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मानज्यो आ बात पूरी
हेत बिन होळी अधूरी।
फगत तन रा मेळ फोरा,
मेळ मन रा है जरूरी।।

वासना री बस्तियां में
प्रीत-पोळां नीं मिलै,
रूप रूड़ा लोग कूड़ा,
साफ़ दिलडां बीच दूरी।।

हेत बिन होळी अधूरी।।

माँगियाँ इण मुलक माहीं
हक मिलै ना हेत भी,
सामनो मांड्यां सरैला,
बाळ अळगी जी-हजूरी।।

हेत बिन होळी अधूरी।।

क्यूं कपट रा जाळ गूँथै,
क्यूं करै खोटी कमाई,
जीवणो कितरो जगत में,
सांस थमतां ई सबूरी।।

हेत बिन होळी अधूरी।।

~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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