बाप दियो वनवास, चाव लीधो सिर चाढै।
धनख बाण कर धार, वाट दल़ राकस बाढै।
भल लख सबरी भाव, आप चखिया फल़ ऐंठा,
सारां तूं समराथ, सुण्या नह तोसूं सैंठा।
पाड़ियो मुरड़ लंकाणपत, भेल़ो कुंभै भ्रात नै।
जीत री खबर पूगी जगत, रसा नमी रघुनाथ नै।।
बाली सा बल़वंत, वीर वडहाथ विडारण।
सधर मीत सुगरीव, धरा जिण री पख धारण।
जब्बर जटायु जोध, दाग जिणनै कर दीधो।
हेर दास हड़मंत, लगा उणनै अँक लीधो।
तारिया दगड़ उदधी तटां, पाधर में संत पाल़िया।
तनै यूं रंग दसरथ तणा, खल़ भिड़ कितरा खाल़िया।।
पत्थर अहल्या पेख, अँतस उल्लास उपायो।
बारै भमत वभीख, थान गढ लंक थपायो।
मेघनाद दल़ मुरड़, जती लिछमण जीताड़ै।
मार बाण मारीच, तगड़ ताड़का ताड़ै।
सायकां पाण सोख्यो समँद, पखै जूप दल़ पायकां।
गायकां सुजस देवण मुगत, वडम करै वरदायकां।।
अवन उथप असुरांण, तरां गढ लंका तोड़ै।
कपी रींछ दल़ कटक, जिकै बल़ अमरां जोड़ै।
महिल़ावां मंड मांण, सद् थपिया सद्चारी।
असत अपत अहंकार, वसू दल़िया विभचारी।
अजोध्या नाथ पौरस उरड़, उणवर धरा उजासियो।
जैण री साख अजतक जबर, भू सतपथां भासियो।।
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी