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अवतरण 
आद्य शक्ति हिंगलाज माँ, आवड़ माँ, खोडियार माँ, सेणल माँ, बहुचरा माँ, करणी माँ, राजल माँ, सोनल माँ की चारण कुल की दैविय परम्परा में सगत लूंग माँ का अवतरण हुआ है। लूंग माँ का जन्म विक्रम संवत 1987 की ज्येष्ठ सुदी बीज को सिरोही जिले के वलदरा गाँव में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री अजीतदानजी दूदावत आशिया एवं माता का नाम मैतबाई था। लूंग माँ के एक बड़े भाई पाबुदानजी, छोटे भाई वरदीदानजी एवं दो बड़ी बहने है, जिनमें मीराबाई का ससुराल राबड़ियावास पाली है एवं दरीयाव बाई का ससुराल रूपावटी जालौर में है। लूंग माँ का ननीहाल सिरोही के स्वरूपगंज के पास स्थित पातुम्बरी गाँव में था।


”लुंग बाईसा है शक्ति अवतार”
पुज्य गुरूजी की भविष्यवाणी
श्री लूंग माँ की उम्र छः मास की थी उस वक्त पातुम्बरी गाँव की ओर जाते समय गाँव की नदी को जब ऊँट पर बैठकर पार किया जा रहा था तो लूँग माँ उस नदी में गिर गए थे परन्तु आश्चर्यजनक रूप से छः मास की बालिका नदी में ना तो डूबी और ना ही खरोंच लगी। आपके दैवीय स्वरूप की सर्वप्रथम पहचान अबूदरीये के महान मुनिजी महाराज तपस्वी एवं चमत्कारिक संत श्री श्री 1008 श्री मुनीजी महाराज ने की थी। एक बार की मूर्ति भ्रमण करते हुए जब मुनीजी महाराज गाँव पातुम्थरी में पहुंचे तो आपने वहाँ रावले के बाहर खेल रही एक बालिका के बारे में पूछा कि यह कन्या कौन है तो उन्हें बताया गया कि यह तो लूँग बाईसा है वलदरा गाँव की रहने वाली है तथा पातुम्बरी की भाणजी है तो मुनीजी महाराज ने कहा कि इनके नानेरियों को बुलाओ और जब वे आए तो उन्हें कहा कि धन्यभाग्य है आपके, आपके घर तो साक्षात जोगमाया ने अवतार लिया है। यह तो साक्षात जगदम्बा है। पूजा की थाली लाओ। तब मुनीजी महाराज ने स्वयं लूंग माँ की पूजा एवं सात बार परिक्रमा कर नमन किया। कालान्तर में यही मुनीजी महाराज सगत श्री लूंग माँ के गुरू जी बने।

विवाह
श्री लूंग माँ का विवाह वि.स. 2004 में मेवाड़ राज्य के ठिकाना धनायका के श्री भूरसिंहजी गांगणिया के साथ हुआ। भूरसिंह सा के पिताजी श्री चतरदान सा गांगणिया थे। जो कि तीन रियासतो मेवाड़, मारवाड़ एवं सिरोही के बागी थे। एक बार सिरोही जिले के बाघसिण ठिकाणे में पधारे जहाँ कि ठकुराईन ने आपको भाई बनाया हुआ था परन्तु उनके आने की खबर तीनों रियासतों को दे दी गई और इस प्रकार धोखे से आपको मिलेक्ट्री ने चारों तरफ से घेर लिया जहाँ आप उनसे लड़े और आखिरी गोली स्वयं को मार कर झुंझार हो गए।

सगत श्री लूंग मां का पहला परचा एवं मां हिंगलाज का आदेश
श्री लूंग माताजी ने अपने जीवनकाल का पहला परचा धनायका में दिया था। जब माताजी के पतिदेव धाडायत झुंझारजी श्री भुरसिंह सा पुलिस वालो के साथ मुठभेड में झुंझार हुऐ उसके बाद माताजी ने स्वयं को धनायका स्थित मकान की मेडी में अपने आप को बंद कर दिया दिन रात घुघट में ही रह कर तपस्या करने लगे। यहाँ तक कि अकेले में भी आप बूंघट में ही रहती थी। लूंग माँ ने झुंझारजी बावजी की एक छोटी सी मूर्ति की स्थापना कर उसे पूजने लगे। ससुराल वाले जब खाना खाने का आग्रह करते तो आप मेड़ी का दरवाजा खोलते खाना अन्दर रखने के बाद वापस दरवाजा बंद कर भक्ति में बैठ जाते। एक दिन जब आपने दरवाजा नहीं खोला और कोई हलचल नहीं हुई तब आपके देवर श्री मदनसिंहजी ने हवेली के गोखडे से देखा तो दंग रह गए। कमरे में सुखी रोटियों का ढेर पड़ा था और लूँग माँ भक्ति में लीन थी। तब पता चला कि आपने अन्न का त्याग कर दिया था। कुछ समय बाद लूँग माँ ने बहस्पति महाराज की मूर्ति स्थापना करवाई एवं उसके बाद एक दिन आपको सत चढ़ा। आपने चंदन की लकड़ीयों का जम्मर सजाने का आदेश दिया। जम्मर तैयार किया जाने लगा आपके ससुराल वालों ने आपको रोकने की कोशिश की मगर लूंग माँ नही माने तो आपके देवर श्री मदनसिंहजी ने अपने 8 वर्ष के पुत्र श्री जीवनसिंहजी को लूंग माँ की गोद में बिठा दिया इस प्रकार लूंग माँ को सती होने से रोक दिया गया। तब एक दिन आपको हीरा माँ एवं हरिया माँ ने सपने में आ कर आदेश दिया कि तुझे अब भक्ति करनी है। तब माँ ने पूछा कि किसकी भक्ति करनी है तो उन्होंने कहा तुझे पता चल जाएगा। अगले ही दिन दो युवतियाँ मेड़ी के पास से यूं गाती हुई गुजरी कि माँ हिंगलाज की आराधना कर, माँ हिंगलाज का आराधना कर तब लूंग माँ ने एक लकड़ी में माँ हिंगलाज का आव्हान कर मेडी की एक अलमारी में हिंगलाज माँ की मूर्ति की स्थापना की एवं हिगलाज माँ की भक्ति में लीन रहने लगे। आपने 12 वर्ष तक अन्न जल का त्याग कर माँ हिंगलाज की तपस्या की।

श्री भुरसिंहजी का झुझार होना
श्री चतरदान सा के झुंझार हो जाने के बाद श्री भूरसिंह सा ने भी बागी बनना स्वीकार किया और बागी जीवन जीने लगे। एक बार आपकी गोली से एक किसान मर गया उसकी औरत रोती कलपती आपके घर गई, जहाँ श्री लूंग माँ खीच कुट रहे थे, तो वह औरत रोती हुई यह विलाप करती आई कि मेरा सुहाग उजाड़ दिया। ममतामयी लूंग माँ के मुंह से तत्काल ही यह वाक्य निकल पडे कि जिसने तेरा यह हाल किया है छ: महीने में उसकी पत्नी भी तेरी जैसी हो जाये। बाद में माताजी को वास्तविकता का पता चला तब तक आप के मुहं से वचन निकल चुके थे। आपके मित्र ने आपको अपने घर दावत हेतु बुलाया और धोखे से पुलिस को सूचना कर दी। श्री भूरसिंह सा उस व्यक्ति के घर के उपर बने केल्हू पोश कमरे में थे और चारों और पुलिस ने घेरा डाल कर फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की आवाज सुन श्री लूंग माँ ने हवेली के उपरी कमरे झरोखे से उस तरफ देखा तभी श्री भूरसिंह सा ने यह सोचकर की मेरे बाद पुलिस परेशान करेगी। श्री लूंग माँ पर दो फायर किये मगर दोनों फायर खाली गए। इधर पुलिस ने श्री भूरसिंह सा पर चारों ओर से फायरिंग के साथ उस केल्हू पोश मकान के छप्पर में आग लगा दी। पुलिस के साथ मुठभेड़ करते श्री भूरसिंह सा का शरीर कई गोलियों से छलनी हो चुका पुलिस ने आपको पकड़ लिया और राजनगर लेकर गए। मगर तब तक आप झुंझार हो चुके थे। उनके शरीर से शीशा निकाला गया तब उनके शरीर में सवा सेर कलेजा निकला। आपकी बहादुरी देख आपके दुश्मन भी हत प्रभ रह गए।

धनायका से वलदरा आगमन
कुछ समय बाद आप को झुंझारजी बावजी की आज्ञा हुई की आप वलदरा चली जाओं। तब आप वलदरा पधारे एवं अपने घर के एक कमरे में भक्ति में लीन रहने लगे। आपने 12 वर्ष तक अन्न एवं जल का त्याग कर 12 साल तक अकेले में भी घूंघट निकालकर रखते थे। इस अवधि में माँ हिंगलाज की कठोर तपस्या की। वलदरा गाँव में भी एक बार पुनः आपको सत चढ़ा एवं जम्मर तैयार कर लिया परन्तु इस बार आपकी माताजी आपकी राह में लेट गए और सती होने के लिए अपने उपर हो कर जाने का कह कर आपको रोक लिया। उसी समय पुलिस भी आ गई एवं किसी ने यह भी कहा कि ये तो नाटक कर रही है तो माँ ने लगते जम्मर ने अपने हाथ डाले परन्तु आपके हाथ नहीं जले हाथों से कंकू गिरा तब पुलिस वाले भी हाथ जोड़ कर चले गए।

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