!! मांडण कूंपा महिराजोत रो गीत !!
!! गीत !!
मांगै दीकरी गढ गांम दियै महि,
छत्रपत हठ्ठ नां छांडै !
पौह पतसाह गलां परधांने,
मांडण कांन न मांडै !! !!1!!
धी साटै गढ कोट धांमिया,
पच रहिया परधांनै !
ऊजऴौ खत्री अखां हर ओपम,
मैली बात न मानैं !! !!2!!
डाकर लालच खूंद दिखावै,
कूंपै सनमुख कहिया !
काबल चै दरबार कनवजां,
रूङां अङ पङि रहिया !! !!3!!
क्यांहिक बीजां ज्यूं कूंपावत,
धर ले दीध न धीया !
आगे तुरक हिन्दवां असगा,
कमधज सगा न कीया !! !!4!!
अर्थातः…. आदशाह अकबर उसकी पुत्री को विवाह के लिए मांग रहा है,बदले में अनेक गढ व गांम देने की बात कह रहा है वह अपनी इस जिद पर अङा है पर वीर मांडण तो बाधशाही प्रधानों की बात पर कान ही नही दे रहा है, पुत्री के बदले अनेक गढकोट प्रदान करने चाहै और बादशाह के केई प्रधान इस संम्बन्ध में बात कर कर हार गये किन्तु शिव की उपमा से अलंकृत विभूषित होनेयोग्य उज्जवल चरित्र का यशस्वी क्षत्रिय मांडण कूंपावत तो उस बात को मानता ही नही, बादशाह ने अपने रौब-प्रभाव के साथ एक दिन अनेक लालच देते हुए काबुल के भरे दरबार में एक दिन कूंपा मांडण के सम्मूख ही सीधा प्रस्ताव रख दिया, किन्तु कन्नौज के मूल निवासी राठौङ वीरों ने इसका प्रतिरोध किया व अपनी बात पर निर्भीकतापुर्वक आन बान व शान पर अडिग रहने हेतु अङ गये ! कुछ अन्य लोगों की तरह उस कूंपावत वीर ने धरती के बदले अपनी धीया का विवाह बादशाह से करना हरगिज स्वीकार नही किया, क्योंकि आदिकाल से ही तुर्क हिन्दुओं के सगे सम्बन्धी नही, अतःराठौङ वीर मांडण ने भी उन मुगल विधर्मियों को अपना संम्बन्धी नही बनाया !!गीत प्राचीन है, रचनाकार अज्ञात है !!
~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!