जय श्री लक्ष्मी बाई सा
श्री लक्ष्मीबाईसा का शुभ अवतरण कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादसी बुधवार विक्रम संवत 1929 को ग्राम बालेबा जिला बाड़मेर में हुआ था। श्री लक्ष्मीबाई सा के पिताजी का नाम स्व श्री पहाड़दानजी देथा व माता जी का नाम श्रीमती अकला देवी है।
सूर्योदय के तेज के समान ही श्री लक्ष्मीबाई सा का बाल्यकाल भक्तिमय रूचि से ओतप्रोत था अल्पसंख्य सेवकजनो के दुखः दर्द दूर कर मानवधर्म को ईष्वरीय स्वरूप की सज्ञा प्राप्त की ।
सन 1987 में श्री लक्ष्मीबाई सा अपने परिवार सहित बीकानेर जिले के नहरी क्षेत्र आबादी 3 एस .एल .एम वर्तमान गोकुलगढ़ में आकर बस गए।
अपने मात्र 13वर्ष की लघुआयु सेवाभाविक जीवन पालन के पशचात। पौष माह के शुक्ल पक्ष की दशमी विक्रम संवत 1942को श्री लक्ष्मीबाई सा देवलोक प्रसथान कर गए।
देवलोक प्रसथान करने से ठीक दो माह पूर्व श्री लक्ष्मीबाई सा ने अपनी मां व अपने बड़े भाई को बुला कर अपने भाई को एक पुत्र रत्न प्राप्त होने का आशवासन दिलाया था, और यह कहा था कि अगर सिर पर सफेद लषण हो तो उस पुत्र का नाम हाथीदान देना, और बाईसा के प्रदत्त वचनों के फल स्वरूप आज उनके (अपने बड़े भाई) के पांच पुत्र रत्न है यह बाईसा का पहला प्रदत्त वचन था। और पूरा परिवार खुशाहाली का जीवन जी रहा है। और बाईसा ने अपनी माताजी से यह भी कहा था कि मुझे एक अमीर वणिये के घर जन्म दिया होता तो में लड्डू और मिठायां खाती और यह भी कहा था कि में मरने के बाद लक्ष्मी के रूप में एक अमीर वणिये के घर जन्म लुंगी। छोटी उम्र में बीमार होने के कारण बाईसा की शादी नही हो पाई थी।
बाईसा की माताजी व समस्त परिवार वाले बाईसा को देवी के रूप में सचे दिल से नही मानते थे तो बाईसा ने अपनी माताजी को सपने में अपना देवी रूप धारण किये हुए दिखाई दिए थे, और बाईसा ने अपनी माताजी से कहा था कि सम्भल जाओ नही तो सत्यानास हो जायेगा परिवार का, तो उसके बाद समस्त परिवारजनों ने मिलकर बाईसा के मंदिर का निर्माण करवाया और समस्त परिवारजन मिलकर पूजने लगे फिर भी कोई भूल चूक हो गई तो फिर से अपनी बड़ी भोजाई को चमत्कार दिखाया और एक पैर में विकलांग कर दिया। उसके बाद फिर से गलती कर बैठे बाईसा के चमत्कार को न मानकर पुरे देश के डॉक्टरों के पास दवाई लेने से फर्क नहीं पड़ा। फिर से अपनी बड़ी भोजाई के मन में अचानक ही बाईसा के प्रदतो के प्रति भाव आया और कहा कि हे बाईसा हमे माफ़ करना हम रस्ता भटक गए तो एक रात में ही एकदम तैयार कर दिए। और आज के समय में पूरे परिवार वालो को व पुरे गांव को प्रत्येक प्रकार के पर्चे परवाड़े दिखाई देते हैं।
जैसे बिछु काटना, गाय बीमार होना, व अनेक प्रकार की बीमारीयों का बाईसा के नाम की डोरी तांतण बांधने से छुटकारा मिल जाता है। बाईसा का जीवन सादगीऔर सरलता से परिपूर्ण रहा। हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष कि दशमी को जागरण का आयोजन किया जाता है।