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मधुसूदन जिण सूं रीझ्यो हो,
वरदायी जिणरी वाणी ही।
बचनां सूं जिणरै अमर बणी,
ऊमा दे रूठी राणी ही।

कोडीलै बाघै कोटड़ियै,
सेवा जिण कीनी सुकवि री।
मरग्या कर अमर मिताई नैं,
परवाह करी नीं पदवी री।

ईसर खुद जिण सूं ले आखर,
पद परम ईस रो पायो हो।
इळ पर कवियां री ओळी में,
सुकवि रो नाम सवायो हो।

गावूं जिणरै जसगीतां नै,
अंजस है उणरो अंसज हूँ।
नाथूसर नगर निवासी नर,
बारठ आसै रो वंसज हूँ।

पसरी वा सौरम पंगी री,
वसुधा पर च्यारूं वरणां में।
है भाव समर्पित अंतस सूं,
(उण)आसै बारठ रै चरणां में।

~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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