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इळ पर नहचै वो दिन आसी
गीत रीत रा सो जग गासी
राख याद घातां री रातां
उर में मत ना लाय उदासी।

करमहीण रै संग न कोई
काबो मिलै न मिलणी कासी।
पुरसारथ रो पलड़ो भारी,
इणमें मीन न मेख जरासी।

घाल्यो नूंतो घाल्यां सरसी
पण तावळ बावळ कहलासी।
सही समै पर सागण जाग्यां
चोट चेप जाड़ां चिपज्यासी।

उर में आग, भचकतो भेजो
कुण जाणै किण दिस लेज्यासी।
धीरज धार-र टाळ बिगाड़ो
इलम सीख लै ओ इजलासी।

उछळ-कूद आपै उठ ज्याणी
झूठा खूंटा सै खुळ ज्यासी।
तन-मेळू व्हे तिणका-तिणका
मन-मेळू खिलसी मुसकासी।

भुरक्यां अर गीदड़-भभक्यां री
मां मरियां, अरड़ासी मासी।
चुभती रग पर चेप चभरको
आपै साच उघड़तो जासी।

तू किणरी ही राह ताक मत
रंच न देख टीपणै रासी।
करतब रै कुणकां री कायल
मजलां खुद मिलबा नैं आसी।

~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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