राजस्थानी भाषा मे कवियो ने अपने अनुभव ऐवं व्यवहारिक ज्ञान के आधार पर कविता के माध्यम से जनता को मार्गदर्शन दिया। प्रस्तुत हे जाल जी रतनू द्वारा रचित नसीहत री निसाणी
किसी का बिन जाणिये, विश्वास न कीजै।
गैणा गांठा बेच के, अन सूंगा लीजै।
पढवाचा कीजै नही, बिन मौत मरीजै।
ठाकुर से हेत राखके, हिक दाम न दीजै।
भांग शराब अफीम का, कोई व्यसन न कीजै।
दुसमण की सौ बीनती, चित्त ऐक न दीजै।
जै कोई बगसै रीझ का कैकाण न लीजै।
सौना रूपया और का, अंकाय धरीजै।
लांठां बिणज न कीजिये, ना लाठ लीजै।
बहुत ईरादा जाणके, सब गूंज न कीजै।
जौरावर लडतां थकां, लख कानां लीजै।
आखर बैरी आगलां, हीणा नह दीजै।
आंटा झगडा आपरा, पुल आयो लीजै।
आयो पुल जद आपरी, फिर ढील न कीजै।
न कोई ठगियै और को, न आप ठगिजै।
कांकड अडबी भोम का, लख दान न लीजै।
मालिक कर भांणैज कूं, घर खेत न दीजै।
लख पैदासी आध का, घर खरच करीजै।
अपणा धन विसवास कर, पर हाथ न दीजै।
पहरै भूसण और का, सिणगार न कीजै।
पूरण कदेही पारका, नह मांग चढीजै।
बंधवा वणिक सुनार की, परतीत न कीजै।
तांबा, सोमल हिंगलू, सिर जीभ न दीजै।
नीसाणी नस्सीत री, चित्त दे सुण लीजै।
जालम कवि भाखी जिका, नित याद करीजै।
~कवि जालजी रतनू
प्रेषक: मोहन सिह रतनू, (चौपासणी चारणान, जोधपुर)