कवि गिरधर दान रतनू “दासोडी” द्वारा “काव्य-कलरव” अर “डिंगळ री डणकार” ग्रुप रा कवियों ने निश्क्रिय रेवण सूं दियौडौ एक ओळभो देती कलरव अर डिंगल़ री डणकार रा मुख्य-संरक्षक / संरक्षक आदरणीय भूदेवसा आढा अर चंदनसा नैं एक अरजी-
सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह।
जोगां किमकर झालियो, अपणो अपणो गेह?
सही सँरक्षक सांभल़ो, वडपण मनां विचार।
भागल मन कवियां भयो, डिंगल़ री डणकार।।1
वय में आढो वृद्ध है, इणकज करै अराम।
चंदन थारी चतुरता, किणदिन आसी काम।।2
पूछै कारण प्रेम सूं, नेही काढ निदान।
जमी राखजै जाजमां, चोगी चंदनदान।।3
आपूं सूची आपनै, माठमनां री मोर।
सैण इणां नै सोज ला, भल ऊगती भोर।।4
आजकाल कवि आल़स्या, डींगल़ रा डकरेल।
(कै)घरमें कारज है घणो, (कै)गुण्यां छुडाई गेल?।।5
गीत दूहां सूं गूंजती, डींगल़ री डणकार।
श्रवणां केवल़ सांभल़्या, जयमाता जयकार!।।6
डींगल़ री डणकार में, देख सुरा सूं द्रोह।
इण कारण ही एडमिन, मोहन तजियो मोह!।।7
द्विज नवलो दीसै नही, जमी जाजमां जोर।
छक कावल़ियो है छतो, (कै)ठाठ न दीसै ठोर!।।8
वीरेंद्र तो बोलणो, छतो दियो छिटकाय।
तांतण नेही ताटकै, चट दीना चटकाय।।9
नग नीति जड़तो निपट, सपट कैवतो सार।
कवियो क्यूं रूठो कहो, आछो कवि ओंकार।।10
साज सरस संगीत रा, जो सुर करतो झोख।
लिखै नहीं क्यूं लेखणी, नेही हिम्मत नोख।।11
आल़सियो कवि आसियो, नटखट नरपतदान।
कलरव में रव नीं करे, बीजी वल़ नीं ध्यान।।12
मोह त्याग घर मांयनै, सिमट समझवै शान।
टोगड़िया कवि टाल़िया, गजादान गुणवान।।13
केथ गयो जीडी कहो, सरवण केथ सुजांण?
मछरीको श़ंभु मुदै, रीझ न करै रियाण।।14
वीठलहर रतनो बता, वसै किसोड़ै वास?।
की कारण इणरो कहो, भूल न बोलै भास!।।15
शंभुदान सीधो कवी, आंटो हुवो अबार।
डींगल़ री डणकार में, दुरस न दे दीदार।।16
सैण थाक सुरताणियो, जो बैठो जगमाल।
कूण जगासी आ कहो, जग विपल्व री ज्वाल।।17
सदा करै सुरताणियो, साच काज सरकार।
नेह नरायण तोड़ग्यो, डींगल़ री डणकार।।18
आल़सियो अबकै लगै, सिंहढाहण सिरदार।
मुंह नारायण मोड़ग्यो, डींगल़ री डणकार।।19
आढो नीरज आजकल, जो कवियो जगदीश।
खिड़ियो मैंदर खीझियो, राखै सबसूं रीस।।20
आ तो अरजी आपनै, दीधी गिरधरदान।
श्रीमान इणपर सही, सुधमन करै सुजान।।21
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी
साँचो ओलभो हाथों हाथ असर करियो! कवियां रा जवाब हाज़िर है –
साच ओळमो सकव रो, वाच र कियो विचार।
डिंगळ री डणकार में, आळस थयो अबार।। 01।।
रतनू थारी रीस रो, आदर मनां अथाह।
(पण) ताकव पावै किण तरह, रतनू हन्दी राह।।02।।
रतनूद्वे दिन रेण ही, लीक न छोडै लेस।
काम धाम दूजा करै, मिळै रोटियां मेस।। 03।।
अहर-निशा रट एक ही, सिरजै बस साहीत।
व्हाट्सएप्प री वाट पर, जबरी पाई जीत।। 04।।
सकव गिरधरो सासरै, माणै बैठो मोज।
कवियां नै कर कुचरणी, रगड़े देखो रोज।। 05।।
बिग बी तो बोलै नहीं, लिटिल हाथ लिय लट्ठ।
धमकावै मझ द्योंस में, संग कर चवदस छट्ठ।। 06।।
एसीबी रो एडमिन, जेसीबी सो जोस।
अनुज गिरधरै नै अवस, देवै नांही दोस।। 07।।
●डा. गजादान चारण “शक्तिसुत”
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अपणायत रा ओलभा, आखर आखर तोल।
लिखया कविवर लाड सू, माणक मूंघे मोल।।
●हिंगळाज दान मीसण ओगळा
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चापलूसियों चुगलियों, पर निंदा पाखण्ड ।
बंधु बैर अर दुर बिसन, घसकों झूठ घमंड ।।
सैण कहेला सीख रा, बळता चुभता बोल ।
कडवी पण हित री कही, मानों इमरत मोल ।।
गिरधर सा रे गाज़ री, गजब लगी तणकार ।
सूतोडा सै सम्भलिया, डिंगल री डण कार ।।
●हिम्मत सिंह कविया नोंख
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आछा लिख्या ओळभा, गिण गिण गिरधरदान।
चावा कवि चिंतन करै,नरपत नै गजदान।।
●संग्राम सिंह सोढा
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डींगल री डणकार मे,
सैण नह दीसे सब।
अंतस तणा ज ओलभा,
गिरधर लिख्या गजब।।
सीक्स डी रे समर मे,
झलतों हुयगा झेर।
उठापटक मे उल़झ गा,
दुणियर लागी देर।।
गिरधर सा सिक्स डी मे उल़झियोङा हा सा।
●शंभुदान बारहठ कजोई
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हिय सूं करणौ हेत इम, सब री सार संभार।
डिंगल रा डकरेल गिध, अजंस अवै अपार।।
भुल्यौ कदे न भरम सूं, परम सनेह सुजाण।
सरम मरू संकीजतौ, माफी गुणीजन मान।।
गिरधर सा चंदन दान सा मोहन सा अर आपां रा संरक्षण भूदेव सा रा इतरा अपणायत रा संदेश है हुकम कै परिवार में भी इतरौ नेह नीं मिलै। जिण रौ अहसान सात जलम में भी नीं उतरै। आप सिरदारां रा विद्वता रै साम्ही टिक ई नीं सकां। सोढा सा महेन्द्र सा सिसोदिया री महिमा करा जितरी ई कम है।
●वीरेन्द्र लखावत
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गिरधर सा जोरदार ओळभा दिया।पण सफाई में केवल आ उत्तर देवू हुकुम
पाणी जाय पताळ,भोम तपे अण भौतरी।
इण कारण उताळ,बोरिंग करावों बापजी।।
●कवि जगमाल सिंह सुरताणिया ज्वाला
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असल ओलभो आज गिरधर ज्ञानी है दियो
करणो पड़सी काज कलम पकड़ अब कालिया
●सरवण सिंह राजावत
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गिरधर गुणियां ने दिया, असल औलभा आज ।
माडे रख्या मुझ मुढ को, चिङी बिचाले बाज ।।
गिरधर गुणिजन ने दिया, असल औलभा आज ।
चहकी कविता चहुदिसा, गिरधर री सुण गाज ।।
●नारायण सिंह जी बांधेवा
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आछौ लागौ ओळभौ, दिन्हौ गिरधर दान।
अपणायत रखतां अवस, कुरम कायदा काण।।
●डॉ लक्ष्मण सिंह गोगोदेव सा
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साँचो दीधो ओलभों गिरधरसा गुणवान,
डिंगल री डणकार री, सूनी पड़ी है खाण।।
●स्वरूप देथा
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आखर कहया ओपता,गुणियण गिरधरदान।
गिण नै बांधो गांठडी,फेर न मिलै फरमान।।
●संग्रामसिंह सोढा सचियापुरा
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सकवी दीनो सांतरौ,ओलभियौ इण बार।
पड़सी सूनी फेर नीं,डिंगल री डणकार॥
●महेन्द्र सिंह सिसोदिया(छायण)
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दासोड़ी दीया दपट्ट, अवल ओळबा आज
कागज कलमां काढ लो, कारण कविता काज (१)
दासोड़ी दीन्ही दवा, खरी खरी खळकाय
कविजन लागा काम पर, अळगो कर अळसाय (२)
दासोड़ी ने देखकर, कवियां करिया कोड
सांगोपांग सिरजना, होगी होडमहोड (३)
दासोड़ी नर देवता, भलोह कवि भरपूर
छहड़े बैठां छेड़िया, साहित वाळा सूर. (४)
दासोड़ी देकर दखल, सकल जगायो साथ
आखर आखर ओपमां, हरदम हाथोहाथ (५)
●रतन सिंह चाँपावत
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आछो चाछो ओळभो,गुणीयळ गिरधर दान।।
डिंगळ रे डणकार री,तजूँ कदे नहीं तान।।
हुकम ओळभो वाजिब हैं।
●नारायण सिंह सुरताणिया आर ए एस
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फलसी घण अर फूलसी, डिंगल़ री डणकार ।
ईहगा वालौ ओलबो, सान्दू ने स्वीकार ।।
●सान्दू नीतिराज
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ओलंभो साँचो दियो रतनू गिरधर दान।
कवियाँ बात संभालजो रखजो म्हारो मान।
मैं हूँ बूढो डोकरो थाँसूँ मोनै आश।
थे कलरव रा सारथी टूटै नह विश्वास।
कलरव रथ ने हाँकजो दे पूरी रफतार।
सै सू आगै आवसे डिंगल़ री डणकार।
●भूदेव आढा के उद्गार
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गिरधर कवि रा ओळभा बाबत द्विज नवलै रा बयान
(गिरधरदान जी रतनू, दासोड़ी रौ ओळभौ कालै आधी रात रा पढ़ियौ! आज सुबै सूं लाइटां बुरी गत मांड दी! इण माथै गरमी रा बटीड़ा तो पूछौ ई मत! बैटरी डिस्चार्ज ही! अठी रिश्तेदारी में गमी हुवण सूं वां रै बीच अटकियोड़ौ हो !अबै ज की फूंकारौ मिळियौ तो जियां तियां जवाबी आखरां में सफाई देवण री खेचळ करी हूं – जोशी)
कलरव रा नांमी कवी, सब डिंगल सिरमोड़ ।
निपट ठोठ औ नवलियौ, (वां री )नख भर करै न होड ॥१॥
नव दिन खपियां नीं मंडै, ओळी आखर चार ।
जुड़ै न कविता जबरियां, लखणां हूं लाचार ॥२॥
कवि गिरधर भाखै खरी, इण में मीन न मेख ।
और चलै डग आठ जद, हूं स भरूं डग हेक ॥३॥
पिंड प्रतख ढोळै पड़्यौ, चखां छायगी चुंध ।
खरी बात आ कविजनां, मगज जनम सूं मुंध ॥४॥
तन नै तो गरमी तळै, मन नै मूढ मिजाज ।
भेजौ भण्णाटै चढ़ै, इम दिन जाय अकाज ॥५॥
आंध्यां मति आंधी करै, दाझै लू कृश देह ।
लांबी जावै लाईटां, मूंद लिया चख मेह ॥६॥
राज मचावै रोळदट, जीणौ लगै झकाळ ।
प्रजातंत्र रा पारधी, हँस हँस करै हलाल ॥७॥
टप टप टिपा न दे सकूं, चटपट बणै न छंद ।
हियौ न उलड़ै ता तलक, सुझै न आखर चंद ॥८॥
हैंग मोबाइल झट हुवै, खुटै बैटरी खट्ट ।
नैटवर्क आवै नहीं, पइसा खूटै फट्ट ॥९॥
अँगळी टिकै न आखरां, टाइप हुवै न ठीक ।
आॅनलैण कींकर अड़ूं, लोचण टिकै न लीक ॥१०॥
सगा दूत दोखी सँगत, करूं हथायां कूड़ ।
पोथ्यां पण पढणी पड़ै, मांडूं जद व्है मूड ॥११॥
आत्म मोह अळगौ रखूं, दुसराणौ नीं दाय ।
नवौ सदा रचणौ चहूं, जेज भलां हुय जाय ॥१२॥
किस्मत धारी वे कवी, ज्यांरै और न काज ।
वाट्सएप पर रात दिन, हाजर मिळै सदा ज ॥१३॥
असल ओळभा आपरा, हियै लिया हरखाय ।
हींसोळी तव हेत री, गेड़ रही गुड़काय ॥१४॥
सांम्ही राख्या सज्जणां, बिल्कुल खरा बयान ।
हाजर नवलौ तव ह्रिदै, सदा जांण श्रीमान ॥१५॥
माफी बगसो मित्रगण, मजबूरी मम मांन ।
निरौ आळसी नवलियौ, इजगर रै उनमांन ॥१६॥
●नवल जोशी
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गिरधर रा सुण गीतडा. नवल गुरु तज नींद।
आयो कलरव आंगणै. बणकर जोशी बींद।।
●मोहन सिंह जी रतनू नवल जी पे प्रत्युत्तर माथै.
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द्विज नवलो नवली दखै, लिखणी सदा ललाम।
जुग कर गिरधर जोड़ियां,पुणै सदा परणाम।।
गुरुदेव नामी। साथै ई वाटसएप पर सदैव हाजर रैवण रो ओल़भो ई माथै
●गिरधर सा रतनू नवल जी रे प्रत्युत्तर माथै.
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गिरधर तणी गुहार सुण, रपटी कविता रेल ।
इक इक सूं सब आगला, डींगल रा डकरैल ।।
●नारायण दान
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लिखणा लेणोलेण ,कविजन लागा काम पर
सैणां हन्दो सैण. गिरधर गैले घालियां
●रतन सिंह चांपावत
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केशव सुत निपूरण कवि,धर साहित धनवान ।
सुता नारायण सेवरो,ओ गिरधर गुणवान ।(1)
मन ऊजल ऊजल मति,ऊजल चित्त आचार ।
ऊजल साहित आपरो,वधका ऊजल विचार ।(2)
तिरिया किरिया तेवटा,मद मेवा मिस्ठान ।
गिरधर थारा गीतङा,बीकाणा री बान ।(3)
होङ मचि धर हिन्द मे,ऊबा कव उमराव ।
दिखै आगे दोङतो,दासोङी दरियाव ।(4)
सुधाज पीणी सांतरी,साहीत री सतरंग ।
गिरधर रा सुण गीतङा,उर मन भरो उमंग ।(5)
●औकार सिह कविया
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गिरधर सा रा ओळभा रे संदर्भ में
इहग थारौ ओळभो, गढवी गिरधरदान।
पढियौ नरपत प्रेम सूं, मन सुध हे! मतिमान।। १
पी एच डी काठी घणी, माठो म्हारौ मन्न।
चित पढवा रो चाव ना, दोरा बीतै दन्न।। २
नित प्रत करतो नोकरी, करूं पछै निज काज।
कोशिश भणवा री करूं, जबर फसी है जाज।।३
लखै ज्हानवी लाडली, हेन्ड सेट जद हाथ।
मांगै म्हासूं मोद कर,रमवा मिस दिन रात।।३
उर जद कविता ऊपनै आखर रा आषाढ।
पळ उण परणी टोकती, रोज करै है राड।।४
कविराजा कविता तजो, समय बितावौ साथ।
सुख दुख बाँटौ साह्यबा, जीवन पल पल जात।।५
समझै कविता सोकडी, चहै न उणने रंच।
इणसूं आखर मांडवा, प्रतिदिन करूं प्रपंच।।६
ओफिस आय’र ईहगां, बचा नजर निज बोस।
करूं कवित री कोरणी, रती न धरजो रोस।। ७
गिरधर इण कारण गुणी, आखर रा उमराव।
गुप चुप ग्रुप में भेजतौ, भरै कवित मन भाव।। ८
आखर भाळै ओपता, अवर तणां ह्वै ओज।
मन दे पढतौ मोद सूं, रस भरियौडा रोज।।९
प्रतिक्रिया दे नी सकूं, माफी बगसौ मींत।
कविअर कविता री नपौ,तोडै कीकर प्रीत?।।१०
सारा कविजन सूरमा, डिंगळ रा डकरैल।
माफी बगसौ मालकां, मन रो काढौ मैल।। ११
भल आढा भूदेवजी, चारण चंदन दान।
म्हारी अरजी मान जो, साची धर संज्ञान।।१२
गढवी गिरधरदान री, अपणायत अणपार।
आप्यौ मीठौ ओळभौ, सुध मन है स्वीकार।।१३
●वैतालिक
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मन मुजब म्हे मांडता आखर आठो याम।
तो भी देवो ओळमो गिरधर बिना काम।।
एडमिन ने ओलभो दीन्हयो गिरधर दान।
क तो चूक्यो नाम वो क दीन्ह्यो कोनी ध्यान।।
आठ पहर चोसट घडी. कलरव ऊपर कान।
आपे किणविध ओलबो. दुणियर गिरधर दान।।
अनुज तिहारो ओलबो. सही नही स्वीकार।
दिवस रात दिलमे रहे. डिंगल री डणकार।।
●मोहन सिंह जी रतनू
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सुंदर पङुतर सोचनै, दीनो दो दिन बाद।
दूथी दुविधा दाखता, धाप दियौ धिनवाद ।।
●नरपत वैतालिक के प्रत्युत्तर पर नारायण दान जी बाँधेवा की प्रतिक्रिया
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एडमिन नैं ओल़भो नी म्है दियो.नादान।
आंख रखण री अरज की ,क्यूं रखो थे कान।
●गिरधर सा का जवाब मोहन सिंह जी रतनू को
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कियौ अमर नृप काळियौ, इण सूं थां रौ हेत।
अबै जनानी डाँट सुण,नपौ खोयग्यौ केथ ॥
●नवल जी की नरपत आसिया के जवाब पर प्रतिक्रिया
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एडमिन वालो औपणो,हर जुग रो घण हेत।
कदे न धापे काळियो,लेत बलईयां लेत।।
●कालू सिंह गंगासरा चौहान नरपत आसिया पर
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लख मिनखां बिच लाडला, बोले ऐ बिन साज ।
महिया नरपत मोहना, गिरधर ने गजराज ।
●औकार सिह कविया
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डिंगऴ री डणकार में, कवियों रो नी काळ।
रोज नुवा पैदा करै,मां मोगल मछराळ।।
●वैतालिक
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कर बरसा सुभ काव्य री. नरसा किया निहाल ।
सदा रखाजे सुभ घडी. मां मोंगल मछराल।।
●रतनू साहब मोहन सिंह कृत नरपत आसिया पर
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देय ओळभा आकरा,चुभती करदी चोट।
गिरधर जी गुण वान तो,खटक काढ़ दी खोट।।
●शंभु सिंह चौहाण बावरला सांचौर