जवाहरदान जी रतनूं, थूंसड़ा रा प्राचीन समय रा चारण साहित रा सिरजणहार साधक हा। रतनूं साहब री भगवती री चिरजा/रचनांवां री अजब अनूठी अलंकारिक व भावपक्ष री न्यारी निराऴी हटोटी ही। रतनूं साहब री चिरजांवा रो ऐक बड़ै संग्रह रो प्रकासन “श्रीजगदम्ब-सुयश” नाम री किताब रौ आज सूं लगभग सौ सवा सौ बरसां पैली निकऴियो जिको आज विलुप्त प्राय सो ही है। आज दुबारा प्रकासन हो सके तो साहित री बड़ी सेवा की जाय सके है। आदरणीय जवाहरदानजी री ऐक विशेष बात भऴे पठनीय है कि इण ग्रंथ में सो सूं भी अधिक रचनावां में कठैई आपरे नाम री छाप नही है, सभी रचनावां में थाणा राजाजी रामसिंहजी नरूका री छाप लिखी है। आज ऐहड़ो त्यागी अर उदारमना कवि रो मिलणो बड़ी उच्चे स्तर री बात है। जवाहरदानजी रतनूं साहब रचित रचना भैरूंनाथ रा छप्पय पाँच आप सब री सेवा मे समर्पणः
।।भैरवानाथ।।
।।छप्पय।।
डमर डाक डम डमक, घमर घूघर घरणाटै।
पग पैजनि ठम ठमक, स्वान झमझम सरणाटै।
द्युति आनन दम दमक, रमक गंध तेल रऴक्कै।
गयण धरा गम गमक, खमक मेखऴी खऴक्कै।
सम समक संप चम चम चमक, धमक बहै रँग धौरला।
मोरला काम कज चढ हद मदद, (रे) गुरज लियाँ कर गौरला।।1।।
बीज इन्दु पट वृन्द, अलक अलि वृन्दक ओपत।
मन्द मन्द मृदु हास, छंद छवि लोचन सोवत।
वृषभ द्वन्द सम कंध, बांह भुजबंन्ध बिराजत।
स्वान श्याम सुख कंद, छंद करतो संग छाजत।
चांवण्डानंन्द दुख द्वंन्द चर, तवां सुयश छंन्द तौरला।
मोरला काज कज चढ हद मदद, (रे) गुरज लियां कर गौरला।।2।।
रजवट वट रा रूप, महानट रा सुत मोटम।
बावन बट रा बींन्द, इहग कुऴवट रा ओटम।
चटपट आ सुण चाड, आव अटपट दे आंटो।
गट गट पी मद गुटक, काढ झटपट दुख कांटो।
दोरला दीह दूरा करण, सैणाँ राखंण सौरला।
मोरला काम कज चढ हद मदद, (रे) गुरज लियां कर गौरला।।3।।
अविरल खड़ उप्रवटी, सटी जिम शूऴसिंगाऴा।
पटी लटियां पाड़ियाँ, नटी नख शिख नखराऴा।
भल मद भार भटी, बटी खऴ कर बरणाटै।
सियो धून धूर्जटी, घटी घूघर घरणाटै।
आवरै अठी आनन्द उदधि, निम निम करूं निहोरला।
मोरला काम कज चढ हद मदद, (रे) गुरज लियाँ कर गौरला।।4।।
थिरू थूंसड़ै थान, कऴा अप्रमाण कहीजै।
खेजड़मल गुण खांन, राय जादो रमवीजै।
परचा प्रथी परमाण, ताण बाखाण तणीरा।
आवै रांण खुमांण, जांणवै भाव जंणीरा।
आसव उफाँण आपांण अंग, भाग कुमंदा भ्रांजवै।
शुभयांण कियां सूजस सदां, राजस गौरौ राजवै।।।।5।।
थीरू गांव मो थूंसड़ो जाहर नाम जूहार,
रहणों अलवर राज में अम्ब तणो आधार।।
~जवाहरदानजी रतनूं (थूंसड़ा – अलवर)
प्रेषित: राजेंद्र जी कविया (संतोषपुर, सीकर)