“दात्तार अर सूर संवादौ” !!
!! शंकरदानजी बारहठ रचित !!
बीकानेर रा दरबार रायसिंह जी इणीज कवि शंकर बारहठ ने सवा करोङ पसाव रूपियां रो पसाव प्रदान करियो हो, इणां शंकरजी बारहठ रै मन मानस मांय विचार आणियो कि दातार अर सूर में कुण बङो अर कुण छोटो, “जठै न पूगै रवि उठै पूग जावै कवि” इण कैवत नें सांची चरितार्थ करावतां बारहठ साहब दातार अर सूर रो संवादो नाम री ऐक नामी अर ठावकी’ज रचना रचित कर दीवी, जिणमें ऐ दोन्यूं’ई ऐक बीजा सूं श्रैष्ठतर अर आछा अपणे आप नै बताय संवाद मांडियो जिणरो ही बरणाव बारहठ शंकरजी कुल पच्चीस छंद दोहा छप्पय आदि बणाय ऐक सांतरी मुंडै बोलती रूपाऴी रचना बणाई !
दातार उवाचः……
राजा बलि रै सामी भगवानजी भी हाथ पसारिया हा अर दानवीर कर्ण आपरा कुण्डल अर विजै प्रद कवच रो भी दान करियो ! राजा मयूरध्वज ने बामणपुत्र री रक्षा खातर आपरा माथा नै करोत सूं भी बाढवायो, राजा शिवि कबूङा ने बचावण ने अर बाजने धपावण ने आपरा तन रो मांस काट’र दातारी दिखाई अर आखिर खुद ताखङी रै पालङै घलीज बङा दातार बजिया, इण वजह प्रातः रै उठांण नर सुर नाग अर सारी पिरथमी दातारां नै सिमरै इण वास्तै दातारी बङी है अर मनैं इण माथै गुमैज है !
इण गरबीली बात ने सुण सूरापण (वीरता)भी आपरै पखै में ऊदाहरण दिया किः……..
लंकापति रावण रामजी नै छःमास तांई छकाया इण वीरता पाण ही राजा दुर्योधन अपरबऴी पांडवा नै भटकाया बीरता री कांण राखी ! कालयवन रै आगै किशनजी भागर रणछोङ बणिया तो उणरै मांई भी म्हारो हाथ हो,शिशपाल अर जरासन्ध भी बीरता रै पाण किशनजी रो लारो करियो व परमपद पाईयो, जाऴन्धर रै अागै भाग भगवान संमदर मे शरण लीवी ही सो हे बावऴी दातारी थारी अर म्हांरी कीं बातरी बरोबरी कोयनी !
इणगत रा पौराणिक परवाङां रा घणाक आख्यानां रै साथै दातार-सूर संवादा नै भी घणो रोचक बणायो है शंकर जी बारहठ , अब ऐक बानगी देखो !!
!! दातार-वायक !!
!! छप्पय !!
बऴि आगऴि त्रिहुं, राय हरि हत्थ पसारै !
करण इन्द्र अप्पियो, कवच तन हूंत उतारै !
जीवोतर तन वहिर दीध, विप्र पुत्र छुङायो !
भज कपोत सींचाण, वहे शिवि शरणै आयो !
अह समा ऊठि इऴ ऊपरां, अहि सुर नर मो ऊच्चरै !
दात्तार गरब्बै दाखियो, कवण मुझ समवङ करै !!
अब सूरवीर आपरा सूरापणरी सार्थकता री समानता मे दातार नै दबतो बतावणरी कोशिश करै ! बानगी दृष्टव्य है !!
!! सूर-वायक !!
!! छप्पय !!
लंका रांमण रांमचंद, खट मास खिटाए !
पांडव पांच दुजोण, काढि बनवास भमाए !
काऴजवन आगऴी, दीध हर विमुंह पयांणा !
जरासेन शिश पाऴ, सूर बे जोति समांणा !
जाऴधर जीता त्रैभवण, गयो सायर सरणै हरी !
ऊच्चरै सूर दात्तार प्रति, तो मो किसी बराबरी !!
इण तरियां’रा तर्क वितर्क हुय सेवट बात रायसिंहजी कनै पुगै अर विद्यारा अनुरागी महाराजा दातार अर सूर दोनवांरी दलीलां ध्यानदेय सुणी अर अन्त में आपरो मोटो फैसलो दात्तार रा पक्ष में देय धन री तीन गतियां भोग, दान अर नास में सबां सूं ही बङी गति दानवीरतारी सार्थकता ने बङी बताई !!
!! दोहा !!
तन वीजूजऴ, पऴ समऴ, शिव कमऴ हंस हूर !
एता दीन्हा बाहिरौ, मोख न पावै सूर !!
जऴथऴ महियऴ पसु पंखी, सूर घणां ही होय !
दात्ता मानव बाहिरौ, सुण्यौ न दीठौ कोय !!
चारण कवैसरां और भी केई चिजां ने ई आपसरी में संवाद करवाय दिया है, जियां अमल दारूरो संवादो, कीरत अर लिछमी रो संवादो आदि केई संवादा है !!*
*आज रा भगत में जियां माड देश रा अनै धाट देश रा, मेवाङ अनै मारवाङ देश रा, थऴवट अनै ढूंढाङ देश रा संवादा घणाज हाल रिया है, उणांरी बानगी भी जोवण व सरावण जोग है !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!