!! कविया श्री हिंगऴाज दान जी कृत !!
वकीलों के विषय में !!
आदरणीय हिंगऴाजदान जी कविया ने अपने जीवन काल में कई केश-मुकदमें लङे थे, तथा बङे-बङे सामन्तो जागीर दारों के सामने अपने पक्ष को प्रभावी ढंग से अपनी कविता के द्वारा ही प्रस्तुत करते थे और उन सभी मुकदमों में विजय श्री का वरण भी किया था !!
उनके जीवन का एक दुसरा पहलू यह भी है कि उन्होने राजस्थान के चारण समाज के कई लोगों की मदद मुकदमें जितानें में की थी, जिनमें गांव कुङकी की चारणों की ढाणी का प्रसंग तो बङा ही रोचक व प्रेरणादायक है !!
अब एक कवित्त वकीलों के विषय में उनका लिखा उल्लेख किया जाता है, अपने समाज में भी बहुत वकील हैं तथा अनेक बङे प्रसिध्दि प्राप्त किए हुए है, उन सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि इस कवित्त प्रेषण पर मुझे क्षमा प्रदान करें !
!! कवित्त !!
कार मुखत्यारन को कविका नमस्कार,
पांव जहां उनके हमारो तहां पगरा !
हारा को सहारा नांहि हब्बाभर,
जीते सुकराना को लगावैं और रगरा !
परजावैं पीछै मैनताना की बकाया पर,
यूँ न जानैं बापरै को सरवस्व बिगरा !
नाव तैं रपट दरियाव में बहन लागो,
तोऊ उतराई को मल्लाह करै झगरा !!
कविया साहब ने कचहरी के विषय में भी बहुत सटीक वर्णन किया है ! पाखंड का खंडन व मर्यादा का मंडन करना उनका पहला धर्म था, जहां भी उन्हे किसी भी बात अतिक्रमण लगा, उन्होने कविता रूपी कोडै की फटकार लगाकर अतिक्रमी को सीमा उल्लंघन से संयत किया है, धन्य है कविवर कविया जी !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!