Fri. Nov 22nd, 2024

हंसवाहणी थारो मंदर
अंदर अंतस म्हारै
जठै आरती
जुगत जोड़ सूं
उगत आखरां
भल़हल़ भावां
छंद चढावां
सबरस जोतां
नाक नमायर
छांट बर्तावां
मांगां शारद
विमल़ बुद्ध नै
अंतो शुद्ध पण
मिनखापण रो
माता मारग
हे दाता !
तूं पण दीजै
धीजै दुश्मण
सबद सतोला
अंतस भीजै
खार त्याग
अनुराग ऊपड़ै
जाग पड़ै
मन तार जोड़वा
मून तोड़वा
थारी किरपा
प्रीत पाऊंडा
मीत भराणा
नीत ऊजल़ी
गीत उगेरे
झणहण वीणा
सरस सुरां सूं
हरस वापरै
छानां -झूंपां
ढाणी-गोल़ां
हल़धरियां री
हंसी हबोल़ां
मुल़क वापरै
देख मजूरां
ज्यांनै दरसण
देय भारती
आखर-जोतां
मिटै अंधारो
जड़ता जावै
तोत ओल़खै
धूत धड़ां रो
छल़ियां वाल़ो
लखले अंतस
कुड़कै वाल़ी
तोड़ै कड़ियां
होय सचेतो
बल़ती बसती
मिनख-धरम धर
जल़ वरसाय’र
झल़ां बुझोदै
दीन दुखी रा
पूंछ आंसुवां
बिनां भेद रै
सुख-दुख सीरी
होय सदामत
थारी किरपा
तूठ अबै तो
इसड़ो कोई
दास तमीणां
परचो साचो
जगत पतीजै
बिनां भरम रै
वीणवादिनी
करदे सबरो
आज बसंती
अंतस अब तो
खिलै फूलड़ा
थोथी थल़ियां
गल़ियां वाल़ी
मिटै उदासी
दंगल़ वाल़ा
उथप अखाड़ा
हिरदै हिरदै
हरफ हेत रा
तूं उपजायर
झूंपड़ियां री
मिटा मोथाई
हे वर दैणी!
तूं पख लैणी

~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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