राजस्थानी साहित्य रो ज्यूं-ज्यूं अध्ययन करां त्यूं-त्यूं केई ऐड़ै चारण कवियां रै विषय में जाणकारी मिलै जिकां रो आभामंडल अद्भुत अर अद्वितीय हो। जिणां आपरै कामां रै पाण इण पंक्ति नै सार्थक करी कै-
सुत होत बडो अपनी करणी, पितु वंश बडो तो कहा करिए?
पण दुजोग सूं ऐड़ै सिरै कवियां रै विषय में साहित्येतिहास में अल्प जाणकारी ईज मिलै। कारण कोई ई रह्यो हुसी पण साहित्येतिहास माथै काम करणियां ऐड़ै कवियां रै बारै में कोई ठावी जाणकारी नीं दी।
ऐड़ा ई एक सिरै कवि अर मिनखाचार सूं मंडित साहित्य मनीषी हा उम्मेदरामजी पालावत।
उम्मेदरामजी रा पूर्वज पालोजी रो जनम खारी(जोधपुर) रै मोटोजी बारठ रै घरै हुयो। पालैजी रै हाथ सूं गांम में हुई लड़ाई में कोई आदमी काम आयग्यो। जद उणां खारी छोडदी अर मनोहरपुर रै शेखावतां रै अठै गया परा। शेखावतां इणांनै एक गांम दियो जिको पछै इणांरै बेटे सावल़दासजी खंडेल़वाल़ बांमणां नै आपरा गुरु बणाय भेंट कर दियो। जद रावजी इणांनै दूजो गांम दियो-चारणवास। जिणमें इणांरी संतति आज ई रैवै।
इणी पालैजी री संतति चारणां में पालावत बाजै। पालैजी रै बेटा हुया सांवल़दासजी अर सांवल़दास रै च्यार बेटा हुया 1गिरधरदासजी, भूधरदासजी, केसवदासजी अर वनमाल़ीदासजी। ऐ च्यारूं ई प्रज्ञा अर प्रतिभासंपन्न कवि हा सो मनोहरपुर राव त्रिलोकचंदजी इणांनै च्यार गांम दिया-
रायचंद महाराव को, पाट तिलोकचंद पाय।
दानी कर्ण दराजतै, कल़ी में फेर कहाय।।
सांवल़ बारठ च्यार सुत, अरूं गांव चौ अप्प।
सौल़ै सै बाणव समय, 1थिर भूमि जस थप्पि।।
आ ई बात कविराजा बांकीदासजी आपरी ख्यात में लिखै-
“सेखावत मनोहरपुर रै राव पालावत बारट गिरधरदास नै गोविंदपुरो, भूधरदास नूं हणमतियो दियो, केसवदासजी नूं किसनपुरो दियो, वनमाल़ीदासजी नू कल्याणपुरो दियो। ”
केसव गिरधर भूधरण, कर वनराव सुकत्त।
धरती ढूंढाड़ैह तणी, 2पालावत्त पवित्त।।
इणी च्यारूं मांय सूं भूधरदासजी री संतति में महाकवि उम्मेदरामजी रो जनम हणुंतिया गांम में हुयो-
घासीराम महेश, अचल़ भूधरो अरीहण।
सांवल़ पाल्ह सकाज, मोट चेलो’र महप भण।।
उम्मेदरामजी रै पिता रो नाम सांवतसिंहजी अर दादै रो नाम घासीरामजी हो। उम्मेदरामजी छोटा ई हा जद ई इणांरै पिताजी रो देहावसान हुयग्यो सो इणांरो पाल़ण-पोषण इणांरै दादा घासीरामजी कियो।
बात चालै कै जद 12-13 वरसां रा हा जद लूटेरो अमीरखां पिंडारी बैतो इणांरो गांम लूटण आयग्यो। अमीरखां रै भय सूं गांम रा, गांम खाली करग्या। इणांरा दादा रोगग्रस्त हुवण सूं न्हाठ नीं सक्या अर दूजो कोई मोटयार सहायक हो नीं जको उणांनै कुशल़ै घर सूं काढै ? ऐड़ी अबखी बगत में उम्मेदरामजी हिम्मत नीं छोडी अर एक चमार री मदत सूं आपरै दादाजी नै सुरक्षित जागा लेयग्या। लारै सूं अमीरखां गांम नै बाल़ दियो अर जको कीं हाथ आयो जावतो लेयग्यो। अमीरखां रै गयां पछै दूजै गांम वाल़ां रै साथै आप ई पाछा आया। कह्यो जावै कै उण दिनां कवि रै घरै इतरी नादारगी ही कै आपरै दादाजी री अंतिम इच्छा पूर्ण सारू पड़ोसी घरां सूं उधारो लाणो पड़्यो। आ ई बात चालै कै एक दिन किणी पर्व माथै इणांरी मा इणां सारू ज्यूं-त्यूं मनमाफक भोजन बणाय जीमावण री त्यारी करी पण घर में थाल़ी आद बर्तन नीं हा सो पड़ोस सूं मांग लाई पण ज्यूं ई जीमण री त्यारी करी कै पड़ोसी आय आपरै ठामां खातर धांफल़ घालदी। उणसूं दुखी होय कवि घर-गांम छोड जयपुर स्थित एक वैष्णव मंदिर रै महंतजी रै अठै रैयग्या। महंतजी इणांरी प्रतिभा सूं घणा राजी हुया सो उठै ईज उणांरै पढण रो सरजाम कर दियो। उम्मेदरामजी थोड़ै ई दिनां में आपरी कुशाग्र बुद्धि रै पाण पढण में प्रवीणता दरसाई। महंतजी कोई ग्रंथ बणावै हा सो जोग सूं बीच में ई सुरग सिधाग्या। उणांरै उत्तराधिकारी री आज्ञा सूं आप उण ग्रंथ नै पूरो कियो। पछै उठै उणांरो मन नीं लागो सो मंदिर छोड शामोद ठाकुरां रै अठै गया। ठाकुर साहब उणांरै कवित्व शक्ति अर बुद्धि चातुर्य माथै रीझ पुरस्कृत किया। आप उण रुपियां सूं थाल़ियां खरीदी अर हणुतिया आया। बेटे नै जोगतो देख इणांरी मा घणी राजी हुई।
अठै सूं कविवर रो भाग्योदय हुवणो शुरू हुयो। अठै सूं आप भाभरू गया अर भाभरू में आपरो मन नीं लागो जणै जवानपुरा ठाकुर जवानसिंहजी कनै गया परा।
कह्यो जावै कै जवानसिंह जी महाकंजूस हा। चमड़ी जावै पण दमड़ी नीं जावै। जवानसिंहजी रै कोई संतान नीं ही सो उवै रातदिन उदास रैवता। इणांरै कामदार एक साहित्यप्रेमी सोनार हो सो उण सलाह दीनी कै आपरी उदासी नै उम्मेदरामजी मिटा सकै सो आप बारठजी नै तेड़ावो अर उणांसूं हथाई करो। ठाकुर बारठजी सूं हथाई करण लागा। ज्यूं-ज्यूं हथाई हुवण लागी त्यूं-त्यूं ठाकुरां रो मन खिलण लागो, उदासी भागण लागी। एक दिन ठाकुर इतरा राजी हुया है कै बारठजी नै 1100बीघां रो पट्टो हाथोहाथ इनायत कियो तो साथै ई एक हाथी री रकम रावल़ै खजानै सूं ले जावण रो हुकम ई फुरमाय दियो।
जोग सूं उम्मेदरामजी नै भाभूरा ठाकुर मिलग्या। जद बारठजी भाभूरा ठाकुरां नै पूछ्यो कै जे-“जवानसिंहजी अणहद रीझै तो कवि नै कितरो अर कांई दे सकै?”
जद ठाकुरां कह्यो-
“हद सूं हद 5 रुपिया।”
जणै उम्मेदरामजी कह्यो कै-
“ठाकुरां 1100रो पट्टो तो दे दियो अर हाथी खरीदण रो म्हनै आदेश दे दियो यानी म्हनै गांमधणी कर’र गजबंधी ई कर दियो है!”
आ सुण’र भाभूरा ठाकुर कह्यो कै-
“कै तो आप लेवण नै रैवोला नीं अर जे रैयग्या तो जगत में जस खाटसो या पछै जवानसिंहजी री मोत नैड़ी आयगी दीसै ! सो आप दोनूं चीजां वल़ू करो जैड़ी बात करो।”
जवानसिंह जी आपरै वचनां मुजब कवि नै पट्टो अर हाथी इनायत कर’र कंजूसी रै कोट नै फतह कियो। जणै कवि दूहो कह्यो-
कविराजां कारीगरां, दे द्विज राजा दान।
करण पछै घर घर कनक, जग में कियो जवान।।
पछै आपरी प्रतिभा री खबर अलवर महाराजा बखतावरसिंहजी कनै पूगी। आप महाराजा सूं मिलण गया। महाराजा आपरी प्रतिभा सूं इतरा राजी हुया कै सदैव रै सारू आपरै गुढै राख लिया।
अलवर महाराजा आपनै मजीठ अर मदनपुरी नामक दो गांम इनायत किया तो साथै ई ओ आदेश दियो कै उठै री रैयत माथै अलवर महाराजा री मरजी नीं अपितु कविवर ई मरजी चालसी।
आप पिंगल अर डिंगल में केई ग्रंथ प्रणीत कर’र जगत में नाम कमायो।
अठै आपसूं संबंधित एक ऐतिहासिक किस्से रो उल्लेख करणो समीचीन समझूं। हालांकि आज कीं लोग इणनै अंधविश्वास सूं तो कीं अतिरंजना सूं जोड़ सकै पण इतिहासकार किशोरसिंहजी वार्हस्पत्य आपरै ग्रंथ करनी-चरित्र में तो, बीकानेर अभिलेखागार रै अपुरालेखीय रिकार्ड में अलवर सूं संबंधित रिकार्ड में स्पष्ट उल्लेख है कै एकबार महाराजा बखतावरसिंहजी शिकार रमण गया। जंगल़ में एक सूअर आंरी दीठ पड़्यो। आं घोड़ो लारै दाबियो अर सूअर रै गोल़ी बाही। घायलियो सूअर पाखती आए एक रसूलसाही फकीर रै तकिये में बड़ग्यो। फकीर अपणै आपनै करामाती मानतो अर उणरै करामात री केई बातां उठै हालती। महाराजा सूअर नै जोयो पण नीं लाधो जणै महल पधारग्या। महल में आयां पछै दरबार रै पेट में इतरो अहसनीय दर्द हुयो कै उवां सूं जागा झलणी अबखी हुयगी। जद दर्द री बात फैली तो केई लोगां आय’र बतायो कै आपरै घायल कियोड़ो सूअर रसूलसाही फकीर रै तकिये में बुवो ग्यो जिणसूं उठै री मरजादा भंग हुई हुयगी। इण सारू उण आपनै उदरशूल रो शाप दे दियो।
आ बात महाराजा सुणी तो कह्यो कै-
“म्हैं कोई जाणबूझ’र मरजाद भंग नीं की है। छतापण मरजाद भंग हुयगी तो फकीर नै जाय’र कैवो दरबार माफी मांगै सो माफी दी जावै।”
जद संदेशवाहकां फकीर नै महाराजा रो ओ संदेश पुगायो तो उवो वल़ै ऊंचो थूकतो बोल्यो कै-
“जे पेटदर्द सूं मुगती पावणी चावै है तो उणनै जाय’र कैयदो कै गुडाल़िये बैय’र अठै लटका करतो आवै अर आपरी दाढी सूं तकिया शरीफ री सफाई करै तो ई दर्द मिटैलो नींतर भुगततो-भुगततो एक दिन खुरड़ा खोतर मर जासी।”
आ बात जद पाछी महाराजा कनै पूगी तो मरता क्या नीं करता री गल़ाई उणां मन मांडै बात अंगेजली पण उठै बैठै दरबारियां नै सुणावतां कह्यो कै-
“म्हनै पद री मरजाद भंग करणी पड़सी जे पेट दर्द सूं उबरणो है तो ? पण थे अठै इतरा मोटा-मोटा टोकल़सिंह बैठा हो! जिकै रात दिन भक्ति री शक्ति बतावता रैवो। कणै ई किसै ई परचै री बात कणै ई किसै ई परवाड़ै घसकां मेलता रैवै तो कांई आप बता सको कै कोई हिंदू देव ऐड़ो है जको म्हारो उदरशूल मिटाय सकै? कै सगल़ा देव मरग्या?”
सभा में सणणाटो छायग्यो। कोई नीं बोल्यो जाणै गाढर माथै जूती ठैराई है! जणै उम्मेदरामजी अरज करी कै-
“हुकम! देवी-देवता तो हाथ रा हजूर है पण आपनै ई पतियारो हुवणो चाहीजै। साचै राचै राम। म्हैं देसाणराय करनीजी रा चाडाऊ छंद पढूं जितरै आपनै आ पीड़ भुगतण री सहनशीलता धारण करणी पड़सी।”
आ सुण’र दरबार कह्यो कै-
“कविवर आप करनीजी रो आव्हान करो ! हूं पीड़ सैय, चमत्कार देखणी चावूं ! पण करनीजी नीं आया तो पछै म्हारो चमत्कार देखण सारू आप त्यार रैजो।”
उम्मेदरामजी द्रढता सूं जोत कर’र चाडाऊ छंद पढण लागा–
गूँगी गहली आव, आव करनी मेहाई।
होल आकुली आव, आव बहरी बिरदाई।
देवल बेगी दौड़, देर मत कर अन्न दाता।
चाल़राय झट चाल, माढ सूं आजो माता।
बाहुड़ै निभाबण जूना बिड़द, आवड़जी री आणं सूं।
आखता सिंह चढ़ आवजो, देवी गढ़ देशांण सूं।।
चंदू बेगी चाल, चाल खेतल बड चारण।
लेवो हाथ त्रिशूल़, धजाबंध लोहड़ धारण।
बीसहथी इणबार, देर मत कर डाढाल़ी।
हरो रोग हिंगल़ाज, करो ऊपर महाकाल़ी।
लगाज्यो देर पल हेक मत, आवड़जी री आंण सूं।
आखता सिंघ चढ आवज्यो, देवी गढ देसाण सूं।।
ज्यूं-ज्यूं छंदां रो स्वर गूंजतो गयो त्यूं-त्यूं बखतावरसिंहजी रो उदरशूल मिटतो गयो। ज्यूं ई 12कवत्त पूरा हुया अर त्यूं ई दरबार साजाबोर हुया। साजा हुवतां ई उणां आदेश दियो कै रसूलसाही फकीर जको ई जठै ई मिलै उणरो नाक बाढ लियो जावै। ओ आदेश सुणतां ई घणा फकीर पड़ छूटा अर जिकै लाधा उवांनै नकबढा किया।
बखतावरसिंहजी करनीजी रै इण ऐतिहासिक परवाड़ै सूं अभिभूत होय’र 25हजार री पूज देशनोक पूगती की। जिणां में सोनै री पादुकावां, सोना रा किंवाड़, आद शामिल हा। जिकै देशनोक मढ में आज ई मौजूद इण बात री ताईद करै।
उम्मेदरामजी री ख्याति घणी पसरी। जद जोधपुर महाराजा मानसिंहजी उणांनै मिलण नै तेड़ाया पण दुजोग सूं आप पधार नीं सक्या अर थोड़ै दिनां पछै ई आप देवलोक हुयग्या। संवेदनशील मिनख अर कवि-हृदय मानसिंहजी व्यथित मन सूं मरसिया कह्या। नवकोटी मारवाड़ रै धणी दुखी मन सूं लिख्यो कै दर्शन, वेदांत अर केतान शास्त्रां में सिद्धहस्त कवि उम्मेद सूं म्हारै मिलण री मनमें ई रैयगी-
मान कोड़ ची मौज, जग बहगो जैसिंघ जिम।
चारण व्रन चो चौज, बहगो आज उमेद बिन।।
खटदरसण अवगाहतो, भूप न पायो भेद।
मिलणा तणी उमेद सूं, मनमें रही उमेद।।
राजस्थानी चारण साहित्य में आप रो नाम ऊजल़ियै आखरां में अंकित सदैव अमिट रैसी।
~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
संदर्भ-
1: राज.सा.संपदा-सौभाग्य सिंह शेखावत
2: चारण-चंद्रिका भाग 2
3: चारण सा.इति.मोहनलाल जिज्ञासु