!! प्रसिध्द ऐतिहासिक चिरजा !!
!! रचयिताः- जागावत हिंगऴाजदान जी !!
संदर्भः- बीकानेर के पाँचवे शासक राव जैतसी और मुगल बादशाह हुमायूं के छोटे भाई कांमरानके बीच हुये युध्द जिस मे विजयश्रीका वरण माँभगवतीकरनीजी की कृपा प्रसादसे जैतसी का हुआ था !!
बीकानेर की इस ऐतिहासिक घटना पर अनेक कवियों ने रचनाऐं रची हैं,
यथाः-सूजा जी बीठू कृत, (राव जैतसी रो छंद) हिंगऴाजदानकवियाकृत (मेहाई-महिमा), मानदानजी, कविया गंगा दानजी कविया, बांकीदासजीआशिया केसराजी खिङिया, रामदानजी लाऴस, पाबूदानजी आशिया, खेतसीजी बारहठ,हिमतजी बारहठ आदि अनेका-नेक चारण कवियों ने तथा, अन्य समाज के कवियों ने इस युध्द का काव्या त्मक वर्णन किया है और अन्यत्तम सुन्दर सरस भावपूर्ण लेखन कियाहै पर गेयरूप (गायन शैली) पद्य”चिरजा” हिंगऴाजदान जी जागावत ने ही लिखी है !!*
यह युध्द विक्रमी संवत 1591 की मार्ग- शीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्थी व शनिवार के दिन हुआ था इतिहास तथा तवारीख बीकानेर राज में भी यह तिथीमिति मिलान खा रही है जागावत जी ने भी इसका वर्णन किया है जो कि डिंगऴ की सुन्दर विधा है !!
मंयक=1 , अंक=9 , पख=15 अर्थातः…..इस संख्यांक को पलटने पर 1591 बनते है !!
!! दोहा !!
मंयकअंक पख मांगसिर,
सिध्दियोग शनिवार !
कृष्ण पक्ष की चौथ कौ,
ले देव्यां घण लार !!
!! चिरजा !!
जंग नृप जैत जिताबा, लागी असवारी लोवङ वाऴ री !! टेर !!
शोभित आप शक्ति संग केती,
(अरू) जो जोगण जगमांय !
आसव लेण बेर हिय आंरै,
ना कारो मुख नांय !!1!!
केहरि पै केशर खुबै,
लालां कटि लंकाऴ !
बऴधारी बबरीक बिराज्या,
फूल भरावै फाऴ !!2!!
मारै मलफ मयन्द मेहाई,
दौङ धरा अधकोस !
गूंज्यां जेण गुङैं गज घोङा,
होय घणां बे होश !!3!!
प्रण कर पांव पागङै कीन्हो,
माँ आवङ मृगराज !
हाला लेय हरी चढ हाँक्या,
हुय आगै हिंगऴाज !!4!!
धरि उर क्रोध अधिक दाढ्याऴी,
कर बङ लीन्ह कृपाण !
दऴ काबुल सांमां धक्या,
लेण यवन बलिदान !!5!!
भैरव दाखि खमां मुख भाख्या,
बिरद तणां बाखाण !
खिल दाढी खाता खङ्या,
चक्र अधिक चलाण !!6!!
सुनि घण्टा घण्ट्याऴी श्रवणां,
हुवौ सूचित अहिराज !
देखण युध्द देवी रो जा दिन,
रोक लियो रवि बाज !!7!!
आई नाथ चढ्यो थां अधिको,
जिण पुऴ आनन जोश !
हरि हर ब्रह्मा आदि तिहारो,
रोक सकै नहि रोष !!8!!
नारद वेणु बजा द्विज नाचै,
हँसि हँसि मन हरषाय !
शँकर संचै हेतु सुमरणी,
मोटा शीश मंगाय !!9!!
पङिया यवन खेत कहं पीरां,
जैत नरिंद पख जोर !
छत्र चढाय छोटङे छटक्यो,
कमरो काबुल ओर !!10!!
मरिया वीर जिवा मेहाई,
पिण्डा मेटी पीर !
सांवत खङा हुया यों सोहैं,
ज्यों मुनि गंगा तीर !!11!!
बैठ विमान पुहुप बरषाया,
देव घणां उण दीह !
बङ परवाङो भगवती ओ,
आंखूं किमि इक जीह !!12!!
ऐ ब्रद मात आपका इन्दू,
करि किरपा सुन कान !
कहै ‘हिगऴाज’ राखज्यो कऴू में,
ब्रद जूनां री बान !!13!!
जंग नृप जैत जिताबा लागी असवारी लोवङवाऴ री !!!!
इस चिरजा का गायन सन 2011 के चारण छात्रावास सीकर के भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशि के वार्षिक जागरण में ऐक मुसलमान मिरासी ने बहुत ही सुन्दर सरस प्रस्तुति माड राग मे दी थी उसके बाद में उस गायक से पुनः मिलना नहीं हो पाया !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!