।।दूहा।।
पींपासर प्रगट्यो प्रभु पहुमी काटण पाप।
जगत अहर निस जापियो जंभेसर रो जाप।।1
जयो जंभेसर नाथ जग विदगां बुद्ध वरीस।
पवित जात पंवार में जोड़ै तूं जगदीश।।2
।।छंद – रेंणकी।।
परमारां कोम भोम पींपासर, काट पाप निकल़ंक करी।
घणनामी रीझ आय लोहट घर, धर उण पावन देह धरी।
हंसा री गोद रम्यो कर हर हर, भू तर तर विसवास भयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।१
बैठो वन जाय वरस बारा लग, तन तावड़ियै ताप दियो।
सुरभ्यां री सेव देव तैं साजी, काज बडो अणभेव कियो
मन में हद प्रेम नेम सूं मालक, राजी हुय रखवाल़ रयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।२
जोगी धर जोग मून वा झाली, काली दुनिया खिक्खर करै
गुण री नहीं समझ गूंगियो, गूंगा, धर संसारी नाम धरै।
उण पुल़ हे अल़ख पलक में अवनी, काट द्वंद परकास कियो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।३
समरथ तूं जाप जप्यो समराथल़, थल़वट धर पग पवित करी
वाणी हद तोर विमल़ वरदायक, बेख ग्यान गंग धार बही
निरमल़ नर नार हुया कर नावण, छावण तैं कर छत्र छयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।४
भू पर धहकाल़ कराल़ भयंकर, पाप प्रल़यंकर यूं पसरै
मचगी हहकार हकार मही पर, नाज सरण तज घर निसरै
विसरै सुद्ध बुद्ध मावड़ी बाल़क, भिल़ी भिगल़ सब लोग भयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।५
समराथल़ थान नाथरै सरणै, ढूक मऊ बड ओट ढबी
पायो अन्न पेट राबड़ी पूरण, साम नेह सूं नाथ सभी
दीनो उपदेस जदै दुख दाटण, कीरत खाटण काम कियो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।६
नित प्रत नेम बीस नव निरमल़, दया कीध हरि आप दिया
पाल़ै घट राख साख आ परगल़, हिव विशनोई नाम हुया
गूंजी जयकार गणण गयणाकर, हणण भीड़ जद भीर हुयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।७
जय जय गुरुदेव जगत रा तारण, अघ जारण मुझ ओट अपै
चारण धर ध्यान चाव सूं चवड़ै, जस गिरधर कवियाण जपै
परभता नहीं पार आपरी पामू, दया निद्ध बुद्ध रीझ दयो
जगदीसर रूप नमो जग जाहर, जंभेसर गुरु नाम जयो।।८
।।कवत्त।।
जयो जंभेसर नाथ, प्रीत परकत सूं पाल़ी
जयो ज़भेसर नाथ, भीर अबल़ां री भाल़ी
जयो जंभेसर नाथ, साच उपदेस सुणाया
जयो जंभेसर नाथ, वसु विशनोई बणाया
जंभेसर काम जाहर जगत जगदीसर रै जोड़ रा
कीरती गीध कवियण करै काटण अघ तूं कोड़रा
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी