शेर तथा सुअर की लड़ाई का वर्णन, कृत – हिंगलाजदानजी सेवापुरा जयपुर
दोहा
गिर आडो जाडो गहर,घाटा विकट घणाह।
बाहण उण जागां बस्या,त्रण लोयणां तणाह।।
जिण जागां थाहर जबर,फाबै नाहर फैल।
बांको उण मागां बहै,खाटक हेक खगैल।।
नाहर सूतो नींद में, सींहणी जागै संग।
जायो भूंडण रो जठै,भड़ आयो अण भंग।।
सींहणी भाख्यो सूर नै,इण घाटै मत आव।
चीत सहै नंह गाज घण,रीत यहै बण राव।।
सूर कहै सुण सींहणी, फूल न कीजै फैल।
राह बहंता किम रुकै,गैदंता खागैल।।
गैदंता खागैल गिड़,कन्तो गिणै न काय।
माडांणी आं मारगां,जो आवै मरजाय।।
मर जावो के मारल्यां,मुड़ां न पाछा मूळ।
जांण पड़ै रण जूटियां,ऊठ जगा सादूळ।।
छंद – सारंग
डाकी इसा बोलियो बैण डाढाळ।
कंठीरणी छोड़ियो कुंजरां काळ।।
जाग्यो महाबीर कंठीर जाजुल्य।
ताळी खुली मुण्डमाळी तणी तुल्य।।
घ्रोणी लखे सींह नूं गाजियो घोर।
जारै किसूं केहरी ओर रो जोर।।
नैड़ो अठी होफर्यो बाघणी नाह।
बैड़ौ ऊठी बीफर्यो बीर बाराह।।
आगा बढ्या ज्यो चढ्या चौगणा अम्भ।
खीज्या घड़ी सांकड़ी रा अड़ी खम्भ।।
छाक्या दहूं द्रोह में छोह में छाय।
लागी किनां सोर सन्दोह में लाय।।
जागी दहूं दोयणां लोयणां ज्वाळ।
तूटी झणां बीजळां ज्यो निराताळ।।
भेळा थया भाखरां भोमिया भूप।
रूठा अनूठा प्रळै काळ रा रूप।
दातै चढ्या अद्र रा दाइया दार।
भाराथ रौ हाथळां दातळां भार।।
बेढीमणा बूठिया बेर बेढंग।
जेठी कणेठी बणे जूटिया जंग।।
लागा लड़ेवा चड़े बाढ बेलाग।
बागा मृगानाह बाराह बज्राग।।
झाड़ां पहाड़ां चड़्या ग्रीधण्यां झूळ।
देखै भिड़्या सूरमा सूर सादूळ।।
खागां उभै आभ लागां झड़ै खीज।
बांसै पड़ै डाच ज्यो भाचरै बीज।।
दाखै घणी ग्रीधणी सींह नू दाद।
बोलै किती कोल नू आफरी बाद।।
रूता रणो स्तब्ध रोमा बणो राव।
पोढै किसो खेत छोड़ै किसो पाव।।
बैड़ा बिहूं हेकसै बेख बानेत।
जावै किसो भाज पावै किसो जैत।।
आपै मतै आगळा एक हूँ एक।
टाळी टळै तेण में केण री टेक।
घाल्या घणां हाथळां दातळां घाव।
दीधा घणां होफरां डोफरां दाव।।
जाया भला भूंडणी सींहणी जोध।
काया बढै सुक्र तक्रेय ज्यो क्रोध।।
आछा जुड़्या जंग त्यों ऊधड़्या अंग।
रोसैल दोनूं जणां नै घणा रंग।।
छप्पय
नाहर सूर निराट,बेढ बांका भड़ बागा।
अंग घावां ऊधड़ै,लड़ै बिहुं अम्बर लागा।।
खग ओखल खागैल,घाव केहर घट घल्यो।
गरज्यो सहित गरूर,ऐड़ भरपूर उझल्यो।।
सजि सारदूळ हाथळ सबळ,जोम कवल माथै जड़ी।
कड़काय गैण हूंतां किना,पब्बय पर तड़िता पड़ी।।
दोहा
बाही सांगोपांग बळ,घट भांगो उण घाव।
हेकणमल्ल कवल्ल हण,रण जीत्यो बणराव।।
डाढाळै उण डोळ हूं, मार्यो हेकण मल्ल।
हाडोती जाहर हुई, गिड़-नाहर रण-गल्ल।।
~हिंगलाजदान जी सेवापुरा जयपुर