस देवी पीठ का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्व है इसी के नाम पर राज्य का नाम त्रिपुरा है !!
यहां शक्ति “त्रिपुरसुंदरी तथा भैरव “त्रिपुरेश” है
यहपीठ कूर्मपीठ भी कही जाती है आद्याकाली अपर नाम है यहां देवीके दक्षिण पाद (पैर ) का का निपात हुआ था यहां आद्या मां की एक छोटी मूर्ति है जो त्रिपुरा के प्राचीन राजा द्वारा स्थापित है !!
त्रिपीरसुंदरी मंदिर कथा !!
सौलहवीं सदी के शासक धान्यमाणिक को एक स्वप्न मे माँ ने बताया कि चिंतागांव की पहाङी पर मेरी मूर्ति है उसे आज ही लानी है राजा ने तुरन्त ही जगकर अपने सैनिक भेज मूर्ति लाने का हुक्म देकर सैनिकों को कहा, अभिष्ट कार्य पर गए सैनिको को वापसी मे आने पर जहां सूर्योदय हुआ वही माँ के आदेशानुसार मंदिर बनाया गया, राजा धान्यमाणिक वहां विष्णुका मंदिर बनाना चाहते थे पर उनका संशय मिटाने हेतु भगवती ने स्वंय आकाशवाणी तब राजाकी दुविधा हटी और भव्य मंदिर बनाया !! मंदिर के पार्श्व भाग मे झीलनुमा तालाब मे बङे कछुए व मछलियां है जिनको मारना पकङना निषेध है तथा प्राकृतिक मौत होनेपर तालाब कल्याणसागर के पास में ही दफनाने का स्थान नियत है उस मंदिर व कल्याणसागर की की देखरेख दैनिक व दैनिक व्ययखर्च त्रिपुरा सरकार की समिति के द्वारा होता है दीपावली के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन भी समिति के द्वारा ही किया जाता है !!
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(2)
*जयंतीदेवी शक्ति-पीठ !!*
*!! मेघालय !!*
मेघालय में शिलांग से 50 किमी. दूर जुवाई से पहले मूलांग से बांई और नरत्यांग का सङक मार्ग है, इस मार्ग पर जयन्तिया पर्वत आता है, पर्वत मार्ग में नरत्यांग नामक स्थान पर जयंती देवी का शक्ति-पीठ है ! देवी के नाम से ही इस पर्वत श्रेणी को जयन्तिया हिल्स कहा जाता है!
यहां सती की बांयी जंघा का निपात हुआ था यहां की शक्ति जयन्ती और भैरव क्रमदीश्वर है यहां परंम्परा से पूजारी महाराष्ट्र के ही देशमुख ब्राह्मण हैं !!
सरलार्थः….. हे माता ! आपके चरण-कमलों से उत्पन्न अति मृदुल पराग-रजःकण का संचय करके ब्रह्मा बिना किसी विकलता के लोक व लोकान्तरों की सृष्टि करते हैं ! श्रीहरी विष्णु जी शेषनाग रूप उन लोक-लोकान्तररूप ब्रह्माण्ड को अपने सहस्त्र फणों पर जैसे-तैसे कठिनत्तम परिश्रम से धारण करते हैं तथा हर शिव उसका संहारण करके उसकी भस्म अपने अंग प्रत्यंग पर लगाते हैं ! अर्थात ब्रह्मादि तीनों देवो के ही सृष्ट्यादि कर्म भगवती के चरणरज के ही आधीन है !!
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(3)
*””कामाख्या शक्ति-पीठ आसाम””*
पीठानि चैकपंञ्चाश्दभवन्मुनिपुंङ्गव !
तेषु श्रैष्ठतमः पीठः कामरूपो महामते !!
( महा भा. 12/30 )
कामाख्या शक्ति पीठ, देश में अवस्थित पीठोंमें सर्वश्रैष्ठ माना गया है! यहां ब्रह्मस्वरूपा माता जगदम्बाके भक्तोंकी मुक्ति के हेतु तथा साधकों
की सिध्दि के लिए नित्य विराजित है! वर्तमान समय में भी कामाख्या जागृत एवं पुण्यतम शक्तिपीठ के रूप मे सर्वजन विदित है !
यहां भगवती सतीदेवी की योनि मुद्रा ने पर्वत के पतित होकर नीलवर्ण धारण किया अतः इस पर्वत को नीलांचल के नाम से जाना जाता है व यहां की अधिष्ठात्री देवी कामाख्या के नाम से जगतप्रसिध्द हुई है, शक्ति शिव के बिना अपूर्ण है शिव भी शक्ति के अभाव में शव के समान है अतः कामाख्या देवी के भैरव उमानन्द शिव हैं जिनका मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है !!
कामरूप-कामाख्या !! नामकरण का पौराणिक उपाख्यान !!
सती की देह कन्धेसे अलग होने पर महादेवजी स्वस्थ होकर फिर हिमालय मे ध्यानस्थ हो गए उन्ही दिनो ताङकासुर ने कठोर तपस्या द्वारा परमपिता ब्रह्माजी का वर प्राप्त कर लिया था कि शिव के पुत्रके अतिरिक्त और कोई ताङका सुर को पराजित नही कर पायेगा, वर प्राप्ति के पश्चात असुर ताङक ने स्वेच्छाचार प्रारम्भ कर दिया व त्रिलोक को संतापित करने लगा, सभी देवगण असुर के बध के उपाय सोचने लगे एवं भगवान शंकर को ग्राहस्थ्य में लानेमे प्रयासरत हुए, गिरिराज हिमालय की पत्नि मेनका एक सौ वीर पुत्रों व एक भुवनमोहिनी कन्या प्राप्ति की कामना से महामाया आद्याशक्ति आराधना करने लगी! उनकी पूजा से प्रसन्न महामाया ने मेनका को इच्छित वरदान व स्वंय मेनका की कन्या के रूप में जन्मग्रहण किया ! गिरिराज कन्या गौरी रूप प्राकट्य सुन देवगण प्रसन्न व आनंन्दित हुये व देवर्षि नारद को हिमराज के घर धेजा, गिरिराज हिमालय नारद से अवगत कि पार्वती महादेवजीको पतिरूप वरण करेगी,
इसकारण हिमालय ने पार्वती को शिवकी परि चर्या में नियुक्त किया पर महादेव की समाधि भंग न होते देख देवता ब्रह्माजी के पास गए व ब्रह्माने कामदेव व रति को शंकर का ध्यान भंग करने भेजा, कामदेव ध्यान भंग मे सफल हुए पर हर की क्रोधाग्नि में भस्मीभूत हो गए !!
!! श्लोक !!
रतिमूचुः सुरा सर्वे रूरूदश्च मुहुर्मुहुः !
काञ्चिद् भस्म गृहीत्वा च रक्ष मातर्भयं त्यज !!
वयं त जीवयितष्यामी लभिष्यसि प्रिये पुनः !
हरको पापनयनेसुप्रसन्नदिनेअपि च !!
देवताओं के आदेशानुसार शोकातुरा रतिदेवी ने कामदेव की भस्म को सहेजकर रख लिया एवं महादेव अपना आश्रम छोङ अन्यत्र चले गए !!
पार्वती शिव को पतिरूप पाने हेतु कठिनत्तम व घोर तपस्या में संलग्न हुई, चक्रपाणी पिनाकी आशुतोष शंकर ने देवी की आराधना से प्रसन्न हो पार्वती को विवाह करने का वचनदिया तथा देवर्षि को विवाह संयोग-स्थापना का आदेश दे दिया, विवाह मे सभी देव देवी त्र्रृषि मुनी यक्ष किन्नर गंधर्व चारण आदि सानंन्द हिमालय के घर पहुंचे, देवों के इसारे पर वररूप महादेव के सामने कामदेव की भस्मी रख कर रतिदेवी ने “”हाय नाथ हाय नाथ”” का प्रलाप किया भोले भगवान शूलपाणि ने सुधामय दृष्टि से कामदेव को उस भस्मी से पुनःआविर्भूत कर रतिदेवीको अनंग प्रदान कर सनाथ कर दिया !!
कामरूप नामोत्पतिः……पुर्व कान्ति आभा से वंचित, दुःखी मदन व रति महादेव आराधनामें लीन हो गए, भृषभध्वज भोऴेनाथ ने प्रसन्न हो कर मदन को पूर्वकान्ति का उपाय बताते हुए कहाक””नीलांचल पर्वतपर इक्यावन महापीठों
मेंसे एक महापीठ अब भी गुप्त है, तुम वहांपर जाकर उस महामुद्रा के उपर प्रस्तरों से सुन्दर एक मंदिर का निर्माण करावो, एसा करने पर तुम पुर्व स्वरूप को प्राप्त हो जाओगे !!
भक्ति अर्घ्य समर्पण कर, हर से विदा लेकर वह दम्पति नीलांचल आकर विश्वकर्मा का आह्वान कर उसके सहयोग से मंन्दिर निर्माण का महति काम कर महामाया की भक्तिराधना की, देवीने रति-कामदेव की भक्ति व निष्ठा से प्रसन्न होकर कामदेव को पूर्व स्वरूप में स्थित करदिया, तब इस प्रदेश का नाम कामरूप प्रान्त बनगया !!
!! श्लौकः !!
शम्भुनेत्राग्निनिर्दग्धः कामः शम्भोरनुग्रहात् !
तत्र रूप यतः प्राप्त कामरूपं ततोअभवत् !!
अतः आज भी यह प्रान्त कामरूप कामाख्या के नाम से प्रसिध्द है व जाना जाता है बहुत ही सिध्द व जागृत महापीठ है भक्तोंकी कामनाएं व मनोरथ सफल सिध्द करती है !!
( इस विवरण में किसी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी है व सुझाव सहयोग आमंत्रित है)
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(4)
*श्री बहुलादेवी शक्ति-पीठ !!*
*!! पश्चिम बंगाल !!*
पश्चिम बंगाल के हावङा रेल्वै स्टैशन से कटवा की दूरी लगभग 145 किमी. है, कटवा से बस मार्ग द्वारा केतुग्राम जाया जाता है बस अड्डे से ऐक किमी दूर अन्दर बस्तीमे तालाब के किनारे बहुला देवी का शक्ति-पीठ है !!
यहां की अधिष्ठात्री देवी बहुला है और भीरूक नामक भैरव है यहांपर सती की बांयी भुजा का गिरना बताया जाता है !!
भावार्थ-सरलार्थः…….. हे भवानी ! आपके श्री चरण-कमल का यह रेणु अविद्यारूप अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य का आवासगृह है व अनन्त सूर्यरूप से प्रकाश देने वाला है जङ-जीवो के लिए चैतन्य-पुष्प-गुच्छ के मकरंद को बरसाने वाला झरना है, दरिद्र दीनजनो के लिए चिन्तामणी (सर्वेप्सित-साधिनी) माला है, तथा संसार-समुद्र मे डूबे हुए जीवों के लिए विष्णु के अवतार वराह भगवान की दाढ है ! अर्थात इस आपके चरणकमल के पराग के कण के प्रभाव से अज्ञान नष्ट होकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त हो जाता है, जङता का लोप होकर चैतन्यता का विकास होता है, दरिद्रों की सभी अभिलाषाओं की पूर्ति होती है तथा अनन्त जन्म लेने के भव बन्धनों से मुक्ति मिलती है !!
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(5)
*””!! काली शक्ति-पीठ !! काऴिका देवी !!””*
*!! पश्चिम बंगाल !!*
पश्चिम बंगाल में कलकत्ते में कालिका देवी का मंदिर शक्ति-पीठ है भैरव यहां नकुलीश है यहां सती की शेष पादाङ्गुली गिरी थी इसमें मूर्ति महाकाली की है यहां की शक्ति कालिका है !
मतान्तर से आदिकाली मंन्दिर शक्ति-पीठ माना जाता है जो टालीगंज के समीप है तथा प्रधान मंन्दिर नष्ट होने पर यह दूसरा मंन्दिर पुनः बना है मन्दिर में शिखर नहीं है मुख्य मंन्दिर प्रांगण मे ऊंचे चबूतरे पर एक और पांच तथा दूसरी और छःह मंन्दिर है जिनमें शिवलिंग स्थापित है इस प्रकार यह एकादश रूद्र मंन्दिर भी है !!
भावार्थ-सरलार्थः……..हे माता ! ब्रह्मा जगत की सृष्टि करते हैं, विष्णु जगत का पालन करते है तथा रूद्र जगत का संहार करते हैं तब ईश्वर सबका तिरष्कार करके स्वंयं को तटस्थ रखते हैं ! तदन्तर सदाशिव भगवतीके भृकुटि विलास मात्र से आज्ञा प्राप्त कर पुनः नवीन सृष्टि करके ब्रह्मादि देवों पर अनुग्रह करते हैं !!
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(6)
*””!! युगाद्यादेवी शक्ति-पीठ !!””*
*!!पश्चिमी बंगाल !!*
बर्दमान से कटुआ के बीच पहले नैरोगेज रेल्वे लाईन थी आजकल ब्रौडगेज में बदल गई उस पर लगभग 40-45 किमी दूर केचूर रेलस्टेशन है वहां से पांच किलोमीटर दूर क्षीर ग्राम है !!
यहां देवी प्रतिमा गांवमें अवस्थित तालाब मे ही मंदिर है तथा ऐक छोटे से कक्ष में स्थित मूर्ति तालाब के पानी में डूबी रहती है हर वर्ष ऐक बार बैशाख मास में उत्सव आयोजित होता है तब मूर्ति बाहर निकाली जाती है व ग्राम भ्रमण कराया जाता है !!
यहां सती का दाहिने पांव का अंगूठा गिरा था ! यहां की शक्ति भूतधात्री और भैरव क्षीरकंटक है !!
भावार्थ-सरलार्थः……….. माता श्रीललिता महात्रिपुरसुन्दरी अनेक ब्रह्माण्डरूप घुँघरुऔं से बनी, मधुर शब्द करती हुई करधनी ललित कटि में धारण किए हुए है, बाल हस्ति के गण्ड स्थल के समान पुष्ट एवं अमृतपूर्ण स्तनों के भार से किञ्चित नत, अर्थात विश्व का भरण- पोषण करने के अनुरूप स्तनभार धारणकर्त्री मध्यभाग में नैसर्गिक सौन्दर्य से पूर्ण कृश तथा शरद्-पूर्णिमां के चन्द्र के समान शान्तिदायक मुखवाली है ! चारों भुजाओं में धनुष, बाण, पाश व अंङ्कुश धारण किएहुए भगवान शंकर की उत्साह-शक्ति आप हमारे ह्रदय कमल पर विराजमान हो !! आपको नमन है !!
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(7)
*””!! फुल्लरा देवी शक्ति-पीठ !!””*
*!!पश्चिमी बंगाल जिला वीर भूम !!*
पूर्वी रेल्वे की अहमदपुर-कटवा लाईन पर लाभ पुर स्टेशन है, स्टैशन के समीप ही अट्टहास देवी
का मन्दिर है यह मंन्दिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक है यहां सती का अधरोष्ठ, नीचे का होठ गिरा था, यहांकी शक्ति फुल्लरा और भैरव यहां विश्वेश है !!
भावार्थ सरलार्थः……हे हिमालय पुत्री, माता !
आपके कृपा-कटाक्ष का ही प्रभाव है कि भोले भगवान शिवकी नेत्राग्निसे दग्धकामदेव अनङ्ग होकर भी अकेला जगद्-विजेता बना हुआ है व देखा जाएतो उसके आयुध्दों में भ्रमर की चाप, प्रत्यञ्चावाला धनुष पुष्पोंसे बना हुआहै उसके
पास केवल पांच बाण ही हैं अकेला वसन्त ही उसका साथी सेनापति है तथा शीतल मलय पवन ही युध्द का रथ है (ये सभी सामान्य है ! तथापि) आपकी कृपापूर्ण अमृतमयी दृष्टि से वह अनङ्ग सशरीर उत्पन्न होकर अकेला अखिल विश्व पर विजय प्राप्त कर रहा है अतः आप कामाक्षी-अक्षि (नेत्र) से काम को उत्पन्न करनेवाली है !!
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(8)
*””!! श्री नन्दिनी देवी शक्ति-पीठ !!””*
*!! पश्चिमी बंगाल !!*
हावङा से रामपुर हाट रेलमार्ग 140 किमी दूरी पर सैंथिया स्टैशन है, सैंथिया स्टैशनके पास ही एक वट वृक्ष के नीचे देवी नन्दिनी का श्री शक्ति
पीठ है भैरव का नन्दिकेश्वर नाम है यहां पर सती का कंठहार ( गले का हार ) का निपात हुआ था !!
भावार्थ सरलार्थः….. हे माता ! आपके गुण-कीर्तन के रूप में मेरा परस्पर आलाप ही आपका जप हो, आपकी सेवा में निमित्त मेरा हस्तशिल्प, कार्य-कलाप सब कुछ ही आपको प्रदर्शित करनेवाली मुद्राओं के रूप में हो ! मेरा इधर-उधर चलना-फिरना आपकी प्रदक्षिणा-रूप बन जाए, मैं भोजन में जो खाना व पीना करता हूं, वह आपकी आहुति-विधि-होम मे दी जानेवाली आहुति का रूप प्राप्त करे, मेरा बैठना व शयन करना आपके श्रीचरणों मे प्रणाम करना है ! इस प्रकार मेरी जो भी प्रवृति व्यवसाय, बोलना, चलना, बैठना, उठना तथा कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियो के जो भी समस्त क्रिया-कलाप हो, वे सभी पूजा के, सेवा के पर्याय बन जाएं अर्थात मन-बुध्दि और देह से होनेवाली सभी क्रियाएँ भगवती की पूजारूप हो जाएँ !! जय हो भगवती श्रीनन्दिनी देवी !!
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(9)
*”” !! नलिटेश्वरी देवी-नलहटी शक्ति-पीठ !!””*
*!! पश्चिम बंगाल !
*!! कालिका देवी-पार्वतीदेवी !!*
पंश्चिमी बंगाल के हावङा-क्यूल लाईनपर राम पुर हाट के बाद नलहटी स्टेशन आता है उसमें भगवती नलिटेश्वरी का शक्तिपीठ है यहां सती की उदरनली (आंत्र) गिरी थी यहां की शक्ति व भैरव, कालिका व योगीश नामक है !!
!! श्लौकः !!
हरिस्तामाराध्य प्रणत-जन-सौभाग्य-जननीं,
पुरा नारी भूत्वा पुररिपुमपि क्षोभमनयत !
स्मरोऽपि त्वां नत्वा रतिनयनलेह्येन वपुषा !
मुनीनामप्यन्तः प्रभवति हि मोहाय महताम् !!
भावार्थसरलार्थः…….हे भक्तजनों को लोकोत्तर
सम्पत्ति प्रदान करनेवालीं माँ ! श्रीहरि ने पुर्व में मन, वचन और काया से आपकी आराधना करके आपके सायुज्यरूप मोहिनीरूप को प्राप्त करके काम-दहन करके स्वयं महादेव को भी मोहित कर दिया था ! उसी से प्रेरणा प्राप्त करके कामदेव ने भी आपकी आराधना की व जिसके फलस्वरूप वह भी रतिनेत्र चुम्बनयुक्त अत्यन्त मनोहर शरीर को प्राप्त करके अतीव मनोहारिणी शक्ति से बङे तपस्वी महामुनियों के मन में विकार उत्पन्न करने में समर्थ होता है !!
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(10)
*”” !! किरीटेश्वरी-भुवनेशीदेवी शक्ति-पीठ !!””*
*!! पश्चिमी बंगाल !!*
पश्चिमी बंगाल में हावङा-बरहरवा लाइनपर खगरा घाट रोङ स्टेशन से पांच मील लालबाग कोर्ट रोङ स्टेशन है तथा उसके तीन मील दूरी पर बटनगर के पास गंगाजी के तट पर देवी श्री किरीटेश्वरी का शक्ति-पीठ है और यहां दूसरी और अजीमगंज से डाहापाङा रेल्वै स्टैशन से होकर भी यहां जाया जा सकता है !!
यहां पर सती के किरीट का निपात हुआ था ! शक्ति का नाम विमला भुवनेशी व भैरव का नाम संवर्त नाम है !!
भावार्थ सरसार्थः…….. हे भगवती ! आप कुण्डलिनी शक्तिके रूपमें षटचक्र मूलाधारादि का वेध करके आज्ञाचक्र से उपर विराजमान हैं अतः आपके चरणकमल पंञ्चतत्व व मनोरुप छः चक्रों की क्रमशः मूलाधार-पृथ्वी मे 56तथा स्वाधिष्ठान-जल मे 52, मणिपुर-अग्नि मे 62 ,
अनाहत-वायु में 54, विशुध्द-आकाश मे 72 ,
आज्ञा-मन में 64 ( कुल 360 ) रश्मियों के उपर है ऐसै परम महिमामय चरणों की अति विशिष्ठता का वर्णन मैं क्या करूँ !!