! बारहठ शंकर और महाराजा रायसिंह !
प्रसिध्द महात्मा भक्तप्रवर ईश्वरदासजी के काका आशाजी भी बङे भक्त व कवि थे उनकी वंश परंपरा में ही चाहङजी, दूदाजी, आदि भी अपने समय के बङे पंहुचे हुए गुणी तथा कवि हुए हैं चांदसर नाथुसर खुंडिया आदि गांवो में उनके वंशज अभी भी बहुत प्रसिध्दि प्राप्त कर रहे है
!! “जैसै अपने गजादान सा” !!
महाराजा राय सिंह जी के सम-कालीन शंकर जी बारहठ इसी वंश मे हुए थे तथा इनको राय सिंह जी बहुत मानते थे तथा अपनी कृपा भी रखते थे, रायसिंह जी ने इनको एक बार नागौर प्रांन्त की एक वर्ष की समस्त आयसहित सवा करोङ रूपये का द्रव्यदान किया था ! इस बात को गर्व पुर्वक राय सिंह जी की पुत्री व आमेर के राजा जी मान सिंह जी की पत्नि बार बार बताया करती थी जिस पर मानसिंहजी ने छः करोङ पसाव देकर दांतुन किया था !! रायसिंहजी द्वारा प्रदत सवा करोङ पसाव का साक्षी छप्पय प्रस्तुत है !!
!! छप्पय !!
पातां लाख पसाव,
कमंध सत सहस जु कीना !
कमां सवा मुर कोङ,
दुरस लख शंकर दीना !
सिंधुर दोय सहंस,
अरध लख बाजी अप्पे !
सीरोही दूद सुरताण,
साथ अरबुध्द समप्पे !
जोधांण पार प्रतपै जदिन,
सुजस जितै सस भांण रै !
सत पंच उदक दीनां सुपह,
कारण जस कलियाण रै !!
~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!