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!! जसराज बारहठ रो जस !!

नवकौटि मारवाङरा राजमें देवरिया गांव रा बारहठ जसराज वैणीदासौत महाराजा जसवन्तसिंह रा मर्जीदानां में हा, बारहठ जसराज जी घणां टंणका अर अङोभीङ वीर अर उद्भट विद्वान भी हा, महाराजा, बादशा शाहजां अर शाहजादा दाराशिको रा पक्ष में तीनां बागी शायजादां ने रोकण खातर उज्जैन कनै धरमत गांव री लङाई में मोर्चा लगाय मरण मतो करियो हो जद उंणारे साथै बारहठ जसराजजी भी डट’र मुकाबलो करियो ने वीरगति रो वरण कर सुरग रो वास करियो !!

लङाईरी झाकझीकमचियोङीमे मौजिज वीरां महाराजा रे साथै जसराज बारहठ रे तुरंग री बाग पकङ मैदान सूं बाहर लेय जावण री कौशिष करी तो जसराज जी मना कर मैदान में ऐहङा डटिया के मर मिटिया पर हटिया नहीं, उण समै विक्रमी संवत १७१५ की उण शौर्यपूर्ण वीरता व स्वाभीमान री आँख दीठी पराक्रम पूरण बलिदान सूं अभिभूत हुय वीरगति वरण करिया मित्र जसा बारहठ री स्मृति मे एक सोरठो रचियो जो कि दीठण जोग है !!

!! सोरठा !!
रत जो आवत रार, वार न आवत वैणवत !
सांचौ हित संसार, जद तो मो जांणत जसा !!
अर्थातः…. हे जसराज ! तुम्हारी मृत्यु के समय मेरी आँखो से आंसुओं की जगह यदि रक्त टपकता, तब दुनियां को तुम्हारी ओर मेरी प्रीति का सही पता चलता !!

इणीज महाराजा री दिखण ने कल्याणी गांव रे मुकाम पर तैनाती ही, उणीज समै आपरे प्रिय कुंवर प्रथ्वीनिंह रा निधन रो खोटो समाचार सुणियो तो वेदना चौगुणी हुयगी अर ऐकर फेर जसराज बारहठ भी याद आयगो, उण समैं महाराजा री मन री वेदना ऐक सोरठे में छलक ने बाहर आय गई !!

!! सोरठो !!
घट सूं ऐक घङीह, अऴगां आवङतौ नहीं !
पीथल घणी पङीह, जुग छेटी जसराजवत !!

~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!

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