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छंद – झुलणा
शूंढाळा सांयजे गणाधिपति गुणपति,
विघ्न सब हरीजे सुणो हेला.
करा हूं आरदा शारदा सरसती,
अब्द नी ल्हांणी दियो पेला.
राज कविराज ना आज जश भाखवा,
रसण पर आवियो जोगमाया.
काव्य ना धोध ने शब्द ना वारिधी,
चौ तरफ चारणी छंद गाया.
पद्य ने गद्य ना महा रस मालमी,
कलम ना धणी ऐम जगत केता.
तर्क ना त्राजवे मर्म ने माणता,
पात्र ने न्याय ईम पूर्ण देता.
ईहंगा वंश नी किरत कविराजरा,
हेमरा मुख पर जपट लाया.
काव्य ना धोध ने शब्द ना वारिधी,
चौ तरफ चारणी छंद गाया.
भक्तिरस तरबतर नितरतो दास लांगी थियो,
जेहनी कलम पर विरह नी ठोर वागी.
रसावळ नवरसा छलकता काव्य बळ,
मिठळा छंद पर गरिमा मुहर लागी.
पूर्वज तणी किर्ती मणी मेहडु थिया,
सदा संस्कार ने पून्य गुण ललित पाया.
काव्य ना धोध ने शब्द ना वारिधी.
चौ तरफ चारणी छंद गाया.
विरोचित काव्य नो कसुंबी जाणतल,
पुरोधो कलम नो थियो नामी.
शुरवीर तणा शिर नो रत्न ई कायमी,
वशेकी वात लई गियो जामी.
कवि व्रजमालनी सुरावळ सांभळे,
खडग नी धार पर करे छाया.
काव्य ना धोध ने शब्द वारिधी,
चौ तरफ चारणी छंद गाया.
आझाद ई हिंद नो बूंलद स्वर केसरी,
भारती भोम नो थियो बेटो.
जबर ई जोम नी फूंक व्रेह्मंड चडी
डणंक सुण फिरंगी रियो छेटो.
कविवर क्रांतिकर दास कान्हड थिया.
मात हिंगलाज शिर करे छाया.
काव्य ना धोध ने शब्द ना वारिधी.
चौ तरफ चारणी छंद गाया.
विहोतर शाख चारण तणी निर्मळी.
ईळा पर ईहंगा वंश वांचो.
कविवर विरवरा जडा दातार जश,
विद्वता गहकती रत्न  रांचो.
त्याग बलिदान नी तपोनिष्ठ मूर्तीयु.
जगत जननी तणा ऐम थिया जाया.
काव्य ना धोध ने शब्द ना वारिधी.
चौ तरफ चारणी छंद गाया.

— चारण विजयभा हरदासभा बाटी.

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