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!! रामप्रतापजी कविया सेवापुरा !!

प्रसिध्द नाहरजी कविया के सुपुत्र श्रीराम प्रताप जी कविया हुए ! वे भगवद्भ भक्त और परम शाक्त थे, अपने जीवन में तीन बार उन्होनें श्री हिंगलाज देवी के दर्शनार्थ बलोचिस्थान की दुर्गम  यात्राकरने का भी साहस किया था, व द्वारिका की यात्रा भी कई बार की थी और भक्ति के आवेश मे पीपा- झंप में कूद पङना भी प्रसिध्द है ! समुद्र की तरंगे उन्हें वापस किनारे ले लाई थी, राम प्रताप जी कविया नें कभी राजा-महाराजाऔं के काव्य की रचना नहीं कर प्रायः ईश्वर भक्ति संम्बन्धी ही सद काव्य सृजना की थी, उनके लिखे अनेक पद हैं जिनमें से एक दो पद यहांपर प्रस्तुत है-
!! पद !!
हे प्रण-तारत भंजन श्याम,
सुनो विनती कवि टेरे !
ना बल बुध्दि विवेक नही,
विपति में कोउ’न आवत नेरे !
आन उपाय थकी सब नाथ,
अनाथ पङ्यो शरणागत तेरे !
आप बिना तिहूं लोकन में,
गजतारन और उध्दार न मेरे !!
आरत बानि सुनी गज की खगराय,
विहाय भग्यो दुख टारन !
त्योंहि लख्यो प्रहलाद को आतुर,
पाहन में प्रगट्यो खल मारन ! 
धारयो रूप दुकूल सही परमेश्वर,
पण्डु वधु प्रण पारन !
रामप्रताप की बेर इति गिरधार,
अंवार करी किंहि कारन !!

राम प्रताप जी के भगवान की भक्ति के फल स्वरुप ही हिंगऴाजदानजी व अनुज मुरारीदानजी व जतनबाई जैसी सुयोग्य व गुणवान सन्तान की प्राप्ती हुई, भगवान व भगवती माँ करणी जी व शारदे की कृपा अब भी राम प्रताप जी परिवार पर सतत् रूपेण अनवरत यथावत जारी है !!

~राजेंन्द्रसिंह  कविया संतोषपुरा सीकर !!

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