संभल़जै सत सिमरियां साद निज सेवगां,
लेस मत हमरकै जेज लाजै।
विपत्ति मिटावण वसुधा-कुटंब री,
उडंती लोवड़ी भीर आजै।।1
खलक री रखै तूं पलक री खबर नै,
मुलक में पसरगी महामारी।
आपरां तणी तूं हेक छै औषधी,
थापपण छापपण हेक थारी।।2
पसारै दिनोदिन रोग निज पांवला,
प्राथमी ऊपरै दांत पीसै।
जिकण नै काटवा जोरबल़ जामणी
दुनी में अपरबल़ तूंही दीसै।।3
आपरां ऊपरै निजर रख अमी री,
उरां नह खमीरी तजै अंबा।
सत्तापण आपरी सकल़ में सिरोमण,
लल़वल़ां कुंडल़ां पाण लंबा।।4
जारियो हाकड़ो रोग नै जारजै,
ईसरी आप छो अजर जरनी।
तावल़ी आवजै हथाल़ी तीसरी,
काटजै करोना शीघ्र करनी।।5
बुद्धिबल़ बसुधा आपजै बीसहथ,
शुद्धि पण दिराजै जगत सारां।
हूंसपण भरै तूं सेवियां हिये में,
टकर दे रोग नै बाल़ तारां।।6
चिकित्सक उरां में भरै तूं चानणो,
हारपण हिये री जिकां हरणी।
रातदिन हौसलो इणां रो राखजै,
जनां री सेवा में जुट्या जरणी।।7
अगै तैं लखां कज किया नित अमामी,
भोम कर याद नै हुवै भामी।
विधूंसै करोना तणो भय बीसहथ,
जगत नै अबीहो करै जामी।।8
भणै कव गीधियो ताहरै भरोसै,
भरोसो दास नै सदा भारी।
आवजै सताबी भीर तूं अवन री,
मावड़ी संभल़जै अरज म्हारी।।9
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी